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शहर की चकाचौंध छोड़ वापस लौटे युवा, अब करेंगे गाँव का विकास

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 2 अग॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड पंचायत चुनाव के नतीजे आ गए हैं और इस बार गांवों की राजनीति में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। कई युवा नेता ऐसे उभरे हैं जिन्होंने शहरी जीवन की चकाचौंध, आरामदायक नौकरियां और मोटी सैलरी को पीछे छोड़कर अपने गांव की सरकार चलाने का साहसिक और प्रेरणादायक फैसला लिया है।


ये युवा न केवल अपनी जमीनी समझ और आधुनिक सोच से पंचायत के विकास को नई दिशा दे रहे हैं, बल्कि ग्रामीण जनता के दिलों में भरोसा और उम्मीद की नई लौ जगा रहे हैं। उनका जज्बा स्पष्ट करता है कि वे शहर की रौनक से अधिक अपने गांव के भविष्य को संवारने के लिए प्रतिबद्ध हैं।


कुछ युवा तो अभी भी सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में अच्छी नौकरी करते हुए भी पंचायत चुनाव में हिस्सा लेकर जनसेवा को अपनी प्राथमिकता बना रहे हैं। यह साबित करता है कि उनकी निष्ठा केवल पद या स्थिरता तक सीमित नहीं, बल्कि गांव की भलाई और विकास की दिशा में समर्पित है।


अब पूरे प्रदेश के गांवों की निगाहें इन युवा नेताओं पर टिकी हैं, जो अपने जोश, जुनून और नवीन विचारों से अपने गांव को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने का सपना साकार कर रहे हैं। गांव-देहात में नई ऊर्जा के साथ सकारात्मक बदलाव की उम्मीदें जग रही हैं।


प्रेरणादायक युवा नेता: गांव लौटकर नई कहानी लिख रहे हैं

पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक के कुई गांव की 22 वर्षीय साक्षी ने अपनी हिम्मत और दृढ़ संकल्प से मिसाल कायम की है। देहरादून से बीटेक कर वह अपने गांव वापस आईं और ग्राम प्रधान बनकर गांव के विकास का बीड़ा उठाया है। उनका यह कदम गांव में युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना है।


रानीपोखरी ग्रामसभा के सुधीर रतूड़ी ने लगातार दूसरी बार प्रधान पद हासिल किया है। उनका कार्य और नेतृत्व आज प्रदेश ही नहीं, देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। उनकी अनुभवसंपन्न और जवाबदेह नेतृत्व से ग्रामसभा में विकास की गति और लोगों का विश्वास बढ़ा है।


डोईवाला ब्लॉक की लिस्ट्राबाद ग्रामसभा में कंप्यूटर इंजीनियर सनिल धीमान को सरपंच चुना गया है। युवाओं के इस तकनीकी पृष्ठभूमि वाले नेता पर लोगों ने विश्वास जताया है, जो आधुनिकता और विकास की मिसाल बनकर उभर रहे हैं।


लड़वाकोट ग्रामसभा की 28 वर्षीय शिवानी ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपने कोचिंग का काम छोड़कर गांव वापस आकर प्रधान पद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उनका उद्देश्य गांव के बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना है।


देहरादून की अंकिता पांच साल पहले शहर की चकाचौंध छोड़कर अपने गांव लौटीं और अब खोलियागांव के ग्रामीणों ने उन्हें ग्राम प्रधान बनाकर गांव की बागडोर सौंप दी है। उनकी यह वापसी गांव के विकास और सामाजिक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।


शहर की रौनक छोड़, गांव की सेवा में जुटे युवा

ये युवा नेता साबित कर रहे हैं कि गांवों का भविष्य उज्जवल है, यदि वहां की जमीन से जुड़ी नई पीढ़ी आगे आकर नेतृत्व करे। उनका समर्पण और सेवा भाव ग्रामीण समाज में सकारात्मक बदलाव और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। आने वाले समय में उत्तराखंड के गांवों का यह नया चेहरा प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाएगा।

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