अंकिता भंडारी हत्याकांड: इतनी जांच के बाद भी वीआईपी कौन था, इसका खुलासा नहीं हुआ
- ANH News
- 31 मई
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देहरादून/ऋषिकेश – बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी एंगल अब भी रहस्य बना हुआ है। तमाम तकनीकी जांच, हजारों मोबाइल लोकेशन का विश्लेषण और सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वह ‘वीआईपी’ कौन था, जिसके लिए अंकिता पर “अतिरिक्त सेवा” देने का दबाव डाला जा रहा था।
घटना की पृष्ठभूमि और अंकिता की आखिरी बातचीत
19 वर्षीय अंकिता भंडारी वनंत्रा रिज़ॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में कार्यरत थी। घटना के दिन, 18 सितंबर 2022 को, अंकिता ने अपने मित्र पुष्पदीप को फोन कर बेहद परेशान स्वर में बताया था कि रिज़ॉर्ट में अनैतिक गतिविधियाँ हो रही हैं। उसने यह भी बताया कि रिजॉर्ट मालिक पुलकित आर्य और उसका पीए अंकित गुप्ता उस पर एक "बड़े वीआईपी" को विशेष सेवा देने का दबाव बना रहे हैं।
अंकिता की यह बातचीत उसकी आखिरी साबित हुई। उसी रात करीब 8:30 बजे उसका फोन बंद हो गया। जब पुष्पदीप ने संपर्क करने की कोशिश की, तो पुलकित आर्य ने उसे यह कहकर गुमराह किया कि अंकिता सो गई है। अगले दिन पुलकित और उसके सहयोगियों का फोन भी बंद हो गया।
पुष्पदीप की सतर्कता से सामने आया मामला
जब पुष्पदीप को संदेह हुआ, तो उसने सीधे ऋषिकेश पहुंचकर मामले की पड़ताल शुरू की। रिज़ॉर्ट के शेफ मनवीर से बात करने पर खुलासा हुआ कि अंकिता रात से रिज़ॉर्ट में नहीं है। यहीं से इस रहस्यमयी हत्याकांड का सिलसिला शुरू हुआ। पुष्पदीप की सजगता और समय पर उठाए गए कदमों के चलते मामला उजागर हो सका और 23 सितंबर को उत्तराखंड पुलिस ने इसे सार्वजनिक किया।
एसआईटी जांच में वीआईपी का सुराग नहीं
घटना के बाद गठित एसआईटी (विशेष जांच दल) की कमान डीआईजी पी. रेणुका को सौंपी गई। टीम ने वनंत्रा रिज़ॉर्ट और उसके आसपास के इलाके में 40,000 मोबाइल नंबरों की लोकेशन और हरिद्वार से ऋषिकेश तक 800 से अधिक सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली।
टीम ने रिज़ॉर्ट में आने-जाने वाले सभी लोगों से पूछताछ की और संदिग्ध मोबाइल लोकेशन के आधार पर कई लोगों को चिन्हित कर पूछताछ भी की। इसके बावजूद, यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वह "वीआईपी" कौन था जिसे विशेष सेवाएं देने के लिए दबाव बनाया जा रहा था।
डीआईजी का बयान और अनुत्तरित प्रश्न
डीआईजी पी. रेणुका ने जांच के बाद बताया कि वनंत्रा रिजॉर्ट में एक 'वीआईपी सूट' था, और वहां ठहरने वाले हर ग्राहक को वीआईपी कहा जाता था। लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ कि पुलकित आर्य किस विशिष्ट व्यक्ति के लिए अंकिता पर दबाव डाल रहा था।
यह बयान कई सवालों को जन्म देता है—क्या 'वीआईपी' महज एक आंतरिक संज्ञा थी या किसी प्रभावशाली व्यक्ति की पहचान छिपाई जा रही है? और यदि नहीं, तो इतनी गहन तकनीकी जांच के बावजूद वास्तविकता सामने क्यों नहीं आ सकी?
निष्कर्ष: न्याय अभी अधूरा
अंकिता भंडारी हत्याकांड सिर्फ एक युवती की हत्या नहीं, बल्कि उन व्यवस्थागत कमजोरियों और शक्ति के दुरुपयोग की भी कहानी है, जिसमें न्याय की राह में 'वीआईपी' जैसी अज्ञात परछाइयाँ अब भी खड़ी हैं। पुष्पदीप की सतर्कता ने इस मामले को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन जांच एजेंसियों के समक्ष आज भी सबसे बड़ा सवाल यही है —
"वह वीआईपी कौन था?"