दिहुली नरसंहार: 24 दलितों के हत्यारों को 44 साल बाद मिला न्याय, फांसी की सजा सुन रोने लगे दोषी
- ANH News
- 21 मार्च
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18 नवम्बर 1981 को फिरोजाबाद जिले के जसराना क्षेत्र स्थित दिहुली गांव में एक भीषण जातीय हिंसा की घटना घटी, जिसमें 24 दलित समुदाय के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई। यह कांड आज भी गांव के लोगों के दिलों में खौफ और पीड़ा की यादें छोड़ गया है। इस घटना में लायक सिंह ने थाना जसराना में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष चौहान उर्फ संतोषा, राम सेवक, रविन्द्र सिंह, रामपाल सिंह, वेदराम, मिठ्ठू, भूपराम, मानिक चन्द्र, लटूरी, राम सिंह, चुन्नीलाल, होरी लाल, सोनपाल, लायक सिंह, बनवारी, जगदीश, रेवती देवी, फूल देवी, कप्तान सिंह, कम रुद्दीन, श्याम वीर, कुंवर पाल, लक्ष्मी सहित कुल 24 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
किसी ने नहीं सोचा था कि यह घटना इतनी भयंकर होगी
दिहुली गांव पहले मैनपुरी जिले का हिस्सा था, इसलिए प्रारंभ में यह मामला मैनपुरी जिला न्यायालय में चला। हालांकि, मैनपुरी में डकैती मामले की सुनवाई के लिए कोई अदालत नहीं थी, तो केस को प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया। वहां सुनवाई के बाद 15 साल पहले यह मामला फिर से मैनपुरी के स्पेशल जज डकैती कोर्ट में भेजा गया। इस समय तक अधिकांश आरोपी इस दुनिया को अलविदा ले चुके थे।
आखिर क्यों हुआ दिहुली कांड?

दिहुली गांव में ठाकुर बाहुल्यता थी, जहां दलित समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में रहते थे। इस जातीय हिंसा की शुरुआत ज्वाला प्रसाद की हत्या से हुई थी। राधे और संतोषा, जो कि ठाकुर जाति से थे, अपराधी प्रवृत्ति के लोग थे और उन्होंने गांव में अवैध हथियार छुपा रखे थे। पुलिस ने जब इन हथियारों का छापा मारा, तो राधे और संतोषा को शक हुआ कि गांव के जाटव समुदाय ने पुलिस को मुखबिरी की है। इस घृणित अपराध को लेकर कुछ ठाकुरों ने इसे अपमान के रूप में लिया, और नतीजतन 18 नवम्बर 1981 को उन्होंने दलित समुदाय की बस्ती पर हमला कर दिया। करीब दो दर्जन बंदूकधारी हमलावरों ने तीन घंटे तक गोलीबारी की, जिसमें 23 लोग तत्काल मारे गए और एक की इलाज के दौरान मौत हो गई।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ऐतिहासिक दौरा और कार्रवाई
दिहुली कांड ने पूरे देश को हिला दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस नरसंहार की कड़ी निंदा की थी और स्वयं घटनास्थल पर पहुंचकर इस पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया था। उन्होंने मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का आदेश दिया। इस घटना के बाद प्रदेश और केंद्र सरकार ने इसे गंभीरता से लिया, लेकिन इस तरह के हिंसा के चलते ग्रामीणों में अब भी डर और दहशत का माहौल बना हुआ है।
आरोपियों को चाहिए सजा-ए-मौत
फिरोजाबाद के जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुई 24 दलितों की सामूहिक हत्या में मंगलवार को कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की अदालत में सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को मैनपुरी जिला कारागार से भारी सुरक्षा के बीच लाकर पेश किया गया। इनकी पेशी के बाद 12.30 बजे करीब फिर से इनको दीवानी की अदालत में भेज दिया गया। लंच के बाद फिर से कोर्ट में तीनों दोषियों की पेशी हुई। दोपहर 3 बजे पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां अभियोजन पक्ष की ओर से रोहित शुक्ला ने नरसंहार से जुड़े साक्ष्यों और गवाहों के बयान का हवाला देते हुए दोषियों को फांसी की सजा की मांग की। कोर्ट ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर उस भयावह नरसंहार के दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। कप्तान सिंह, रामसेवक को दो-दो लाख और रामपाल को एक लाख रुपये के जुर्माने से भी दंडित किया गया। सजा सुनते ही तीनों के चेहरों पर मायूसी छा गई। वह रोने लगे। कोर्ट के बाहर इनके परिजन भी मौजूद थे, वह भी रोने लगे। इसके बाद पुलिस ने इन्हें जेल ले जाकर दाखिल कर दिया।
दिहुली कांड के कारण और वर्तमान स्थिति
आज भी गांव में पुराने लोग बताते हैं कि इस कांड के पीछे एक जातीय विद्वेष था, जो समय-समय पर हिंसा का रूप लेता था। गांव में रात के समय भारी भीड़ का दिखाई देना, ग्रामीणों के लिए अब भी डर का कारण बना हुआ है। इस घटना ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों को हिला कर रख दिया था।
दिहुली कांड ने न केवल एक गांव, बल्कि पूरे देश को जातीय हिंसा के खिलाफ जागरूक किया था, और अब सभी की निगाहें 18 मार्च 2025 पर हैं, जब न्यायालय इस मामले में दोषियों को सजा देगा।