गुइलेन बैरे सिंड्रोम नसों को कमजोर बनाती है, क्या है इस बीमारी के लक्षण और कैसे करें बचाव?
- ANH News
- 31 जन॰
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महाराष्ट्र में गुइलेन बैरे सिंड्रोम (GBS) के 127 संदिग्ध मामले सामने आए हैं, जिनमें से अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है। कोरोना महामारी के बाद यह एक नया वायरस है जिसने प्रदेश में दहशत फैला दी है। खासकर पुणे में लगातार इसके मामले बढ़ रहे हैं। इस संदर्भ में, लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, क्या यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है, और क्या यह जानलेवा हो सकता है।
गुइलेन बैरे सिंड्रोम: एक पुरानी बीमारी का नया रूप
अपोलो हॉस्पिटल इंद्रप्रस्थ के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निखिल मोदी ने एक खास रिपोर्ट में बताया कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम कोई नई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक पुरानी बीमारी है। हालांकि, इसका नया वेरिएंट इस समय तेजी से लोगों को प्रभावित कर रहा है। इस पर पूरी तरह से रिसर्च अभी जारी है, और इसकी घातक प्रकृति के बारे में ज्यादा जानकारी जल्द ही सामने आ सकती है।
कैसे होता है यह सिंड्रोम?
डॉ. मोदी के अनुसार, गुइलेन बैरे सिंड्रोम (GBS) में शरीर की नसें प्रभावित होती हैं। इसके कारण शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं, जो नसों को डैमेज करने लगती हैं। यह नसों की कमजोरी और सेंसेशन में कमी का कारण बनता है। मसल्स को नियंत्रित करने वाली नसें पूरी तरह से प्रभावित हो जाती हैं, जिससे पैरों से लकवा शुरू होता है और धीरे-धीरे यह शरीर के अन्य हिस्सों तक फैल सकता है।
सिंड्रोम के प्रभाव का तरीका
गुइलेन बैरे सिंड्रोम में, शरीर का उपरी हिस्सा, जैसे कि दिमाग और गर्दन, सामान्य रूप से काम करते रहते हैं। लेकिन इस बीमारी के प्रभाव से व्यक्ति अपने हाथों और पैरों को हिला-डुला नहीं पाता। गर्दन के नीचे का हिस्सा लकवा ग्रस्त हो सकता है, जिससे शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करने का जोखिम होता है। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही नसों पर हमला करता है।
क्या गुइलेन बैरे सिंड्रोम जानलेवा हो सकता है?
डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम को अगर समय रहते पहचाना जाए, तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन अगर इसके लक्षणों को नजरअंदाज किया गया और यह बीमारी चेस्ट मसल्स तक फैल गई, तो मरीज को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। ऐसे में अगर मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जाता है और स्थिति में सुधार नहीं होता, तो मौत का खतरा बढ़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है।
लक्षणों पर ध्यान दें: कब करना चाहिए डॉक्टर से संपर्क?
डॉ. मोदी ने बताया कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम के लक्षणों में अचानक से पैरों का लड़खड़ाना, हाथों और पैरों में कमजोरी, मांसपेशियों में कमजोरी या सुन्नपन महसूस होना प्रमुख हैं। यदि किसी व्यक्ति को हाथ या पैर हिलाने में कठिनाई हो रही है या वे बेजान महसूस कर रहे हैं, तो तुरंत अपने स्थानीय डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ये लक्षण गुइलेन बैरे सिंड्रोम के संकेत हो सकते हैं।
इलाज और बचाव: कैसे करें सुरक्षित?
डॉ. मोदी ने कहा कि गुइलेन बैरे सिंड्रोम के इलाज में मुख्य रूप से प्लाज्मा एक्सचेंज और इम्युनोग्लोबुलिन चढ़ाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह प्रक्रिया मरीज के शरीर से खतरनाक एंटीबॉडीज को हटाकर उसे रिकवर करने में मदद करती है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि इस बीमारी से बचाव का एकमात्र तरीका इसके लक्षणों को समय रहते पहचानना है। साथ ही, एक मजबूत इम्यूनिटी सिस्टम इस बीमारी से लड़ने में मददगार साबित हो सकता है।
निष्कर्ष:
गुइलेन बैरे सिंड्रोम एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अगर इसका समय रहते इलाज किया जाए तो यह नियंत्रित किया जा सकता है। लक्षणों पर तुरंत ध्यान देना और अपनी इम्यूनिटी को मजबूत रखना इस बीमारी से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। किसी भी प्रकार की असुविधा महसूस होने पर शीघ्र चिकित्सकीय सलाह लेना बेहद आवश्यक है।





