ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता असर: उत्तराखंड में सात वर्षों में सेब-आड़ू का उत्पादन आधा रह गया
- ANH News
- 26 मई
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ऋषिकेश/देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ों में जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं। फल उत्पादन में गिरावट, वृक्षरेखा (ट्री लाइन) का ऊंचाई की ओर खिसकना, और पारंपरिक फल प्रजातियों का लुप्त होना—ये संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र एक कठिन दौर से गुजर रहा है।
समय से पहले खिला बुरांश, वैज्ञानिक चिंतित
इस वर्ष पहाड़ों पर बुरांश का फूल समय से पहले खिल गया, जिससे वैज्ञानिकों की चिंता और गहराई। यह असामान्य जैविक गतिविधि उत्तराखंड के प्राकृतिक मौसम चक्र में हो रहे व्यवधान का संकेत है। बुरांश के अलावा अब सेब, आड़ू, नाशपाती और आलूबुखारा जैसी फसलों का उत्पादन तेजी से घट रहा है।
फल उत्पादन में गिरावट के आंकड़े चिंताजनक
उत्तराखंड में फल उत्पादन का क्षेत्र वर्ष 2016-17 में 1.77 लाख हेक्टेयर था, जो 2022-23 में घटकर केवल 81,692.58 हेक्टेयर रह गया — लगभग 54% की गिरावट।
कुल फल उत्पादन भी इस अवधि में 6.6 लाख मीट्रिक टन से घटकर 3.69 लाख मीट्रिक टन रह गया — यानी करीब 44% की गिरावट।
सेब उत्पादन का क्षेत्रफल 25,201 हेक्टेयर से घटकर 11,327 हेक्टेयर रह गया, जबकि उत्पादन में 30% की कमी आई।
नींबू की प्रजातियों में भी 58% की गिरावट दर्ज की गई है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की मार
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी हिमालय में सर्दियों और वसंत के मौसम में तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे:
देवदार के वृक्षों की संख्या में 38% तक गिरावट आई है।
वृक्षरेखा हर वर्ष अधिक ऊंचाई की ओर खिसक रही है।
बुग्यालों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
डॉ. रश्मि चमोली, एग्रोफॉरेस्ट्री विशेषज्ञ, कहती हैं:
“सेब को अच्छी पैदावार के लिए दिसंबर से मार्च तक 1200 से 1600 घंटे तक 7°C से कम तापमान की आवश्यकता होती है। लेकिन बर्फबारी की कमी और गर्म सर्दियों के चलते यह पूरी नहीं हो पा रही है।”
जिलावार गिरावट के आंकड़े
अल्मोड़ा: फल उत्पादन में 84% की गिरावट – राज्य में सर्वाधिक।
चमोली: क्षेत्रफल में 13% की गिरावट लेकिन उत्पादन में 53% की कमी।
टिहरी और देहरादून: बागवानी के क्षेत्रफल में गिरावट, पर उत्पादन स्थिर।
उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग: क्षेत्रफल घटा लेकिन उत्पादन में क्रमशः 26.5% और 11.7% की वृद्धि।
हिमालय में घट रही बर्फ, खतरे में जीवन चक्र
वर्ष 2000 की तुलना में 2020 में उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 90 से 100 वर्ग किमी तक बर्फ का दायरा सिकुड़ गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि बर्फ की मात्रा कम होने से सेब, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा, अखरोट और खुबानी जैसे फलों का जीवनचक्र प्रभावित हो रहा है।
कृत्रिम प्रयोगों में भी यह सामने आया कि हिमालयी पौधे तेजी से ऊंचाई की ओर स्थानांतरित नहीं हो पा रहे हैं, न ही वे खुद को गर्म तापमान के अनुरूप ढाल पा रहे हैं। इससे कई प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका जताई जा रही है।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग का असर केवल तापमान में वृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर आर्थिक आजीविका, पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता पर भी गहरा असर डाल रहा है। यदि स्थानीय और राज्य स्तर पर ठोस रणनीतियाँ नहीं अपनाई गईं, तो आने वाले वर्षों में हिमालयी कृषि, फलोत्पादन और वनस्पति जगत में भारी क्षति हो सकती है।





