top of page

धरती फटी, आसमान रोया, धराली में राखी मातम में बदली, बहनों की नजरें अब भी भाई के इंतजार में

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 10 अग॰
  • 2 मिनट पठन
ree

उत्तराखंड: जब देशभर में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जा रहा है, ठीक उसी समय उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में एक भयानक त्रासदी ने त्योहार की रौनक को पूरी तरह निगल लिया। यहां खीर गंगा गाड़ के सैलाब ने ऐसा जख्म दिया है, जो शायद ही कभी भर पाए।


धराली और हर्षिल जैसे शांत और सुरम्य गांवों को 5 अगस्त की भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने उजाड़ कर रख दिया है। मंगलवार को आए इस प्राकृतिक कहर ने कई परिवारों को हमेशा के लिए बिछड़ने को मजबूर कर दिया।


राखी की जगह हाथों में बची सिर्फ तस्वीरें

धराली की गलियों में इस बार राखी की चहल-पहल नहीं, बल्कि सन्नाटा पसरा है। कई बहनें हाथों में राखी लिए, अपने लापता भाइयों के लौटने की बाट जोह रही हैं। कुछ की आँखों में उम्मीद बाकी है, तो कुछ की उम्मीद अब आंसुओं में बह चुकी है।


“हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ उठते हैं... कि शायद आज कोई खबर आए, कोई सुराग मिले... लेकिन शाम होते-होते फिर वही मायूसी साथ लौटती है,” — एक महिला की ये सिसकती आवाज़ धराली की सैकड़ों कहानियों में से सिर्फ एक है।


चार दिन बाद भी कई लापता, परिवार खुद खोजने को मजबूर

आपदा के चार दिन बाद भी कई लोग अब तक लापता हैं। खोजबीन और रेस्क्यू अभियान जारी है, लेकिन परिणाम अभी भी निराशाजनक हैं। अपनों की तलाश में कई परिजन अब खुद ही मलबे और बहाव के बीच उतर आए हैं। उन्हें किसी चमत्कार की आस है — कि शायद कोई आवाज़ सुनाई दे, कोई निशान दिखे।


धराली में हालात हर बीतते दिन के साथ और बिगड़ते जा रहे हैं। बिजली, संचार और परिवहन के साधन बुरी तरह प्रभावित हैं। राहत और बचाव दल — जिसमें ITBP, SDRF, NDRF और स्थानीय प्रशासन शामिल हैं — दिन-रात काम कर रहे हैं।


52 लोगों को बचाया गया, सैकड़ों की तलाश अभी भी जारी

अब तक मिली जानकारी के अनुसार, राहत कार्यों के दौरान आज सुबह तक 52 लोगों को सुरक्षित बचाकर मातली स्थित ITBP कैंप में शिफ्ट किया गया है। लेकिन कई और लोग ऐसे हैं, जिनकी कोई खबर अब तक नहीं मिल पाई है। ग्रामीण इलाकों में बचाव कार्यों के लिए हेलिकॉप्टर, खोजी कुत्ते और आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं।


सरकार और प्रशासन द्वारा राहत सामग्री — जैसे खाने-पीने का सामान, दवाइयाँ, तंबू और कंबल — प्रभावित क्षेत्रों में पहुँचाई जा रही है। लेकिन दुर्गम इलाकों में पहुंचना अब भी एक चुनौती बना हुआ है।


धराली: जहां राखी से पहले ही रिश्ते टूट गए

धराली की एक बूढ़ी मां कहती हैं, “मैंने बेटे के लिए राखी नहीं खरीदी... सोचा वो आएगा तो खुद साथ चलकर ले लूँगी। अब न बेटा है, न त्योहार...”


उत्तरकाशी की यह त्रासदी सिर्फ एक आपदा नहीं, बल्कि सैकड़ों रिश्तों के उजड़ने की कहानी है।


जब देश में राखी के गीत गूंज रहे थे, धराली में सिर्फ एक आवाज़ थी- "भाई मिल जाए बस..."

bottom of page