देहरादून में 2009 से फर्जी डिग्री पर नौकरी कर रही थी अफसर, अब हुआ पर्दाफाश
- ANH News
- 24 अग॰
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अपडेट करने की तारीख: 25 अग॰

देहरादून में उत्तराखंड सिंचाई विभाग से जुड़ा एक चौंकाने वाला फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने न सिर्फ विभागीय पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सरकारी नौकरी में चयन प्रक्रिया की गंभीर खामियों को भी उजागर किया है। उत्तराखंड जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग में तैनात अंशुल गोयल नामक अधिकारी करीब 16 वर्षों से फर्जी शैक्षणिक प्रमाणपत्रों के आधार पर सरकारी पद पर कार्यरत थीं। अब इस मामले का पर्दाफाश होने के बाद विभाग ने उनके खिलाफ देहरादून की कैंट कोतवाली में एफआईआर दर्ज करवा दी है।
कैसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा?
इस घोटाले का खुलासा उस समय हुआ जब विनीत अग्रवाल नामक व्यक्ति ने अंशुल गोयल के दस्तावेजों की सत्यता पर संदेह व्यक्त करते हुए विभाग को लिखित शिकायत दी। शिकायत मिलते ही सिंचाई विभाग ने एक आंतरिक जांच समिति गठित की, जिसने अंशुल गोयल के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की सत्यता की गहन जांच शुरू की।
जांच के दौरान समिति ने उनके दस्तावेजों को दो शैक्षणिक संस्थानों —
राजकीय इंटर कॉलेज, पटेलनगर, देहरादून
उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद, रामनगर
— से वैरिफाई कराया।
जांच में साफ तौर पर यह तथ्य सामने आया कि वर्ष 2001, जिसमें अंशुल गोयल ने हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने का दावा किया था, उस वर्ष संबंधित स्कूल में उनके नाम की कोई छात्रा पंजीकृत ही नहीं थी।
16 साल से चला आ रहा था फर्जीवाड़ा
गौरतलब है कि अंशुल गोयल की नियुक्ति वर्ष 2009 में मृतक आश्रित कोटे के अंतर्गत कनिष्ठ सहायक के पद पर हुई थी। तब से लेकर अब तक वह विभिन्न प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन करती रहीं, लेकिन उनके दस्तावेजों की असलियत पर कभी कोई सवाल नहीं उठ पाया। करीब डेढ़ दशक तक वह विभागीय सिस्टम को गुमराह करती रहीं और फर्जी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी करती रहीं।
अब आगे क्या? – कानूनी कार्रवाई शुरू
विभाग द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर अब पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और आगे की कानूनी प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। यदि दोष सिद्ध होता है, तो अंशुल गोयल पर धोखाधड़ी (IPC की धारा 420), फर्जीवाड़ा (धारा 468, 471) और सरकारी दस्तावेजों में हेराफेरी जैसे गंभीर अपराधों के अंतर्गत कार्यवाही हो सकती है।
प्रशासन के लिए बड़ा सबक
यह मामला केवल एक व्यक्ति की धोखाधड़ी नहीं है, बल्कि यह सरकारी विभागों में नियुक्तियों की प्रक्रिया और दस्तावेज़ सत्यापन की कमजोरियों को भी उजागर करता है। यदि शिकायतकर्ता समय रहते सामने न आता, तो यह फर्जीवाड़ा शायद वर्षों तक यूँ ही चलता रहता।
यह फर्जीवाड़ा प्रशासन और आमजन, दोनों के लिए एक चेतावनी है कि पारदर्शिता और ईमानदारी के बिना किसी भी व्यवस्था का टिक पाना मुश्किल है। अब देखना यह होगा कि कानून इस मामले में कितनी तेजी और सख्ती से अपना काम करता है।





