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अंकिता हत्या केस: न कोई पछतावा, न शर्म..., उम्रकैद की सजा के बाद भी सौरभ हंसता हुआ कोर्ट से बाहर आया

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 31 मई
  • 3 मिनट पठन
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देहरादून/ऋषिकेश – उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में आखिरकार पीड़िता को न्याय मिला। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) रीना नेगी की अदालत ने शुक्रवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी पुलकित आर्य, उसके सहयोगी सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत कठोरतम आजीवन कारावास की सजा सुनाई।


अदालत ने बताया 'पूर्व नियोजित और गंभीर अपराध'

अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि पीड़िता अंकिता भंडारी वनंत्रा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में कार्यरत थी, और घटना से पूर्व आरोपियों द्वारा उस पर बार-बार अनैतिक कार्यों — जिसे 'एक्स्ट्रा सर्विस' कहा गया — के लिए दबाव डाला गया। अंकिता इस दबाव का विरोध कर रही थी और घटना वाले दिन रिजॉर्ट छोड़ना चाहती थी।


इस भय से कि पीड़िता कहीं बाहर जाकर यह राज़ उजागर न कर दे, अभियुक्तगण उसे घुमाने के बहाने बाहर ले गए और फिर उसकी हत्या कर दी। छह दिन बाद उसका शव चीला नहर से बरामद किया गया।


धारा 302 के साथ अन्य धाराओं में भी दोषी करार

तीनों दोषियों को आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत भी सजा सुनाई गई:


धारा 201 (साक्ष्य मिटाना): 5 वर्ष का कठोर कारावास व ₹10,000 जुर्माना


अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act): 5 वर्ष का कठोर कारावास व ₹2,000 जुर्माना


धारा 354A (छेड़छाड़ और लज्जा भंग): विशेष रूप से पुलकित आर्य को 2 वर्ष का कठोर कारावास व ₹10,000 जुर्माना


इसके अलावा, सरकार को पीड़िता के माता-पिता को ₹4 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने के निर्देश भी अदालत ने दिए।


कोर्टरूम में कड़ी सुरक्षा, दोषी सौरभ की 'मुस्कुराहट' बनी सवाल

30 मई को फैसले के दिन एडीजे कोर्ट परिसर को भारी सुरक्षा घेरे में रखा गया था। करीब 10:30 बजे कार्यवाही शुरू हुई। तीनों दोषियों को जेल से लाकर अदालत में पेश किया गया।


फैसले के बाद जब तीनों दोषियों को कोर्ट से बाहर निकाला गया, तो सौरभ भास्कर का हंसता हुआ चेहरा और लोगों की ओर हाथ उठाकर देखना, कैमरे में कैद हो गया — जिसने जनता की संवेदनाओं को झकझोर दिया।


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अभियोजन ने कहा – 'प्रदेश की आत्मा को चोट पहुंची'

विशेष लोक अभियोजक अवनीश नेगी और अभियोजन अधिकारी राजीव डोभाल ने अदालत में जोर देकर कहा कि यह केवल एक हत्या नहीं, बल्कि प्रदेश की आत्मा को चोट पहुंचाने जैसा जघन्य अपराध था। उन्होंने अधिकतम सजा की मांग की।


वहीं, बचाव पक्ष ने नरमी बरतने की याचना की, जिसे अदालत ने अपराध की गंभीरता के आधार पर खारिज करते हुए कड़ी सजा सुनाई।


करीब ढाई साल चली सुनवाई, 47 गवाहों की पेशी

अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से एसआईटी के जांच अधिकारी इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह खोलिया सहित कुल 47 गवाहों की गवाही दर्ज की गई। यह सुनवाई लगभग दो साल आठ महीने तक चली।


न्याय की दिशा में पहला ठोस कदम

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियुक्तगण ने यह हत्या पूर्व नियोजित और पूर्णतः जानबूझकर की, और यह अपराध अत्यंत गंभीर प्रकृति का है। कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले अपराधियों को समाज में कोई स्थान नहीं मिलना चाहिए।


अंकिता भंडारी को इंसाफ तो मिला, लेकिन उसका जीवन लौटकर नहीं आ सकता। यह फैसला उत्तराखंड के इतिहास में एक संवेदनशील और निर्णायक क्षण के रूप में दर्ज होगा। अब देश की नज़र इस पर टिकी है कि क्या इस फैसले से अनैतिक गतिविधियों में लिप्त ऐसे प्रभावशाली लोगों पर शिकंजा कसेगा, या यह सिर्फ एक मामला बनकर रह जाएगा।

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