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सामाजिक समरसता के लिए मदरसों के बच्चों को भी मिले गीता ज्ञान: धामी सरकार

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 17 जुल॰
  • 1 मिनट पठन
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उत्तराखंड मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने धामी सरकार द्वारा स्कूलों में श्रीमद्भगवत गीता के पाठ को अनिवार्य करने की पहल को एक शानदार कदम बताते हुए कहा है कि इसे मदरसों में भी लागू किया जाएगा।


उन्होंने बताया कि मदरसों में संस्कृत शिक्षा प्रारंभ करने के लिए शिक्षा विभाग के साथ एमओयू (संझौता पत्र) अंतिम चरण में है। शुरुआत में चयनित मदरसों में संस्कृत की पढ़ाई शुरू की जाएगी और इसके बाद इसे धीरे-धीरे सभी मदरसों में लागू किया जाएगा।


श्रीराम और गीता से जुड़े संस्कारों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव

मुफ्ती कासमी ने कहा,

"मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जीवनी रामायण है और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश श्रीमद्भगवत गीता में संकलित हैं। अगर इनका अनुवाद मदरसों और अन्य विद्यालयों में होगा तो इससे एक नया समाज का निर्माण होगा, जहां सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक सौहार्द को बल मिलेगा।"


उन्होंने आगे कहा कि गीता और रामायण से मिलने वाले आदर्शों का पालन करने से समाज में नैतिकता और पारिवारिक मूल्य मजबूत होंगे।


"श्रीराम ने अपने पिता की आज्ञा मानते हुए राजपाट छोड़ दिया, यह एक महान उदाहरण है। अगर हम इनके आदर्शों को अपनाएंगे तो वृद्धाश्रमों में कमी आएगी क्योंकि लोग अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करेंगे।"


सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने का प्रयास

मुफ्ती शमून कासमी ने जोर देकर कहा कि श्रीराम की जीवनी और गीता के उपदेशों से न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम समाज भी लाभान्वित होगा।


"यह कदम हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों को एक-दूसरे के करीब लाने में सहायक होगा। मैं मुसलमानों से आग्रह करता हूं कि वे इस पहल को समझें और सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। इसमें विरोध की कोई आवश्यकता नहीं है।"

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