पहाड़-मैदान के बीच की खाई नहीं पट पाई, मंत्री उनियाल बोले – 'हम सब उत्तराखंडी हैं'
- ANH News
- 3 घंटे पहले
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राज्य गठन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर आयोजित विधानसभा के विशेष सत्र में उत्तराखंड की राजनीति और समाज में अब भी मौजूद पहाड़ और मैदान के बीच की खाई एक बार फिर उजागर हो गई। मंगलवार को हुए इस सत्र में जहां विकास की उपलब्धियों और भविष्य की दिशा पर चर्चा की अपेक्षा थी, वहीं बहस का केंद्र पहाड़-मैदान का मुद्दा बन गया। हालांकि संसदीय कार्यमंत्री सुबोध उनियाल ने हस्तक्षेप करते हुए यह स्पष्ट कहा कि “हम सब उत्तराखंडी हैं। हमें उत्तराखंड के विकास की बात करनी चाहिए, न कि विभाजन की।”
सत्र के दूसरे दिन भोजनावकाश से पहले शुरू हुई बहस भोजनावकाश के बाद भी जारी रही। मामला तब गरमाया जब भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र को “नरक” कह दिया। इस बयान पर विपक्षी विधायकों ने कड़ा विरोध जताया। कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश, तिलकराज बेहड़, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, और भुवन कापड़ी ने इसे आपत्तिजनक बताते हुए विरोध दर्ज कराया। कापड़ी ने कहा कि जब भाजपा सरकार भूमिधरी का अधिकार देने में असफल है, तब वह उसे अतिक्रमण का नाम देकर लोगों के साथ अन्याय कर रही है।
विधायक सुमित हृदयेश ने कहा कि राज्य के नगर निकायों में करीब 80 प्रतिशत आबादी नजूल भूमि पर बसी हुई है, इसलिए इन्हें नियमित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पहाड़-मैदान की बात करना गलत है, क्योंकि उत्तराखंड का निर्माण सबकी सहभागिता से हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व मुख्यमंत्री एन.डी. तिवारी ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर सिडकुल की स्थापना की थी, जिससे लाखों परिवारों को रोजगार मिला। लेकिन अफसोस की बात है कि आज सिडकुल की कंपनियों में शीर्ष पदों पर राज्य के युवाओं की हिस्सेदारी पाँच प्रतिशत से भी कम है। हृदयेश ने उपनलकर्मियों के नियमितीकरण और अफसरशाही के रवैये पर भी नाराजगी जताई, साथ ही राज्य आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण की मांग की।
वहीं भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ ने अपनी बात रखते हुए कहा कि राज्य ने पच्चीस वर्षों में अभूतपूर्व प्रगति की है। उन्होंने कहा कि अब उत्तराखंड के गांवों में सड़क, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिली है और पशुपालन विभाग राज्य की समृद्धि की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है। उन्होंने आंकड़ों के साथ बताया कि 2,15,000 पशुधन का बीमा किया गया है, 13 जिलों में 332 पशु चिकित्सालय बनाए गए हैं और पशु सेवा केंद्रों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। काऊ ने कहा कि अब हमें मिलकर राज्य हित में कार्य करना चाहिए ताकि अगले 25 वर्षों में उत्तराखंड विकास की नई ऊँचाइयों को छू सके।
भाजपा विधायक खजानदास ने भी पहाड़-मैदान की राजनीति पर चिंता जताई। उन्होंने याद किया कि वे उस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी रहे हैं जब उत्तर प्रदेश विधानसभा में उत्तराखंड राज्य गठन का प्रस्ताव पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि उस समय भी कुछ टिप्पणियाँ ऐसी हुई थीं जिन्होंने उनके मन में पीड़ा दी थी, लेकिन आज जब राज्य अस्तित्व में है, तो हमें किसी भी तरह की क्षेत्रीय या मानसिक खाई नहीं बनने देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आने वाले 25 वर्षों में हम सब मिलकर इस राज्य को उन शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बना सकते हैं जिन्होंने इसके लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने अपने वक्तव्य में कहा कि वे किसी भी “वाद” के विरोधी हैं, लेकिन पहाड़ के सरोकारों के समर्थक हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ कोई भी व्यक्ति आकर जाति प्रमाणपत्र बनवा ले और राज्य की नौकरियों में प्रवेश पा जाए। चौहान ने कहा कि “हम उत्तराखंड की मौलिकता से समझौता नहीं कर सकते। बनभूलपुरा जैसी स्थिति को दोहराया नहीं जाना चाहिए।” उन्होंने भू-कानून पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता बताई और कहा कि राज्य की जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) संरचना तेजी से बदल रही है, जिस पर सरकार को सतर्क रहना चाहिए।
बसपा विधायक मोहम्मद शहजाद ने कहा कि राज्य के निर्माण में मैदान की जनता ने भी बराबर योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने पहाड़ के तीन नेताओं को लोकसभा भेजा है, जिससे यह साबित होता है कि मैदान की जनता का नजरिया संकीर्ण नहीं है। शहजाद ने तंज कसते हुए कहा कि “पहाड़ से विधायक बनते ही कई लोग देहरादून और हल्द्वानी में मकान बना लेते हैं।” उन्होंने मांग की कि सरकार कब्जामुक्त कराई गई 9000 एकड़ भूमि गरीबों को पट्टे पर दे और लक्सर विधानसभा क्षेत्र के लिए विशेष राज्य पैकेज की घोषणा करे।
कांग्रेस विधायक रवि बहादुर ने इस बात पर निराशा जताई कि रजत जयंती वर्ष जैसे ऐतिहासिक अवसर पर भी सत्र का फोकस विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य या आपदा प्रबंधन के बजाय पहाड़-मैदान की बहस बन गया। उन्होंने कहा कि अब वक्त है कि हम “पहाड़-मैदान छोड़ो, उत्तराखंड जोड़ो” के नारे को अपनाएं। उन्होंने सफाईकर्मियों की दयनीय आर्थिक स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य गठन के बाद से उनके वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई, जिससे वे अब भी आर्थिक संकट में जी रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि इस विशेष सत्र का केंद्र बिंदु राज्य के भविष्य का रोडमैप होना चाहिए था, ताकि अगले पच्चीस वर्षों के लिए एक नई दिशा तय की जा सके।
अंततः संसदीय कार्यमंत्री सुबोध उनियाल ने पूरे विवाद पर विराम लगाते हुए कहा कि उत्तराखंड की आत्मा उसकी एकता में है। पहाड़ और मैदान के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि दोनों ही मिलकर इस राज्य की पहचान और शक्ति हैं। उन्होंने कहा कि अब समय है जब सभी दल और नेता अपने मतभेदों को किनारे रखकर उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास के लिए मिलकर काम करें।





