Haridwar: धामी का दृढ़ संकल्प- संस्कृत को वैश्विक पहचान मिले, पतंजलि विश्वविद्यालय में 62वें शास्त्रोत्सव के समापन में शामिल हुए सीएम
- ANH News
- 22 मार्च
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हरिद्वार: केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली द्वारा पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित 62वें अखिल भारतीय शास्त्रोत्सव का समापन समारोह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की उपस्थिति में हुआ। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने भारतीय शास्त्रों और संस्कृत के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि ये शास्त्र केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि सृष्टि के गहरे रहस्यों को जानने का एक अद्वितीय मार्ग हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय शास्त्रों में निहित ज्ञान आज के विज्ञान में भी परिलक्षित होता है और यह दुनिया को एक नई दिशा दिखाने में सक्षम है।
मुख्यमंत्री ने भारतीय संस्कृति और परंपरा की नींव में हमारे प्राचीन शास्त्रों का विशेष महत्व बताया, जिनमें विज्ञान, योग, चिकित्सा, गणित और दर्शन के गूढ़ रहस्यों का समावेश है। उन्होंने यह बल दिया कि ऋषि-मुनियों द्वारा किए गए अनुसंधान और उनके ज्ञान को केवल विरासत के रूप में संरक्षित न किया जाए, बल्कि उसे आधुनिक दृष्टिकोण से विकसित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां इससे लाभान्वित हो सकें। मुख्यमंत्री धामी ने इस शास्त्रोत्सव के माध्यम से संस्कृत और शास्त्रों के गूढ़ ज्ञान को वैश्विक स्तर पर फैलाने की आवश्यकता की बात की।
समारोह के दौरान मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा सनातन धर्म और भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहित करने के लिए किए जा रहे विशेष कदमों की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यदि हम प्राचीन भारतीय ज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करें, तो यह समस्त मानवता के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, योगऋषि स्वामी रामदेव ने भी इस अवसर पर संस्कृत के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह पूरे विश्व में किसी भी क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान करने की शक्ति रखती है। स्वामी रामदेव ने यह भी कहा कि भारतीय शास्त्रों में विश्व के सभी ज्ञान-विज्ञान का समावेश है, और हमें गर्व होना चाहिए कि संस्कृत हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।
पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने शास्त्रों और संस्कृत के महत्व को जीवन की उन्नति के लिए मार्गदर्शक बताया। उन्होंने देशभर से आए विद्वानों और विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे वेदों और शास्त्रों के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सतत प्रयास करें।
कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने संस्कृत को समस्त ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी का संगम बताया और उत्तराखंड को संस्कृत के क्षेत्र में अग्रणी राज्य बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
समापन समारोह में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी और अन्य गणमान्य अतिथियों ने भी संस्कृत और भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता और महत्व पर अपने विचार साझा किए।
इस कार्यक्रम में देशभर के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आए प्रतिभागियों को पुरस्कार प्रदान किए गए। समापन समारोह का संयोजन डॉ. मधुकेश्वर भट्ट और मंच संचालन डॉ. पवन व्यास ने किया। इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी पुण्यानंदगिरिजी महाराज, उत्तराखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद जी महाराज, और अन्य प्रतिष्ठित विद्वान एवं गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित रहे।