देहरादून में महिलाएं असुरक्षित? रिपोर्ट को पुलिस-उत्तराखंड सरकार ने बताया झूठी, भेजा समन
- ANH News
- 10 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 11 सित॰

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून एक नए विवाद के केंद्र में है, जहाँ महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उठे सवालों ने राज्य सरकार, पुलिस प्रशासन और सामाजिक संगठनों के बीच गहरी बहस छेड़ दी है। यह पूरा विवाद नेशनल कमीशन फॉर वीमेन (NCW) द्वारा जारी की गई NARI 2025 रिपोर्ट से शुरू हुआ, जिसमें देहरादून को देश के उन शीर्ष 10 शहरों में शामिल किया गया है, जहाँ महिलाएं खुद को सबसे असुरक्षित महसूस करती हैं। रिपोर्ट के इस निष्कर्ष ने राज्य में सियासी और सामाजिक हलचल पैदा कर दी है, और अब यह मामला कानूनी कार्रवाई की दिशा में भी बढ़ रहा है।
देहरादून की रैंकिंग ने चौंकाया:
28 अगस्त 2025 को NCW की अध्यक्ष विजया राहटकर की मौजूदगी में जारी हुई "नेशनल एनुअल रिपोर्ट ऑन वीमेन सेफ्टी" यानी NARI 2025 ने पूरे देश में हलचल मचा दी। इस रिपोर्ट के अनुसार, देहरादून को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहरों में शुमार किया गया है। यह रिपोर्ट 31 शहरों की 12,770 महिलाओं की राय पर आधारित थी, जिसमें भारत का औसत सुरक्षा स्कोर 65% निकला। जबकि कोहिमा, मुंबई और भुवनेश्वर जैसे शहर सबसे सुरक्षित बताए गए, वहीं दिल्ली, पटना और जयपुर की तरह देहरादून को भी असुरक्षित शहरों में शामिल किया गया।
इस रिपोर्ट को लेकर सबसे बड़ा विवाद इस बात पर खड़ा हुआ कि देहरादून जैसे अपेक्षाकृत शांत और शैक्षणिक माहौल वाले शहर को इतनी निचली रैंकिंग क्यों दी गई। उत्तराखंड सरकार और स्थानीय पुलिस ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह तथ्यहीन और भ्रामक करार दिया। राज्य सरकार का कहना है कि यह अध्ययन न तो किसी ठोस पद्धति पर आधारित था, न ही इसमें बड़े पैमाने पर जन प्रतिनिधित्व हुआ।
सर्वे पर उठे सवाल:
देहरादून पुलिस और मुख्यमंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट की पद्धति पर सवाल उठाते हुए कहा कि 9 लाख से अधिक महिलाओं की आबादी वाले इस शहर में मात्र 400 महिलाओं से फोन पर बात करके यह निष्कर्ष निकालना सरासर भ्रामक और गैर-जिम्मेदाराना है। पुलिस का यह भी दावा है कि रिपोर्ट में कहा गया कि केवल 4% महिलाएं सुरक्षा ऐप्स का उपयोग करती हैं, जबकि राज्य सरकार द्वारा संचालित 'गौरा शक्ति' ऐप को अब तक 1.25 लाख से अधिक महिलाओं ने डाउनलोड किया है, जिसमें से सिर्फ देहरादून में ही 16,649 डाउनलोड हुए हैं।
इससे साफ संकेत मिलता है कि सर्वे में जो तथ्य दर्शाए गए, वे स्थानीय हकीकत से मेल नहीं खाते। पुलिस का यह भी कहना है कि सर्वे के दौरान न तो किसी थाने से संपर्क किया गया, न ही किसी केस स्टडी को विस्तार से परखा गया।
पुलिस की कार्रवाई: एजेंसी तलब
NARI रिपोर्ट तैयार करने वाली P-Value Analytics नामक निजी एजेंसी पर अब कानूनी कार्रवाई के संकेत मिल रहे हैं। देहरादून के SSP अजय सिंह ने कंपनी को समन जारी किया है और सर्वे से जुड़े सभी दस्तावेजों के साथ पुलिस के सामने पेश होने का निर्देश दिया है। SSP का कहना है कि अगर कंपनी संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे पाती, या यह सिद्ध हो जाता है कि सर्वे की पद्धति में गंभीर खामियां हैं, तो उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
हालांकि, कंपनी के प्रतिनिधि मयंक धय्या ने पुलिस के सामने यह सफाई दी कि यह सर्वे शैक्षणिक उद्देश्य के लिए किया गया था और इसे विश्वविद्यालय के छात्रों की एक रिसर्च परियोजना के तौर पर संचालित किया गया था। इसमें डेटा संग्रह की एक टीम और विश्लेषण करने वाली दूसरी टीम शामिल थी। लेकिन पुलिस ने इस जवाब को असंतोषजनक बताया और अब मामले की जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है।
अपराध के आंकड़े क्या कहते हैं?
उत्तराखंड पुलिस ने इस रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल उठाते हुए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों को सामने रखा। 2022 के आंकड़ों के अनुसार, देहरादून में महिलाओं के खिलाफ 1,205 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें 184 बलात्कार, 8 दहेज हत्याएं और 13 आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले शामिल थे। यह राज्य के कुल अपराधों का लगभग 27% था।
2021 में यह आंकड़ा 756 था, जो उस समय राज्य में दर्ज कुल मामलों का 22% था। इन आँकड़ों के ज़रिए यह दिखाने की कोशिश की गई कि भले ही अपराध की घटनाएँ चिंताजनक हों, लेकिन देहरादून को सबसे असुरक्षित शहरों की सूची में रखना आंकड़ों के अनुरूप नहीं है। NCRB की तुलना में, दिल्ली जैसे शहर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 14,277 मामले दर्ज हुए थे, इसलिए देहरादून को उसी स्तर पर रखना सवालों के घेरे में है।
सियासी आरोप-प्रत्यारोप:
इस पूरे विवाद ने अब राजनीतिक मोड़ भी ले लिया है। उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन महरा ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि अगर राजधानी ही सुरक्षित नहीं है, तो बाकी राज्य का क्या हाल होगा? उन्होंने BJP पर आरोप लगाया कि महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ चुनावी वादों तक सीमित रह गई है।
वहीं दूसरी ओर, भाजपा के अन्य राज्यों के नेता भी इस रिपोर्ट को अपने-अपने तरीके से उठा रहे हैं। तमिलनाडु में BJP नेता के. अन्नामलाई ने इस रिपोर्ट का हवाला देकर DMK सरकार की आलोचना की, क्योंकि चेन्नई को 31 में से 21वीं रैंक मिली है।
कौन है P-Value Analytics?
जिस एजेंसी पर यह विवाद केंद्रित है, वह है P-Value Analytics, जो एक डेटा साइंस और मार्केटिंग एनालिटिक्स कंपनी है। यह BBC, Air India, Airtel जैसे प्रतिष्ठित क्लाइंट्स के लिए भी काम कर चुकी है। कंपनी का दावा है कि NARI 2025 भारत की पहली ऐसी धारणा-आधारित राष्ट्रीय रिपोर्ट है, जो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उनके अनुभवों और भावनाओं को मापने का प्रयास करती है। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या "धारणा आधारित" रिपोर्ट को तथ्यात्मक साक्ष्यों के बिना प्रकाशित किया जाना उचित है?
देहरादून में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उठे इस विवाद ने एक बड़े मुद्दे की ओर इशारा किया है—आंकड़ों और धारणाओं के बीच की दूरी। जहां सरकार और पुलिस अपने रिकॉर्ड के आधार पर स्थिति को नियंत्रण में बताने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं रिपोर्ट में महिलाओं के अनुभव और नजरिए को प्राथमिकता दी गई है।
यह मामला सिर्फ देहरादून तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि महिलाओं की सुरक्षा को आंकने के लिए केवल अपराध के आंकड़े ही पर्याप्त हैं या नहीं, और क्या उनके अनुभवों को मापने के लिए एक बेहतर और पारदर्शी पद्धति विकसित की जानी चाहिए।
अब देखना यह होगा कि यह विवाद नीतिगत बदलाव की ओर ले जाएगा या एक और राजनीतिक बहस बनकर रह जाएगा।





