'निखण्यां जोग' गढ़वाली फिल्म की ऋषिकेश में प्रदर्शनी, दर्शकों को मिलेगा सांस्कृतिक अनुभव
- ANH News
- 24 मई
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23 मई को देहरादून रोड स्थित रामा पैलेस में गढ़वाली फिल्म "निखण्यां जोग" प्रदर्शित होगी। यह फिल्म दर्शकों के लिए सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक उपलब्ध रहेगी, जहां लोग इस उत्कृष्ट फिल्म का आनंद ले सकेंगे। फिल्म की शूटिंग विभिन्न खूबसूरत स्थानों पर की गई है, जिनमें उनियाल गांव, पटी सकलाना, टिहरी गढ़वाल, चंबा, कांणाताल, नागराजाधार, इठारना, देहरादून, दिल्ली और मुंबई शामिल हैं।
यह फिल्म मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मुद्दों पर आधारित है, जो दर्शकों को एक गहरी सोच और संदेश देती है। अब तक यह फिल्म देहरादून, दिल्ली और कोटद्वार के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है और अब ऋषिकेश के दर्शकों के लिए एक नई प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है।
फिल्म के निर्माता और निर्देशक की पत्रकार वार्ता
देहरादून रोड स्थित एक कॉम्प्लैक्स में "निखण्यां जोग" के कार्यकारी निर्माता डॉ. एमआर सकलानी, निर्देशक देबू रावत, और निर्माता आशा मुनेन्द्र सकलानी ने एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया। इस मौके पर फिल्म के प्रमुख कलाकारों में शामिल मोहित घिल्डियाल, मानसी शर्मा, प्राची पंवार, रवि ममगाईं, संजय बडोनी, अजय सिंह बिष्ट, पुरुषोत्तम जेठूडी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और फिल्म के बारे में अपने विचार साझा किए।
निर्देशक देबू रावत ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि "निखण्यां जोग" गढ़वाली सिनेमा की एक महत्वपूर्ण फिल्म है, जो गढ़वाली संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं को बहुत अच्छे से प्रदर्शित करती है। इस फिल्म का उद्देश्य न केवल मनोरंजन करना है, बल्कि समाज को जागरूक करना और संवेदनशील मुद्दों पर सोचने के लिए प्रेरित करना है।
यह फिल्म गायत्री आर्ट्स के बैनर तले बनी है, और इसके निर्माता आशा मुनेन्द्र सकलानी, निर्देशक देबू रावत, कार्यकारी निर्माता और कहानीकार डॉ. एमआर सकलानी हैं। फिल्म में अभिनय करने वाले कलाकारों ने भी अपनी शानदार परफॉर्मेंस से फिल्म को एक अलग ही पहचान दी है।
"निखण्यां जोग" फिल्म में गढ़वाली संस्कृति की खूबसूरत झलक, प्रेम, संघर्ष और मानवीय रिश्तों की गहरी भावनाओं को प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने का काम करती है।
इस फिल्म के माध्यम से गढ़वाली फिल्म इंडस्ट्री की कला और सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है, और यह फिल्म गढ़वाली सिनेमा के नए युग की शुरुआत मानी जा रही है।





