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पतंजलि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में 424 छात्रों के उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत, राष्ट्रपति मुर्मू ने बांटी डिग्रियां

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 4 दिन पहले
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने तीन दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर आज देहरादून पहुंचीं, जहां जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। एयरपोर्ट पर पुष्पगुच्छ भेंट कर औपचारिक स्वागत के बाद राष्ट्रपति हरिद्वार के लिए रवाना हुईं, जहाँ उन्होंने पतंजलि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। समारोह में उन्होंने छात्र-छात्राओं को डिग्रियां और मेडल प्रदान किए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी और राज्यपाल गुरमीत सिंह भी उपस्थित रहे।


दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने छात्राओं की उपलब्धियों पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि यह गर्व का विषय है कि इस वर्ष 64 प्रतिशत मेडल बेटियों ने प्राप्त किए हैं। उन्होंने कहा कि यही बेटियां भविष्य में भारत का गौरव बढ़ाएँगी। राष्ट्रपति ने कहा कि आज का भारत अपनी बेटियों से बड़ी अपेक्षाएँ रखता है, क्योंकि यदि वे देश के विकास में पीछे रह जाएँगी, तो विकसित भारत का सपना अधूरा रह जाएगा। उन्होंने कहा कि हरिद्वार की यह पवित्र धरती दर्शन, साधना और संस्कृति का संगम है, और पतंजलि विश्वविद्यालय ने योग, आयुर्वेद और अध्यात्म के माध्यम से भारतीय परंपरा को नई दिशा दी है।


राष्ट्रपति ने महर्षि पतंजलि को नमन करते हुए कहा कि उनकी दी हुई योग परंपरा आज पूरे विश्व में भारत की पहचान बन चुकी है। उन्होंने कहा कि पतंजलि विश्वविद्यालय ने शिक्षा के साथ सौंदर्य, संस्कार और आध्यात्म का समन्वय कर एक आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया है। यहां के छात्र विज्ञान और आध्यात्म के संतुलन से आदर्श जीवन निर्माण में योगदान देंगे। राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों से कहा कि वे श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांतों को अपनाएं, निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करें और सरलता व तपस्या को जीवन का हिस्सा बनाएं। उन्होंने कहा कि जैसे भागीरथ ने कठोर तपस्या से मां गंगा को पृथ्वी पर लाया, वैसे ही विद्यार्थी भी अपने कर्म और समर्पण से समाज के उत्थान में योगदान दें।


उन्होंने कहा कि पतंजलि विश्वविद्यालय केवल व्यक्ति निर्माण का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का माध्यम भी बन रहा है। योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में भारत ने जो योगदान दिया है, उससे पूरी दुनिया आज प्रेरणा ले रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि आज भारत न केवल योग दिवस मना रहा है, बल्कि पूरे विश्व को स्वास्थ्य, संतुलन और शांति का मार्ग दिखा रहा है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भविष्य में योग, प्राणायाम और आध्यात्म को विश्व स्तर पर फैलाकर भारत को “विश्व गुरु” के रूप में स्थापित करेंगे। राष्ट्रपति ने सभी विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं।


समारोह में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पतंजलि परिवार के प्रति आभार जताते हुए कहा कि उत्तराखंड सरकार शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति लागू कर राज्य को शोध, विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जोड़ा जा रहा है। देहरादून में साइंस सिटी की स्थापना की जा रही है ताकि रिसर्च और टेक्नोलॉजी को नए आयाम मिल सकें। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार युवाओं को “नौकरी ढूंढने वाला” नहीं, बल्कि “नौकरी देने वाला” बना रही है। नकल माफिया पर सख्त कानून लागू कर शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने के लिए सरकार संकल्पबद्ध होकर कार्य कर रही है और इस दिशा में सभी के सहयोग की अपेक्षा है।


राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने पतंजलि विश्वविद्यालय के माध्यम से योग, आयुर्वेद और स्वदेशी के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से योग को वैश्विक मंच पर पहचान मिली है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नई क्रांति आई है। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है और यह प्रसन्नता की बात है कि युवा अब प्राचीन ज्ञान, आयुर्वेद और योग के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा तभी सार्थक होगी जब इसका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचेगा।


दीक्षांत समारोह में कुल 1424 विद्यार्थियों को डिग्रियाँ प्रदान की गईं, जिनमें 744 स्नातक और 615 परास्नातक छात्र-छात्राएँ शामिल थीं। इसके अलावा 62 शोधार्थियों को पीएचडी, तीन को डीलिट की उपाधि और 54 को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। पूरे समारोह का वातावरण गरिमामय, ऊर्जावान और सांस्कृतिक गौरव से परिपूर्ण रहा, जिसमें राष्ट्रपति की उपस्थिति ने इसे और भी ऐतिहासिक बना दिया।

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