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550 सरकारी स्कूलों को गोद लेकर उद्योगपति करेंगे शिक्षा का कायाकल्प, जानिए पूरी योजना

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 29 जुल॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड के दूरस्थ, दुर्गम और संसाधनविहीन राजकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में अब शिक्षा का नया सवेरा होगा। राज्य सरकार ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड का सार्थक उपयोग करते हुए 550 सरकारी विद्यालयों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त ‘आदर्श विद्यालय’ के रूप में विकसित करने की महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई है।


इन विद्यालयों को विभिन्न प्रतिष्ठित उद्योग समूहों द्वारा गोद लिया जाएगा, जो उन्हें स्मार्ट क्लासरूम, कंप्यूटर और विज्ञान प्रयोगशाला, पुस्तकालय, अत्याधुनिक फर्नीचर, स्वच्छ और आधुनिक शौचालय, खेल सामग्री, सुरक्षित चारदीवारी और सुव्यवस्थित खेल मैदान जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेंगे। केवल यही नहीं, गोद लेने वाले उद्योगपति इन विद्यालयों की नियमित देखरेख और रखरखाव की जिम्मेदारी भी उठाएंगे।


इस योजना का औपचारिक शुभारंभ 30 जुलाई को राजभवन, देहरादून में एक भव्य कार्यक्रम के माध्यम से होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता महामहिम राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) करेंगे, जबकि मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी विशेष उपस्थिति में रहेंगे। इस अवसर पर राज्य के शिक्षा विभाग और विभिन्न औद्योगिक समूहों के बीच सहभागिता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।


राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने बताया कि इस पहल के अंतर्गत जिन विद्यालयों को चयनित किया गया है, उनमें से अधिकांश स्कूल उत्तराखंड के कठिन भूगोल वाले पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां भौगोलिक चुनौतियों के चलते बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी रही है। यह योजना उन बच्चों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर आएगी, जो अब तक गुणवत्तापरक शिक्षा और आधुनिक संसाधनों से वंचित रहे हैं।


डॉ. रावत ने यह भी उल्लेख किया कि इस जनभागीदारी अभियान में देश-विदेश में बसे प्रवासी उत्तराखंडी भी सम्मिलित हो सकते हैं। वे अपने पैतृक गांव या आसपास के किसी भी राजकीय विद्यालय को गोद लेकर शिक्षा विभाग के सहयोग से वहां आधुनिक संसाधनों का सृजन कर सकते हैं। इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि प्रवासी उत्तराखंडियों का अपनी मातृभूमि से जुड़ाव भी और सशक्त होगा।


राज्य सरकार की यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत देती है, जो उत्तराखंड के भविष्य को संवारने में एक मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है।

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