उत्तराखंड में आपदा से हुआ बड़ा नुकसान, प्रदेश सरकार ने केंद्र से मांगा आर्थिक पैकेज
- ANH News
- 5 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 6 सित॰

देहरादून। उत्तराखंड इस वर्ष एक बार फिर प्रकृति के कहर का बड़ा शिकार बना है। मानसून सीजन के दौरान प्रदेश में भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाओं से जान-माल की व्यापक क्षति हुई है। राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रारंभिक आकलन के अनुसार, अब तक 5700 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। इस भयावह स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से विशेष आर्थिक सहायता पैकेज की मांग की है।
आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव विनोद कुमार सुमन ने गृह मंत्रालय को पत्र भेजते हुए आग्रह किया है कि राज्य को 5702.15 करोड़ रुपये की विशेष सहायता दी जाए। इस सहायता राशि का उद्देश्य न केवल आपदा से प्रभावित अवसंरचनाओं के पुनर्निर्माण में मदद करना है, बल्कि भविष्य में होने वाली संभावित क्षति को भी कम करना है।
आपदा से सबसे अधिक नुकसान लोक निर्माण विभाग को हुआ है। प्रदेशभर में सड़कें ध्वस्त होने और मार्ग अवरुद्ध होने से विभाग को करीब 1163.84 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है। सिंचाई विभाग को 266.65 करोड़, ऊर्जा विभाग को 123.17 करोड़, स्वास्थ्य विभाग को 4.57 करोड़, विद्यालयी शिक्षा को 68.28 करोड़ और उच्च शिक्षा विभाग को 9.04 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों की क्षति हुई है। इसी तरह ग्राम्य विकास, शहरी विकास, पशुपालन, मत्स्य और अन्य विभागों की संपत्तियों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। कुल मिलाकर सरकारी विभागों को सीधे तौर पर 1944.15 करोड़ रुपये की क्षति का आकलन किया गया है, जिसके पुनर्निर्माण के लिए इतनी ही राशि की मांग केंद्र सरकार से की गई है।
इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार ने आपदा की पुनरावृत्ति की आशंका और अवस्थापना संरचनाओं की सुरक्षा के मद्देनज़र केंद्र से 3758 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता की भी मांग की है। यह राशि खासकर उन क्षेत्रों में खर्च की जाएगी, जहां सड़कें बार-बार अवरुद्ध होती हैं, जनसंख्या वाले इलाके खतरे में रहते हैं या फिर भूस्खलन व जल-प्रवाह से बुनियादी ढांचा लगातार प्रभावित हो रहा है।
आपदा के मानवीय पहलू की बात करें तो आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। 1 अप्रैल 2025 से 31 अगस्त 2025 तक प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 79 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 115 लोग घायल और 90 अब भी लापता हैं। यह आंकड़े राज्य में आपदा की भयावहता को दर्शाते हैं।
संपत्ति और आवासीय क्षति भी अत्यधिक गंभीर है। अब तक 238 पक्के और दो कच्चे मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं, जबकि 3237 मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं, जिनमें 2835 पक्के और 402 कच्चे मकान शामिल हैं। इसके अलावा 3953 छोटे और बड़े पशुओं की मौत हुई है, जिससे ग्रामीण और पर्वतीय अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है।
आपदा से केवल सरकारी संपत्तियां ही नहीं, बल्कि निजी व्यवसाय और पर्यटन आधारित संरचनाएं भी भारी क्षति की चपेट में आई हैं। बड़ी संख्या में होटल, होमस्टे, दुकानें, रेस्टोरेंट और अन्य व्यवसायिक भवन या तो पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं या क्षतिग्रस्त हुए हैं।
राज्य सरकार की ओर से भेजी गई यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के सामने उत्तराखंड की आपदा से उत्पन्न जमीनी हकीकत को दर्शाती है। अब देखना यह है कि केंद्र इस मांग पर कितनी जल्दी और कितनी मदद उपलब्ध कराता है, क्योंकि पर्वतीय राज्य में आपदा का खतरा हर वर्ष बढ़ता जा रहा है और इसके प्रभाव से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं व ठोस आर्थिक सहयोग आवश्यक हो गया है।




