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'कुछ सेकंड रुकते तो मलबे में...', उत्तरकाशी आपदा के पीड़ित होटल व्यवसायी की झकझोर देने वाली दास्तां

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 8 अग॰
  • 3 मिनट पठन
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उत्तराखंड के धराली में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने न जाने कितनों के जीवन को झकझोर कर रख दिया। इन्हीं में से एक हैं भूपेंद्र पंवार, जिनकी आंखों में आज भी डर और पीड़ा के वे दृश्य ताजे हैं, जब उनका सब कुछ—सपना, मेहनत और जीवन की पूंजी—कुछ ही सेकंड में मलबे के नीचे दब गई।


अप्रैल में शुरू हुआ सपना, अगस्त में मलबा बन गया

भूपेंद्र पंवार ने इस साल अप्रैल में अपनी वर्षों की कमाई से अपने सेब के बागानों के बीच एक सुंदर दो-मंजिला होम स्टे तैयार किया था। चारधाम यात्रा के दौरान उन्होंने श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए इस जगह को खोलने का सपना देखा था। उन्हें उम्मीद थी कि यह छोटा-सा कदम उनकी आर्थिक स्थिति को स्थायित्व देगा और परिवार को एक बेहतर भविष्य।


लेकिन 5 अगस्त की दोपहर, यह सपना एक भयावह त्रासदी में तब्दील हो गया।


"बस दो सेकंड और... हम नहीं बचते"

संवाद एजेंसी से बातचीत में भूपेंद्र बताते हैं,


“हम मेले की तैयारी कर रहे थे। मैं होटल के बाहर गांव के कुछ लोगों के साथ खड़ा था। तभी मुखबा गांव की ओर से 'भागो-भागो' की आवाजें और सीटियों की गूंज सुनाई दी। हम पांच लोग तुरंत हर्षिल की ओर भागे। पीछे एक कार चालक भी दौड़ पड़ा। अगर दो-तीन सेकंड की भी देरी हो जाती, तो आज मैं आपसे बात नहीं कर रहा होता।”


उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने जैसे-तैसे अपनी जान बचाई और इसके बाद सबसे पहले अपनी पत्नी और बच्चों को फोन कर के यह बताया कि वे सुरक्षित हैं, लेकिन उनके पास अब कुछ नहीं बचा।


"ऐसा लग रहा था जैसे अपने ही गांव में पराया हो गया"

आपदा के तीसरे दिन जब गांववालों ने उन्हें खाना दिया और पहनने के लिए कपड़े दिए, तो भूपेंद्र की आंखें भर आईं।


“मुझे लगा जैसे मैं अपने ही लोगों पर बोझ बन गया हूं। मेरे सारे कपड़े मलबे में दब गए थे। टी-शर्ट और पायजामा तक मांगकर पहनना पड़ा,” – वे कहते हैं।


उत्तरकाशी में उनकी पत्नी और बच्चे भी लगातार चिंता में डूबे हुए थे। संचार सेवाएं ठप हो गई थीं। जैसे-तैसे पैदल चलते हुए वह मुखबा पहुंचे और वहां से हेलिकॉप्टर के जरिये उत्तरकाशी पहुंचे।


टैक्सी चलाकर जोड़ी पूंजी, और सब कुछ बर्बाद हो गया

भावुक होते हुए भूपेंद्र बताते हैं कि उन्होंने सालों तक टैक्सी चलाकर पाई-पाई जोड़ी। उसी मेहनत की पूंजी से उन्होंने यह होम स्टे तैयार किया था।


“मुझे लगा था कि अब मेरे बच्चों को बेहतर शिक्षा और जीवन दे पाऊंगा। लेकिन किसे पता था कि यह सपना इतनी जल्दी मलबा बन जाएगा... सब कुछ मेरी आंखों के सामने दब गया।”


धराली में राहत कार्य तेज, वायुसेना के हेलिकॉप्टर जुटे रेस्क्यू में

आपदा के बाद उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में राहत और बचाव कार्यों को तेज कर दिया गया है। शुक्रवार सुबह मातली से चार यूकाडा हेलिकॉप्टरों ने हर्षिल के लिए उड़ान भरी। राहत अभियान में चिनूक, एमआई-17 सहित कुल आठ हेलिकॉप्टर लगे हैं।

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गुरुवार को वायुसेना के चिनूक हेलिकॉप्टर से भारी मशीनरी को हर्षिल पहुंचाया गया ताकि मलबे को हटाने और रास्तों को खोलने का कार्य तेज किया जा सके। अब तक हर्षिल, नेलांग और मताली से 657 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है।


आपदा सिर्फ मलबा नहीं लाती, वह लोगों के सपनों को भी रौंद जाती है

भूपेंद्र पंवार की कहानी धराली की उस अनगिनत कहानियों में से एक है, जहां लोगों ने सिर्फ अपने घर और संपत्ति ही नहीं, बल्कि अपने सपने, आत्मसम्मान और आशाएं भी खो दी हैं। राहत और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया अभी जारी है, लेकिन जिन दिलों पर यह आपदा बीती है, उनकी भरपाई आसान नहीं होगी।

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