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संघर्ष से सफलता तक: कबाड़ बेचने वाले के बेटे रामजी कश्यप बने राष्ट्रीय खो-खो चैंपियन

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 4 फ़र॰
  • 2 मिनट पठन



Haldwani: खेलों में जुनून, मेहनत और संघर्ष से हर सपना साकार किया जा सकता है। महाराष्ट्र के खो-खो खिलाड़ी रामजी कश्यप की कहानी भी इसी प्रेरणा का उदाहरण है। आर्थिक तंगी और संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने अपने सपनों को उड़ान दी और राष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल की। आज वे न सिर्फ महाराष्ट्र खो-खो टीम के अहम खिलाड़ी हैं, बल्कि केंद्र सरकार की नौकरी भी प्राप्त कर चुके हैं।


परिवार की आर्थिक तंगी, फिर भी नहीं मानी हार


रामजी कश्यप का परिवार कबाड़ बेचने का काम करता है। उनके पिता और बड़े भाई आज भी यही काम कर रहे हैं, जबकि छोटा भाई भी खो-खो खिलाड़ी है। एक समय ऐसा भी था जब रामजी के पास खेलने के लिए जूते तक नहीं थे। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके जुनून और समर्पण ने उन्हें आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका।


राष्ट्रीय खेलों में जीता स्वर्ण पदक


रामजी कश्यप महाराष्ट्र की खो-खो टीम के लिए जर्सी नंबर 6 पहनकर खेलते हैं। वे अपनी टीम के साथ हल्द्वानी में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने पहुंचे, जहां उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीता। अपनी इस उपलब्धि पर रामजी ने खुशी जताई और कहा कि टीम के लिए बेहतरीन प्रदर्शन करना उनकी प्राथमिकता रही है।


खो-खो ने बदली जिंदगी


रामजी ने बताया कि उन्होंने 11 साल की उम्र से खो-खो खेलना शुरू किया। शुरुआत में परिवार से कोई सहयोग नहीं मिला, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने खेल को जारी रखा। समय के साथ उनके खेल में सुधार हुआ, और उन्होंने राष्ट्रीय और स्थानीय प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा साबित की। इसी मेहनत का परिणाम है कि आज वे खो-खो के दम पर सरकारी नौकरी भी हासिल कर चुके हैं।


युवाओं को दी खेलों में भाग लेने की प्रेरणा


रामजी कश्यप ने युवा खिलाड़ियों से खेलों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि सही दिशा में मेहनत करने से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

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