उत्तराखंड में बड़ा भूकंप आने की संभावना, दून में वैज्ञानिकों ने शुरू की संभावित क्षेत्र की जांच
- ANH News
- 14 जुल॰
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उत्तराखंड और समूचे हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भूकंप आने की संभावना को लेकर देश के शीर्ष भू वैज्ञानिक गंभीर आशंकित हैं। उनका कहना है कि हिमालय की टेक्टोनिक प्लेटों के आपसी घर्षण से जमीन के भीतर ऊर्जा भारी मात्रा में संचित हो रही है, जिसकी आहट हाल के महीनों में आए छोटे-छोटे भूकंपों के झटकों से महसूस की जा रही है।
वैज्ञानिकों की बैठक और शोध
जून माह में देहरादून में आयोजित दो महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कार्यशालाओं में देशभर के भूवैज्ञानिक जुटे। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में ‘अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स’ और फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफआरआई) में ‘अर्थक्वेक रिस्क एसेसमेंट’ विषय पर गहन मंथन हुआ। इन बैठकों में वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि आने वाले समय में हिमालय क्षेत्र में किसी भी बड़े भूकंप की तीव्रता लगभग 7.0 रिख्टर स्केल के आसपास हो सकती है।
विशेषज्ञों ने बताया कि भूकंप की तीव्रता में वृद्धि के साथ ऊर्जा में भी भारी वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, 4.0 तीव्रता के भूकंप से निकलने वाली ऊर्जा की तुलना में 5.0 तीव्रता वाले भूकंप से 32 गुना अधिक ऊर्जा निकलती है। वर्तमान में जो छोटे-छोटे भूकंप आ रहे हैं, उनकी संख्या इतनी अधिक नहीं कि यह माना जा सके कि भूगर्भीय ऊर्जा पूरी तरह मुक्त हो चुकी है।
साथ ही शोध में यह भी पाया गया है कि बड़े भूकंप से पहले कुछ महीनों या वर्षों तक छोटे-छोटे भूकंपों का सिलसिला बढ़ जाता है।
हालिया भूकंपों का आंकड़ा और संवेदनशील क्षेत्र
नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों में उत्तराखंड में 22 बार भूकंप आए हैं जिनकी तीव्रता 1.8 से लेकर 3.6 के बीच रही। इनमें चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और बागेश्वर जिलों में झटके सबसे अधिक महसूस किए गए।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र भूकंप के लिहाज से जोन 4 और 5 में आते हैं, जो बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। इतिहास में 1991 में उत्तरकाशी (7.0 तीव्रता) और 1999 में चमोली (6.8 तीव्रता) में बड़े भूकंप आ चुके हैं। तब से इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे वैज्ञानिक यहां जल्द ही किसी बड़े भूकंप की आशंका जता रहे हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, उत्तराखंड में भूगर्भीय प्लेटों की गति लॉक्ड हो चुकी है, जिसके कारण टेक्टोनिक तनाव बढ़ रहा है।
भूकंप का पूर्वानुमान: बड़ी चुनौती
भूकंप के संदर्भ में सबसे चुनौतीपूर्ण तीन प्रश्न होते हैं — कब आएगा, कहाँ आएगा, और कितनी तीव्रता का होगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि भूकंप के संभावित क्षेत्र की पहचान की जा सकती है, लेकिन इसकी सटीक समयावधि और तीव्रता का पूर्वानुमान लगाना अभी संभव नहीं है।
उत्तराखंड में दो GPS सेंसर लगाए गए हैं जो प्लेटों की गति और ऊर्जा संचयन की जानकारी देते हैं। लेकिन भूकंप की बेहतर निगरानी के लिए सेंसर की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
भूकंप क्यों आते हैं?
भूगर्भीय दबाव में वृद्धि से चट्टानों में दरारें उत्पन्न होती हैं, जिससे छोटे-छोटे भूकंप होते हैं। इन दरारों में भूजल भरने से भूकंप की गतिविधि थोड़ी शांत हो जाती है, लेकिन दबाव के अधिक बढ़ने पर अचानक बड़ा भूकंप आ जाता है। चमोली और उत्तरकाशी के पिछले भूकंपों के पूर्व ऐसे संकेत देखे गए थे।
नुकसान: मैदान और पहाड़ों में क्या फर्क?
वैज्ञानिकों ने बताया कि समान तीव्रता वाले भूकंप के कारण मैदानों में नुकसान पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा होता है। बड़े भूकंप भूगर्भ में लगभग 10 किलोमीटर की गहराई तक होते हैं, जो अधिक खतरनाक माने जाते हैं।
नेपाल में 2015 में आए भूकंप की गहराई अधिक थी, इसलिए उस तीव्रता के बावजूद नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ था।
देहरादून की जमीन की मजबूती का अध्ययन
हिमालयी क्षेत्र की भूकंपीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने कुछ प्रमुख शहरों का अध्ययन करने का निर्णय लिया है, जिसमें देहरादून भी शामिल है। सीएसआईआर बेंगलूरु इस अध्ययन को करेगा, जिसमें शहर की जमीन की संरचना, चट्टानों की मोटाई और भूकंपीय प्रतिक्रिया का विश्लेषण किया जाएगा।
इससे पहले भी वाडिया इंस्टीट्यूट और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने देहरादून का माइक्रोज़ोनिंग किया था, परंतु अब विस्तृत अध्ययन होगा।
टेक्टोनिक तनाव और ऊर्जा संचयन
हिमालय क्षेत्र में उत्तर-दक्षिण टेक्टोनिक तनाव की वजह से प्लेटें लगभग दो सेंटीमीटर प्रतिवर्ष खिसकती हैं, लेकिन उत्तराखंड में इस गति में रुकावट (‘लॉक्ड’ क्षेत्र) पाई गई है। इस वजह से टेक्टोनिक तनाव बढ़ता है जो बड़े भूकंप का कारण बन सकता है। नेपाल में इसी प्रकार के हालातों ने भी भूकंप की घटनाओं को जन्म दिया था। — डॉ. विनीत गहलोत
आधुनिक तकनीक से भूकंप चेतावनी
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 169 स्थानों पर सेंसर लगाए गए हैं जो तीव्रता 5 से ऊपर के भूकंप का 15-30 सेकंड पहले अलर्ट दे सकते हैं। यह सूचना मोबाइल पर ‘भूदेव’ ऐप के माध्यम से भेजी जाएगी, जिससे लोग समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकेंगे। — विनोद कुमार सुमन, आपदा सचिव
पूरे हिमालय क्षेत्र में ऊर्जा लगातार जमा हो रही है और कभी-कभी यह ऊर्जा बाहर भी निकलती है, लेकिन बड़ी मात्रा में संचयन अब भी जारी है। मध्य और पूर्वोत्तर हिमालय में ऊर्जा का भंडार विशेष रूप से अधिक है, जो कब फूटेगा कहना वैज्ञानिकों के लिए अभी संभव नहीं है। — डॉ. इम्तियाज परवेज, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीएसआईआर बेंगलूरु





