अपने ही लोगों से मुंह मोड़ गया पाकिस्तान, अटारी सीमा पर फंसे सैकड़ों पाकिस्तानी
- ANH News
- 3 मई
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अटारी बॉर्डर (अमृतसर), वीरवार – भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की गर्म हवा ने एक बार फिर उन आम नागरिकों को झुलसा दिया, जिनका कसूर सिर्फ इतना है कि उनका दिल सरहद के दोनों ओर बंटा हुआ है। वीरवार को अटारी सीमा पर भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा, जब पाकिस्तान ने अपने ही नागरिकों को लेने से इनकार कर दिया और सीमा पर लगा गेट बंद रखा।
भारत सरकार द्वारा दी गई 30 अप्रैल की डेडलाइन समाप्त हो चुकी थी, बावजूद इसके पाकिस्तान की ओर से संकेत था कि यदि वह गेट खोलता है, तो नागरिकों को भेजा जा सकता है। इसी आस में सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिक बॉर्डर तक पहुंचे और घंटों इंतजार करते रहे। पर जब पाकिस्तान रेंजर्स ने गेट खोलने से साफ इनकार कर दिया, तो सभी मायूस होकर लौट गए।
बॉर्डर पर रोके गए इंसान, थम गई उम्मीदें
सीमा पर न सिर्फ पाकिस्तानी नागरिक फंसे, बल्कि गेट न खुलने के कारण कुछ भारतीय भी अपनी ही सरजमीं पर लौट नहीं सके। दोनों ओर के लोग सीमा के पास असहाय बैठे रहे, और उनकी आँखों में बार-बार यह सवाल कौंधता रहा – क्या सरहदें इंसानियत से भी बड़ी हो गई हैं?

“हमारे बच्चों को भेजा, हमें क्यों रोका?” – नबीला और शरमीन का सवाल
45 दिन के वीज़ा पर भारत आईं नबीला और शरमीन, जो पाकिस्तान से अपनी बीमार मां से मिलने आई थीं, अब अपने ही बच्चों से बिछड़ चुकी हैं। उनके बच्चों के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट था, इसलिए उन्हें बुधवार को वापस भेज दिया गया। लेकिन मांओं के पास भारतीय पासपोर्ट होने के कारण उन्हें रोक लिया गया।

भावुक नबीला बोलीं, “हम सिर्फ मां की ममता के खिंचाव में यहां आए थे, कोई अपराध नहीं किया। अब हमारे अपने बच्चे दूसरी तरफ हैं, और हम यहां फंसी हुई हैं। क्या हमारी ममता किसी पासपोर्ट की मोहताज होनी चाहिए?”
हरिद्वार से लौटते वक्त बॉर्डर पर अटका 16 लोगों का परिवार
राजेश कुमार, जो अपने 16 परिजनों के साथ तीर्थ स्नान के लिए भारत आए थे, अटारी बॉर्डर पर असमंजस की स्थिति में फंसे रहे। 30 अप्रैल की शाम तक वे बॉर्डर पर पहुंचे, लेकिन समय सीमा समाप्त होने के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली। अब उनके पास न कोई ठिकाना है, न ही स्पष्ट निर्देश कि आगे क्या होगा।

“हमने धार्मिक यात्रा की, किसी राजनीतिक मकसद से नहीं आए। लेकिन अब यहाँ फंसे हैं, और समझ नहीं आता कहाँ जाएँ,” उन्होंने मायूस स्वर में कहा।
मां का इंतज़ार करती रही 15 साल की फातिमा
फातिमा, जो अपनी बहन के साथ पाकिस्तान से भारत लौटी, बॉर्डर पर आंखें नम किए घंटों अपनी मां का इंतज़ार करती रही। उसकी मां का वीजा खत्म हो चुका था, इसलिए उसे पाकिस्तान में रोक लिया गया। फातिमा की मासूम आवाज़ में बसी पीड़ा हर किसी को झकझोर देती है: “मम्मी को छोड़कर आना बहुत बुरा लगा। मैं सरकार से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूं कि मेरी मम्मा को वापस लाया जाए।”
रजिया की अपील: "हमें लौटने दीजिए"
रजिया, जो कराची से भारत अपने रिश्तेदारों से मिलने आई थीं, वीरवार को दिनभर अटारी बॉर्डर पर बैठी रहीं। अपने छोटे बच्चों के साथ बैठी रजिया की आंखों में थकावट, डर और निराशा तीनों थे। “बस इतना चाहती हूं कि जो लोग अपने वतन लौटना चाहते हैं, उन्हें लौटने दिया जाए,” उन्होंने कहा।
सरहदें बंद थीं, पर आंखें खुली थीं – आंसुओं के साथ
वीज़ा, पासपोर्ट और सीमा की औपचारिकताएं जब भावनाओं और रिश्तों के बीच दीवार बन जाएं, तो सबसे ज्यादा चोट उन लोगों को लगती है, जिनका दिल दोनों मुल्कों में बसा होता है।
इस दिन अटारी बॉर्डर पर सिर्फ गेट बंद नहीं हुआ, बल्कि भरोसे, मानवता और रिश्तों की उम्मीदें भी कैद हो गईं।





