IIT रुड़की के विशेषज्ञों ने पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में भारी भूस्खलन की जताई आशंका
- ANH News
- 8 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 9 सित॰

आईआईटी रुड़की की एक ताज़ा और महत्वपूर्ण रिपोर्ट ने उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा जोखिमों को लेकर गंभीर चिंता जताई है। इस शोध में पहली बार राज्य के विभिन्न जिलों का गहराई से अध्ययन कर यह आकलन किया गया है कि किन क्षेत्रों में भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा सबसे अधिक है। रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि उत्तराखंड, विशेष रूप से उसके पर्वतीय क्षेत्र, एक आपदा "हॉटस्पॉट" बनते जा रहे हैं, जहां भविष्य में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाओं की आशंका जताई जा रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला सबसे अधिक संवेदनशील पाया गया है। इसके बाद पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों का नाम आता है, जो भीषण भूस्खलनों और भूकंप के लिहाज से अत्यधिक जोखिम में हैं। इन क्षेत्रों की भौगोलिक बनावट- जैसे तीव्र ढलान, कमजोर मिट्टी की परतें और लगातार बढ़ती मानवीय गतिविधियां- आपदा के खतरे को और गंभीर बना रही हैं। साथ ही, भारी मानसूनी वर्षा इन संवेदनशील क्षेत्रों में तबाही के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देती है।
आईआईटी रुड़की की यह अध्ययन रिपोर्ट पीक ग्राउंड एक्सेलेरेशन (PGA) तकनीक के आधार पर तैयार की गई है, जिसके जरिए यह आकलन किया गया कि भूकंप के समय किन इलाकों में सबसे अधिक भूस्खलन की संभावना है। निष्कर्ष यह बताते हैं कि जब भूकंप और भारी वर्षा एक साथ होती हैं, तब ढलानों की अस्थिरता कई गुना बढ़ जाती है और सामान्य भूस्खलनों की तुलना में अधिक व्यापक और खतरनाक आपदाएं जन्म लेती हैं। विशेष रूप से अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों की घाटियों में स्थित रुद्रप्रयाग जिला अपने तीखे पहाड़ी ढलानों, भूकंपीय इतिहास और बसी हुई बस्तियों के कारण सबसे अधिक संकटग्रस्त माना गया है।
विगत वर्षों में आए कई उदाहरण इस रिपोर्ट की गंभीरता को प्रमाणित करते हैं। वर्ष 2023 में मानसून के दौरान 200 से अधिक भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें सड़कें बंद हुईं और कई लोगों की जानें चली गईं। इससे पहले, 2013 की केदारनाथ त्रासदी ने राज्य को झकझोर कर रख दिया था, जिसकी स्मृतियाँ आज भी भयावह हैं। हाल ही में उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि राज्य किस कदर आपदा के मुहाने पर खड़ा है-जहां एक ही घटना में बहते पानी ने होटल, होमस्टे और कई घरों को मलबे में तब्दील कर दिया।
इस अलार्मिंग रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने भी स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए तत्काल सभी जिलों को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आश्वासन दिया है कि किसी भी संभावित आपदा की स्थिति में प्रभावित लोगों को तत्काल राहत और सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। सभी राहत एवं बचाव दलों को 24 घंटे तैयार रहने का आदेश दिया गया है।
आईआईटी रुड़की की यह रिपोर्ट न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि नीति-निर्माताओं और प्रशासन के लिए एक चेतावनी भी है कि अब उत्तराखंड को आपदा-प्रबंधन के मामले में और अधिक सशक्त, सतर्क और रणनीतिक रूप से तैयार रहना होगा। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में संभावित त्रासदियां कहीं अधिक भयावह रूप ले सकती हैं।





