1955 में लिखी गई आंबेडकर की पुस्तक में इन राज्यों के विभाजन की थी पैरवी, क्या थी वजह जानें
- ANH News
- 15 अप्रैल
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आज भी देश में छोटे राज्यों के गठन की चर्चा होती रहती है, और खासकर उत्तर प्रदेश को चार भागों में विभाजित करने की मांग बार-बार उठती है। यह विचार संविधान के मुख्य निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ही रखा था, जिन्होंने हमेशा छोटे राज्यों के निर्माण की वकालत की। उनका मानना था कि बड़े राज्य शासन और लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए गंभीर चुनौतियां उत्पन्न करते हैं, जबकि छोटे राज्य अधिक प्रबंधनीय होते हैं और विकास में समानता सुनिश्चित कर सकते हैं।
14 अप्रैल डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती है, ऐसे में उनकी पुस्तक "भाषाई राज्यों पर विचार" (Thoughts on Linguistic States) के बारे में चर्चा करना प्रासंगिक होगा, जो उन्होंने वर्ष 1955 में लिखी थी। इस पुस्तक में डॉ. आंबेडकर ने बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े प्रांतों के विभाजन की जोरदार वकालत की थी। उनका तर्क था कि ये प्रांत अत्यधिक बड़े हैं, जिससे प्रशासनिक कामकाज में कठिनाई आती है और लोकतांत्रिक जवाबदेही की व्यवस्था कमजोर होती है।
आंबेडकर का दृष्टिकोण: छोटे राज्यों का समर्थन
डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि बड़े भाषाई राज्य लोकतांत्रिक मूल सिद्धांतों से असंगत हैं। उनका मानना था कि बड़े राज्यों की संरचना लोकतंत्र की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए, उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यों को न केवल प्रशासनिक दक्षता के लिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी विभाजित किया जाना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र या समुदाय को हाशिये पर महसूस न हो।
उनके अनुसार, "बड़े राज्यों का विचार लोकतांत्रिक नहीं है" और यह "लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से विपरीत है"। डॉ. आंबेडकर ने यह सुझाव दिया कि बिहार को दो राज्यों में विभाजित किया जाए, और मध्य प्रदेश को उत्तरी और दक्षिणी मध्य प्रदेश में बांटा जाए। इस प्रकार के विभाजन से प्रशासन की दक्षता और लोकतांत्रिक जवाबदेही सुनिश्चित हो सकती थी।
उत्तर प्रदेश का विभाजन: आंबेडकर का प्रस्ताव
डॉ. आंबेडकर ने उत्तर प्रदेश के विभाजन का भी प्रस्ताव रखा था, जिससे राज्य को तीन हिस्सों में बांटा जा सके। उनका विचार था कि इन तीनों राज्यों की आबादी लगभग दो करोड़ होनी चाहिए। प्रस्तावित राज्यों की राजधानियां मेरठ, कानपुर और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) हो सकती हैं।
आंबेडकर ने तर्क दिया कि छोटे राज्य नागरिकों को सार्वजनिक खर्च और शासन पर अधिक नियंत्रण प्रदान करेंगे। उनका कहना था कि जैसे-जैसे राज्य बड़ा होगा, खर्च की मांग भी बढ़ेगी और नागरिकों का उस पर नियंत्रण कम होगा। छोटे राज्य ज्यादा जिम्मेदारी और जवाबदेही प्रदान करते हैं, जिससे नागरिकों को बेहतर प्रशासन और योजनाओं का लाभ मिल सकता है।
भावनाओं से परे तर्क और प्रशासनिक दृष्टिकोण
डॉ. आंबेडकर ने राज्यों के पुनर्गठन पर विचार करते समय भावनात्मक तर्कों से बचने की सलाह दी थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि "भाषाई प्रेम" को एक सकारात्मक विघटनकारी शक्ति नहीं बनने देना चाहिए। उनके अनुसार, राज्य की सीमाओं को राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक व्यावहारिकता को ध्यान में रखते हुए तय किया जाना चाहिए।
यह विचार समय के साथ प्रासंगिक हो गए, हालांकि तत्कालीन समय में इन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे, लेकिन आंबेडकर के दृष्टिकोण ने लंबे समय बाद नीति निर्माताओं को प्रभावित किया।
डॉ. आंबेडकर के विचारों पर आधारित राज्य निर्माण
डॉ. आंबेडकर के प्रस्तावों के बाद, झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन हुआ, जो उनकी विचारधारा को एक रूप में साकार करता है। 2000 में बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ का गठन किया गया, जिससे इन राज्यों को छोटे और अधिक प्रबंधनीय रूप में विभाजित किया गया।
साल 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भी राज्य को चार भागों - पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश), पश्चिम प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश), बुंदेलखंड और अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) में बांटने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि केंद्र की यूपीए सरकार ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
वर्तमान समय में आंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता
राजनीतिक वैज्ञानिकों का मानना है कि डॉ. आंबेडकर के विचार आज भी संघवाद और विकेंद्रीकरण पर चल रही समकालीन बहसों में गूंजते रहते हैं। उनका दृष्टिकोण यह दिखाता है कि छोटे राज्य न केवल प्रशासनिक दृष्टि से बेहतर होते हैं, बल्कि वे सामाजिक और आर्थिक विकास को भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
आज जब राज्यों के पुनर्गठन और विकेंद्रीकरण की चर्चा होती है, तो डॉ. आंबेडकर के विचार और उनके द्वारा दिए गए प्रस्तावों को नकारा नहीं किया जा सकता। उनका दृष्टिकोण यह साबित करता है कि लोकतंत्र, समानता और विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी हो सकता है।





