परेश रावल चोट ठीक करने के लिए पीते थे खुद का पेशाब, रिपोर्ट देख डॉक्टर भी हैरान
- ANH News
- 4 मई
- 3 मिनट पठन

अभिनेता और पूर्व भाजपा सांसद परेश रावल ने हाल ही में एक इंटरव्यू में ऐसा दावा किया है, जिसने सोशल मीडिया और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच खलबली मचा दी है। उन्होंने कहा कि एक समय जब उन्हें पैर में गंभीर चोट लगी थी, तो उन्होंने 15 दिनों तक हर सुबह खाली पेट अपना पेशाब पीया और बाद में जब एक्स-रे रिपोर्ट आई, तो डॉक्टर भी चौंक गए।
उनका यह दावा कई लोगों को हैरानी में डाल गया, वहीं मेडिकल जगत से जुड़े विशेषज्ञों ने इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं। जहां कुछ लोग इसे प्राकृतिक चिकित्सा मान रहे हैं, वहीं अधिकांश डॉक्टरों का कहना है कि यह पूरी तरह अवैज्ञानिक, हानिकारक और भ्रामक है।
परेश रावल का दावा: "15 दिन पेशाब पीया, डॉक्टर भी दंग रह गए"
द लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में परेश रावल ने बताया:
“जब मैं नानावटी अस्पताल में भर्ती था, तब फिल्म निर्देशक वीरू देवगन मुझसे मिलने आए। उन्होंने मेरी चोट के बारे में पूछा और फिर मुझे सुबह-सुबह अपना पेशाब पीने की सलाह दी। उनका कहना था कि सभी फाइटर ऐसा करते हैं। मैंने शराब, मटन, तंबाकू सब छोड़ दिया और हर सुबह पेशाब पीना शुरू कर दिया — बीयर की तरह। पंद्रह दिन तक ऐसा किया और जब एक्स-रे हुआ तो डॉक्टर हैरान रह गए कि रिकवरी इतनी जल्दी कैसे हो गई।”
यूरिन थेरेपी: कहां से आई यह परंपरा?
यूरिन थेरेपी या यूरोफैगी हजारों साल पुरानी एक पद्धति है, जिसका उल्लेख मिस्र, यूनान और रोमन काल की पारंपरिक चिकित्सा में मिलता है।
इसे 20वीं सदी में प्रसिद्धि तब मिली जब ब्रिटिश नैचुरोपैथ जॉन डब्ल्यू आर्मस्ट्रांग ने 1945 में अपनी किताब ‘The Water of Life’ में यह दावा किया कि पेशाब पीना गंभीर बीमारियों का इलाज हो सकता है।
लेकिन आधुनिक विज्ञान और एलोपैथिक चिकित्सा इस थ्योरी को सिरे से खारिज करती है। आज के चिकित्सक इसे एक गलत धारणा और स्वास्थ्य के लिए संभावित रूप से खतरनाक बताते हैं।
यूरिन है क्या? और क्यों इसे शरीर बाहर निकालता है?
मेडिकली देखा जाए तो यूरिन (मूत्र) शरीर का अपशिष्ट उत्पाद है। यह मुख्यतः निम्न तत्वों से बना होता है:
-यूरिया और क्रिएटिनिन (प्रोटीन मेटाबॉलिज्म के बायप्रोडक्ट्स)
-इलेक्ट्रोलाइट्स (सोडियम, पोटेशियम आदि)
-विषैले तत्व (toxins)
-दवाओं के अपघटन से बने रसायन
-मृत कोशिकाएं और बैक्टीरिया
इन सभी तत्वों को शरीर किडनी के माध्यम से फिल्टर करता है और यूरिन के रूप में बाहर निकालता है। इन्हें दोबारा शरीर में डालना प्राकृतिक प्रक्रिया के विरुद्ध है।
डॉक्टर्स की चेतावनी: "ये एक भ्रामक और घातक सलाह है"
डॉ. अम्बरीश मिथल (मैक्स हेल्थकेयर):
"एक प्रसिद्ध एक्टर का ऐसा दावा करना शर्मनाक है। इससे समाज के लाखों लोगों को भ्रम हो सकता है। कृपया मूत्र का सेवन न करें। यह उल्टी करने जैसा है और वैज्ञानिक रूप से पूरी तरह झूठ है।"
डॉ. सुमीत शाह (PSRI हॉस्पिटल):
“जो लोग मूत्र पीना चाहते हैं, उन्हें पीने दें। लेकिन डॉक्टरों को इन दावों का खंडन करना बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि यह समाज को गलत दिशा में ले जा रहा है।”

डॉ. साइरिएक एबी फिलिप्स ('द लिवर डॉक्टर'):
“यूरिन में टॉक्सिन्स होते हैं जिन्हें शरीर बाहर निकालने के लिए मेहनत करता है। इसे फिर से पीना अपने शरीर के प्रति अत्याचार है। इसका कोई वैज्ञानिक लाभ नहीं है।”

विशेषज्ञों की राय: सिर्फ प्राकृतिक नहीं, जोखिम भरा है ये कदम
संभावित जोखिम जो यूरिन पीने से हो सकते हैं:
-बैक्टीरिया संक्रमण
-किडनी पर दबाव बढ़ना
-इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन
-डिहाइड्रेशन
-विषाक्त तत्वों का रक्त में प्रवेश
-पाचन संबंधी विकार
डॉ. आदित्य खेमका (P.D. हिंदुजा हॉस्पिटल):
“हो सकता है कि परेश रावल की रिकवरी एक प्राकृतिक प्रक्रिया हो, लेकिन इसका संबंध पेशाब पीने से जोड़ना सरासर गलत है।”
डॉ. विक्रम कालरा (C.K. बिरला हॉस्पिटल):
“कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि पेशाब पीने से कोई बीमारी ठीक हो सकती है। इसके विपरीत, इससे संक्रमण और किडनी डैमेज होने की आशंका बढ़ जाती है।”
रिकवरी के लिए मेडिकल साइंस क्या कहती है?
चोट, फ्रैक्चर या सूजन जैसी स्थितियों में विशेषज्ञ निम्न बातों की सलाह देते हैं:
-प्रोटीन, विटामिन C, D और कैल्शियम से भरपूर संतुलित आहार
-पर्याप्त पानी पीना और हाइड्रेटेड रहना
-धूम्रपान और शराब से परहेज़
-फिजियोथेरेपी और डॉक्टर की सलाह अनुसार व्यायाम
-पूरी नींद और तनाव मुक्त दिनचर्या
व्यक्तिगत अनुभव, वैज्ञानिक सच्चाई
परेश रावल का अनुभव उनका व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन इसका प्रचार इस तरह करना कि यह एक वैकल्पिक उपचार है — समाज के लिए हानिकारक और भ्रामक हो सकता है।
स्वास्थ्य से जुड़ा कोई भी निर्णय लेने से पहले हमेशा एक योग्य डॉक्टर या हेल्थ प्रोफेशनल की सलाह लेना जरूरी है। किसी फिल्मी सितारे की व्यक्तिगत बात को सार्वभौमिक सच्चाई मानना खतरनाक हो सकता है।





