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आपातकाल की त्रासदी को याद रखें, लोकतंत्र की रक्षा करें- उपराष्ट्रपति का युवाओं को सख्त संदेश

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 26 जून
  • 3 मिनट पठन

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Uttarakhand: कुमाऊं विश्वविद्यालय में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने युवाओं को देश के भविष्य का मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि "2047 में विकसित भारत का निर्माण केवल एक सपना नहीं, बल्कि एक सशक्त राष्ट्रीय लक्ष्य है, जिसे युवा शक्ति ही साकार करेगी।"


धनखड़ ने विद्यार्थियों से सीधे संवाद करते हुए कहा कि उन्हें न केवल देश के लिए, बल्कि स्वयं के लिए भी 2047 का एक स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए— "वे उस समय खुद को कहां देखते हैं?" यह आत्मविश्लेषण उन्हें अपनी भूमिका को और अधिक गंभीरता से समझने में मदद करेगा।


वाइस चांसलर और 'वाइस' पद पर चुटकी, पर संदेश गंभीर

अपने विशिष्ट चुटीले अंदाज़ में धनखड़ ने सभा में मौजूद कुलपतियों की ओर मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे वाइस चांसलरों से मिलकर अच्छा लगता है, क्योंकि तब महसूस होता है कि मैं अकेला नहीं हूं जिसके पद में 'वाइस' यानी उप शब्द जुड़ा है।"


उन्होंने उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के संबोधन का भी हल्के-फुल्के अंदाज में उल्लेख करते हुए कहा कि जब मंत्री जी बार-बार दिल्ली में उपराष्ट्रपति से मुलाकात की बात दोहराते हैं, तो "मेरी तेज याददाश्त इसे नोट कर लेती है—अब तो धन सिंह जी इस महीने या अगले सप्ताह में जरूर दिल्ली आएं!" यह कहकर सभा में ठहाके गूंज उठे।


1989 के संसदीय साथी से भावुक मुलाकात

कार्यक्रम का एक भावुक क्षण तब आया जब उपराष्ट्रपति ने सभा में मौजूद पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र सिंह पाल को मंच पर गले लगाया। उन्होंने 1989 की संसद की यादें साझा करते हुए बताया कि उस दौर में देश की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि सरकार को 47 टन सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था, जबकि आज भारत के पास 700 अरब डॉलर से अधिक का स्वर्ण भंडार है।


धनखड़ ने डॉ. पाल को “बेदाग छवि और योग्य संसद सदस्य” बताया, जिससे मंच पर मौजूद डॉ. पाल भावुक हो गए और बार-बार अपने आँसू पोंछते दिखे।


आपातकाल की त्रासदी को याद कर लिखें निबंध, मिलेगा संसद भ्रमण का अवसर

सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने याद दिलाया कि "आज से ठीक 50 साल पहले, 25 जून 1975 को देश पर आपातकाल थोप कर लोकतंत्र का गला घोंटा गया था।" उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इस विषय पर एक निबंध लिखें और कुमाऊं विश्वविद्यालय के माध्यम से उन्हें भेजें।


उन्होंने घोषणा की कि पहले 100 विद्यार्थियों को वे दो समूहों में अपने सरकारी आवास पर लंच पर आमंत्रित करेंगे और संसद भवन का भ्रमण कराएंगे। उन्होंने कहा कि संसद भवन "पांच हजार वर्षों के इतिहास का जीवंत प्रतीक है।" इस अवसर पर उन्होंने डॉ. महेंद्रपाल को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया।


राज्यपाल गुरमीत सिंह से लें देशभक्ति की प्रेरणा

धनखड़ ने उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह की भरपूर सराहना करते हुए कहा कि "उनमें 24 घंटे देशभक्ति की भावना और ऊर्जा का संचार रहता है। यह युवाओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।" उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने युवाओं से रोजगार के सृजक बनने का जो आह्वान किया है, वह समय की मांग है और स्टार्टअप व यूनिकॉर्न उद्यमियों से प्रेरणा लेकर युवा आगे बढ़ें।


"हमारे दौर में गांवों में कुछ नहीं था, आज हर सुविधा मौजूद"

उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि "आज के युवा सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि उनके पास सफलता के तमाम साधन और संसाधन हैं।" उन्होंने अपने बचपन की यादें साझा करते हुए कहा, "मेरे गांव में कभी बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थीं। लेकिन आज गांव-गांव तक इन सुविधाओं का विस्तार हो चुका है। इसे अवसर में बदलना युवाओं की जिम्मेदारी है।"


उद्देश्य: राष्ट्र निर्माण में युवा बनें 'कैटेलिस्ट'

कार्यक्रम का मुख्य संदेश यही था कि 2047 में विकसित भारत का सपना युवाओं की भागीदारी के बिना अधूरा है। उपराष्ट्रपति ने युवाओं को ‘कैटेलिस्ट’ यानी उत्प्रेरक बनने का आह्वान किया और कहा कि अब समय है जब प्रत्येक विद्यार्थी देश के भविष्य में अपनी सक्रिय भूमिका को परिभाषित करे।

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