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BJP की सधी रणनीति के सामने कांग्रेस फिर बेबस, उत्तराखंड जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस 1 सीट पर सिमटी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 16 अग॰
  • 3 मिनट पठन
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उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर भाजपा ने अपने सांगठनिक कौशल और सरकार-संगठन के तालमेल का लोहा मनवाया है। राज्य के 13 में से 12 जिलों में संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज कर यह स्पष्ट संकेत दिया है कि उसकी पकड़ न केवल शहरी मतदाताओं में, बल्कि ग्रामीण जनमानस में भी लगातार मजबूत हो रही है।


हरिद्वार को छोड़ दें, तो शेष 11 जिलों में भाजपा ने 10 जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर कब्जा कर विपक्ष को करारी मात दी है। वहीं, 89 क्षेत्र पंचायत प्रमुखों में से लगभग 70 प्रतिशत पदों पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी विजयी रहे। इसके अतिरिक्त, ग्राम प्रधानों की लगभग 85 प्रतिशत सीटों पर भी भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने परचम लहराया है। यह परिणाम स्पष्ट करते हैं कि राज्य के ग्रामीण जनसमूह ने भाजपा के नेतृत्व पर फिर से भरोसा जताया है।


2027 विधानसभा चुनाव से पहले 'सेमीफाइनल' में मिली बड़ी बढ़त


राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह पंचायत चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव 2027 का सेमीफाइनल माने जा रहे थे। इस लिहाज से देखा जाए तो यह जीत भाजपा के लिए केवल चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीति की ठोस बुनियाद है। खासकर राजधानी देहरादून में भाजपा की जीत ने यह भी दर्शाया कि विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, राज्य भर में सत्तारूढ़ दल को कोई गंभीर चुनौती नहीं दे पा रही है।


धामी सरकार और संगठन के बीच समन्वय की निर्णायक भूमिका


इस शानदार प्रदर्शन के पीछे भाजपा के सांगठनिक कौशल, सरकार और संगठन के बीच तालमेल, और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के जनकल्याणकारी कार्यों की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। आपदा और वर्षा जैसी विषम परिस्थितियों के बीच हुए इस चुनाव में भाजपा का मतदाता से सीधा संवाद और बूथ स्तर पर मजबूत पकड़ निर्णायक साबित हुई।


ग्रामीण मतदाता: विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका


उत्तराखंड की सामाजिक-राजनीतिक संरचना में ग्रामीण मतदाता सबसे बड़ा वर्ग हैं। राज्य की कुल 70 विधानसभा सीटों में से आधे से अधिक सीटों पर गांवों के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव में भाजपा की बढ़त यह संकेत देती है कि पार्टी ने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है।


नगर निकायों के बाद अब गांवों में भी भाजपा का परचम


ज्ञात हो कि जनवरी 2025 में हुए नगर निकाय चुनावों में भी भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। 11 में से 10 नगर निगमों में जीत, नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में भी व्यापक बढ़त ने यह स्पष्ट कर दिया था कि शहरी मतदाता भाजपा के पक्ष में हैं। अब पंचायत चुनावों में ग्रामीण मतदाताओं ने भी अपना विश्वास दोहराया है।


कांग्रेस का ‘एंटी-इनकंबेंसी’ दांव हुआ फेल


कांग्रेस ने इन चुनावों में एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर को मुख्य मुद्दा बनाया था। पार्टी ने शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में भाजपा सरकार की नीतियों को निशाने पर लेते हुए बदलाव का आह्वान किया। लेकिन चुनाव परिणामों से साफ है कि यह रणनीति जनभावनाओं से मेल नहीं खा सकी।


भविष्य के लिए नई ऊर्जा और रणनीतिक संकेत


इन पंचायत चुनावों में भाजपा की जीत न केवल उसके कैडर को नया जोश देगी, बल्कि यह संकेत भी दे रही है कि पार्टी ने 2027 विधानसभा चुनावों के लिए गांव-गांव तक अपनी रणनीति को सक्रिय कर दिया है। सांगठनिक ढांचे को मजबूत करना, युवाओं और महिला मतदाताओं को जोड़ना, और स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखकर काम करना पार्टी की प्रमुख प्राथमिकताएं रही हैं।


निष्कर्ष: भाजपा की जमीनी पकड़ और कांग्रेस की चुनौती


उत्तराखंड के पंचायत चुनाव परिणाम यह दर्शाते हैं कि भाजपा की जमीनी पकड़ पहले से कहीं अधिक मजबूत हुई है। जहां एक ओर यह चुनाव संगठनात्मक क्षमता और जनसंपर्क की परीक्षा थे, वहीं दूसरी ओर यह विपक्ष के लिए चेतावनी भी हैं कि यदि वैकल्पिक राजनीति की मजबूत संरचना नहीं बनाई गई, तो आगामी चुनावों में भी मुकाबला एकतरफा हो सकता है।

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