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CM धामी के बयान से गरमाई उत्तराखंड की सियासत, मदरसों पर कार्रवाई को लेकर बढ़ा विरोध

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 3 घंटे पहले
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक बयान ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा कि उन्हें “मदरसा शब्द से कोई आपत्ति नहीं है”, लेकिन वे “आतंक की फैक्ट्री चलाने वाले किसी भी संस्थान को बख्शेंगे नहीं।” उनके इस बयान के बाद राज्यभर में विरोध के स्वर उठने लगे हैं। कई लोगों ने सवाल उठाया है कि क्या सभी मदरसों को आतंक से जोड़ना उचित है, जबकि मदरसे लंबे समय से शिक्षा और संस्कार का माध्यम रहे हैं।


यह बयान उस समय आया है जब राज्य स्थापना के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर विधानसभा का विशेष सत्र चल रहा था। सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री ने राज्य के 25 वर्षों की यात्रा का ब्योरा देते हुए कहा कि उनकी सरकार उत्तराखंड की पहचान, रियासत की रिवायत और डेमोग्राफी की सुरक्षा के लिए बड़े और सख्त फैसले लेने से पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “देश के खिलाफ किसी भी तरह की गतिविधियों को राज्य सरकार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगी।”


मुख्यमंत्री धामी ने अपने संबोधन में यह भी दोहराया कि जो भी संस्थान देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होंगे या आतंकवाद को बढ़ावा देने का केंद्र बनेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी — चाहे वे किसी भी रूप में क्यों न हों। उन्होंने कहा कि “हमारा विरोध किसी संस्था के नाम से नहीं, बल्कि उसके काम से है। जो भी राष्ट्र के खिलाफ काम करेगा, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।”


दरअसल, मुख्यमंत्री धामी की सरकार ने अपने कार्यकाल में अवैध मदरसों और मज़ारों पर सख्त कार्रवाई की है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, अब तक कई मदरसों की जांच की जा चुकी है, जबकि कुछ को नियमों के उल्लंघन के चलते बंद किया गया। वहीं, हाल ही में देहरादून के दून अस्पताल परिसर में बनी एक अवैध मज़ार को भी प्रशासन ने हटाया था। इन कार्रवाइयों को लेकर मुख्यमंत्री पर आरोप लगते रहे हैं कि वे एक विशेष समुदाय को निशाना बना रहे हैं।


राज्य के कई मुस्लिम संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि मदरसों को आतंक से जोड़ना न केवल भ्रामक है, बल्कि इससे समाज में विभाजन की भावना बढ़ती है। वहीं, भाजपा समर्थकों और धामी के पक्षधर इसे “राज्य की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के प्रति सख्त रुख” बताकर सही ठहरा रहे हैं।


मुख्यमंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उत्तराखंड में जनसंख्या संतुलन और धार्मिक ढांचों के निर्माण को लेकर राजनीतिक माहौल पहले से ही संवेदनशील बना हुआ है। धामी सरकार लगातार “डेमोग्राफिक बैलेंस” और “राज्य की मौलिक पहचान” की बात कर रही है। इस बयान ने उस बहस को और तेज कर दिया है कि सरकार की नीतियाँ कानून और सुरक्षा के दायरे में हैं या समुदाय-विशेष को लेकर पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण रखती हैं।


फिलहाल, इस बयान ने उत्तराखंड की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है — जहाँ एक ओर मुख्यमंत्री को सख्त नेता के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष और अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे “धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति” करार दिया है।

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