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शीतला सप्तमी-अष्टमी से सच में मिलती है कष्टों से मुक्ति? जानें पूजा करने के सटीक नियम और बासी खाने का रहस्य

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 18 मार्च
  • 3 मिनट पठन


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होली के सात दिन बाद मनाया जाने वाला शीतला सप्तमी और अष्टमी का पर्व विशेष धार्मिक महत्व रखता है। इसे बसौड़ा या बसोड़ा भी कहा जाता है और इस दिन मां दुर्गा के एक अन्य रूप, माता शीतला की पूजा की जाती है। यह पर्व हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, और खास बात यह है कि इस दिन मां शीतला को बासी खाने का भोग अर्पित किया जाता है।


शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का महत्व

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इन दोनों तिथियों पर मां शीतला की पूजा करने से मानसिक और शारीरिक कष्टों का नाश होता है, साथ ही सुख, शांति, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शीतला माता को असुरों के संहारक के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि वे सभी रोगों और कष्टों को समाप्त करने वाली देवी मानी जाती हैं।


शीतला सप्तमी कब है?

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हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला सप्तमी तिथि का प्रारंभ 21 मार्च, शुक्रवार को सुबह 2:45 बजे होगा और समापन 22 मार्च, शनिवार को सुबह 4:23 बजे होगा। जो लोग शीतला सप्तमी की पूजा करना चाहते हैं, वे 21 मार्च को इस पर्व का आयोजन करेंगे।

शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त: 21 मार्च, सुबह 5:37 बजे से 6:40 बजे तक।


शीतला अष्टमी कब है?

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अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 मार्च, शनिवार को सुबह 4:23 बजे होगा और समापन 23 मार्च, रविवार को सुबह 5:23 बजे होगा। अष्टमी तिथि पर पूजा करने वाले भक्त 22 मार्च को पूजा अर्चना करेंगे।

शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त: 22 मार्च, सुबह 5:20 बजे से 6:33 बजे तक।


बसौड़ा का महत्व

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शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथि को विशेष रूप से बासी खाना खाने की परंपरा होती है, जिसके कारण इसे बसौड़ा या बसोड़ा भी कहा जाता है। इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है और घर के सभी सदस्य भी पूरे दिन बासी खाना खाते हैं। यह पर्व ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है, जो शीत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु के आगमन को दर्शाता है।


मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से शीतला माता की पूजा करने से सभी रोगों का नाश होता है और व्यक्ति को शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शीतला माता की पूजा से खसरा, चेचक, चिकन पॉक्स, आंखों के रोग, ज्वर, आदि रोगों से मुक्ति मिलती है।


क्यों खाया जाता है बासी भोजन?

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शीतला माता के भोग के लिए घर के सदस्य पहले दिन खाना तैयार कर लेते हैं और अगले दिन वह बासी भोजन मां को अर्पित करते हैं। इस दिन घर में चूल्हा जलाने की परंपरा नहीं होती, और लोग ताजे भोजन के स्थान पर बासी भोजन का सेवन करते हैं।


यह परंपरा ऋतु परिवर्तन के कारण की जाती है, क्योंकि होली के बाद मौसम में बदलाव आता है और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। बासी भोजन में चावल और घी का प्रमुख स्थान होता है, जिन्हें गुड़ या गन्ने के रस से तैयार किया जाता है। इस दिन के बाद बासी भोजन से परहेज किया जाता है, क्योंकि तेज गर्मी के कारण बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।


शीतला सप्तमी-अष्टमी या बसौड़ा पूजा विधि

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1. पूजा से एक दिन पहले मिठा भात, खाजा, पकौड़ी, शक्कर पारे, नमक पारे, पुए, बेसन चक्की और बाजरे की रोटी आदि तैयार करें।

2. फिर बसौड़ा वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करें।

3. शीतला माता की पूजा सूर्य निकलने से पहले करें। सबसे पहले उन्हें जल अर्पित करें और फिर उन्हें रोली, कुमकुम, सिंदूर, फूल, वस्त्र, आदि अर्पित करें।

4. भोग अर्पित करने के बाद बिना दीपक, धूप या अगरबत्ती के शीतला माता की आरती करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।

5. इसके बाद घर के आंगन में या होलिका दहन की जगह पर भी पूजा करें। शीतला माता की पूजा में आग का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।



शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह ऋतु परिवर्तन और स्वास्थ्य का प्रतीक भी है। इस दिन बासी भोजन का सेवन करने की परंपरा न केवल धार्मिक है, बल्कि यह हमारे जीवन में प्राकृतिक बदलावों को स्वीकार करने और जीवन को शीतल और शांतिपूर्ण बनाने का एक तरीका भी है।

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