देवउठनी व्रत का पारण कब करें और किन बातों का रखें खास ध्यान? जानें 5 महत्वपूर्ण बातें
- ANH News
- 5 दिन पहले
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्राचीन काल से प्रबोधिनी एकादशी, देवउठनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में इसे अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और चार महीने के चातुर्मास का भी समापन होता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी से प्रारंभ होने वाला चातुर्मास कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है और विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों से परहेज किया जाता है। देवउठनी एकादशी से फिर ये सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं और इन आयोजनों को और भी मंगलमय बनाने के लिए तुलसी विवाह की परंपरा भी निभाई जाती है। इस दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराना घर-परिवार और समाज दोनों में सुख-समृद्धि का संदेश देता है।

देवउठनी एकादशी 2025 इस वर्ष 1 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। पारण 2 नवंबर को दोपहर 01:11 बजे से 03:23 बजे तक किया जाएगा, जबकि हरिवासर का समापन 12:55 बजे होगा। एकादशी तिथि 1 नवंबर की सुबह 09:11 बजे आरंभ होकर 2 नवंबर की सुबह 07:31 बजे समाप्त होगी।
पर्व की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में गेरू और खड़िया (देवताओं की आकृति बनाने के लिए), स्टील की परात, तुलसी का पौधा और पत्ता, दीपक, अक्षत, रोली, हल्दी, पंचामृत, पान, सुपारी, इलायची, गुड़ या मिश्री, कलश, जल, फूल, धूपबत्ती, शंख और घंटी, गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंद और अन्य मौसमी फल, छोटी लकड़ी की चौकी और पीला वस्त्र शामिल हैं।
इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेने के बाद घर की सफाई करके स्नान आदि करने के बाद आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाई जाती है। ओखली में गेरू से चित्र तैयार कर उसके ऊपर फल, सिंघाड़ा, मिठाई, बेर, ऋतुफल और गन्ना रखकर उसे ढक दिया जाता है। शाम को भगवान की विधि-विधान से पूजा करने के बाद घर और पूजा स्थल पर दीपक जलाना अनिवार्य है, विशेष रूप से तुलसी के पौधे के समीप दीपक रखना शुभ माना जाता है। भगवान को शंख और घंटी बजाकर जागृत किया जाता है और मंत्रोच्चारण किया जाता है जैसे कि “उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।” इसके बाद आरती कर भोग अर्पित किया जाता है।

देवउठनी एकादशी की कथा के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान नारायण से पूछा कि आप दिन-रात जागते हैं और जब सोते हैं तो करोड़ों वर्ष के लिए निद्रा में चले जाते हैं, जिससे सृष्टि पर प्रभाव पड़ता है। लक्ष्मी जी के निवेदन पर नारायण जी ने निर्णय लिया कि वे प्रतिवर्ष चार महीने के लिए वर्षा ऋतु में शयन करेंगे और इस दौरान भक्त उनकी सेवा करके पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे।
इस दिन विशेष मंत्रों और भजनों का उच्चारण भी किया जाता है। मंत्रों में प्रमुख हैं: “उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।” इसके अतिरिक्त ॐ वासुदेवाय विघ्माहे, ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये और तुलसी स्तोत्र का पाठ भी शुभ माना जाता है। भजनों में पारंपरिक गीत गाए जाते हैं जैसे, “उठो देव बैठो देव, पाटकली चटकाओ देव, आषाढ़ में सोए देव, कार्तिक में जागो देव, गन्ने का भोग लगाओ देव, सिंघाड़े का भोग लगाओ देव।” इन गीतों में ग्रामीण जीवन, भक्ति और उत्सव का आनंद झलकता है।
देवउठनी एकादशी का पर्व न केवल भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में सुख, समृद्धि और मंगल लेकर आने वाला दिन भी है। इस दिन घर-घर में पूजा, भजन, दीप जलाना और तुलसी विवाह जैसी परंपराओं का आयोजन करके सभी शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है।





