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पीड़ित बच्चों के पुनर्वास और न्याय में अब नहीं होगी देरी, पॉक्सो मामलों में सरकार देगी कानूनी-मनोवैज्ञानिक सहारा

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 4 मई
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड सरकार ने यौन अपराधों (पॉक्सो) के शिकार बच्चों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील पहल की शुरुआत की है। अब पीड़ित बच्चों को अस्पताल में इलाज से लेकर न्यायालय की अंतिम कार्यवाही तक भावनात्मक और कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए विशेष सहायकों की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। यह व्यवस्था बच्चों के पुनर्वास और न्यायिक प्रक्रिया में उनकी सहभागिता को आसान बनाने हेतु की जा रही है।


हर जिले में बनेगा सहायकों का पैनल

महिला एवं बाल कल्याण विभाग के निदेशक प्रशांत आर्य के अनुसार, राज्य के सभी जिलों में पॉक्सो पीड़ित बच्चों को सहायता दिलाने के लिए सहायकों का पैनल बनाया जा रहा है। ये सहायक बच्चों और उनके परिवारों को मेडिकल ट्रीटमेंट, पुलिस जांच और अदालत की कार्यवाही जैसे जटिल प्रक्रियाओं में मार्गदर्शन देंगे।


ज्यादातर पॉक्सो के मामलों में पीड़ित बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से होते हैं, जिनके माता-पिता या अभिभावक कानूनी या प्रशासनिक प्रक्रिया की जानकारी के अभाव में सहायता नहीं कर पाते। ऐसे में यह सहायता पीड़ित के लिए एक बड़ा संबल होगी।


सहायक की भूमिका क्या होगी?

पीड़ित बच्चे को अस्पताल में इलाज के लिए साथ ले जाना और जरूरत के अनुसार चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराना।


पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने, पूछताछ के दौरान उपस्थिति देना।


अदालत में पेशी और गवाही के समय बच्चों का साथ देना और उनका मनोबल बनाए रखना।


पूरी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान नियमित रूप से मासिक रिपोर्ट देना और केस की प्रगति पर नजर रखना।


चार चरणों में दिया जाएगा मानदेय

उप मुख्य परिवीक्षा अधिकारी अंजना गुप्ता ने बताया कि प्रत्येक सहायक को चार चरणों में कुल ₹20,000 का मानदेय दिया जाएगा:


प्रथम चरण: नियुक्ति और प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर ₹5,000


द्वितीय चरण: साक्ष्य दर्ज होने के बाद ₹5,000


तृतीय चरण: मासिक केस रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर ₹5,000


चतुर्थ चरण: न्यायालय द्वारा अंतिम निर्णय आने के बाद ₹5,000


सहायकों के लिए योग्यता और चयन प्रक्रिया

प्रत्येक जिले में एक चयन समिति द्वारा सहायकों का पैनल गठित किया जाएगा, जिसकी अवधि तीन वर्ष की होगी।


प्रत्येक सहायक अधिकतम पाँच मामलों की जिम्मेदारी एक समय में संभाल सकेगा।


प्राथमिकता उन युवाओं को दी जाएगी जो गैर-राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता हों।


उनके पास निम्न में से कोई एक योग्यता होनी चाहिए:


समाजशास्त्र, सामाजिक कार्य, मनोविज्ञान या बाल विकास में स्नातकोत्तर डिग्री


या बाल शिक्षा और विकास में तीन वर्षों का अनुभव तथा स्नातक डिग्री


इन सहायकों को पार्ट-टाइम कार्य की अनुमति होगी, जिससे वे इस सेवा को सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में निभा सकें।


राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की गाइडलाइन्स पर आधारित पहल

इस योजना को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की मॉडल गाइडलाइन्स के आधार पर तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य केवल कानूनी सहायता ही नहीं, बल्कि पीड़ित बच्चों को मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से पुनर्स्थापित करना भी है।


“यह योजना बच्चों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया को सरल, सुरक्षित और सहायक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।” — प्रशांत आर्य, निदेशक, महिला एवं बाल कल्याण विभाग

 
 
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