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देवउठनी एकादशी: जानें देवों को जगाने का सही तरीका, मंत्र और लोकगीत

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 5 दिन पहले
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कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस साल यह विशेष पर्व 1 नवंबर को मनाया जा रहा है। पुराणों की मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की योगनिद्रा से जागते हैं और उनकी जागृति के साथ ही सृष्टि में फिर से शुभ समय की शुरुआत होती है। यही कारण है कि इस दिन घरों में सुबह से ही पूजा, मंत्रोच्चारण और भक्ति का वातावरण बना रहता है। इसे मनाने से घर में सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) से भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि की व्यवस्था का प्रभार भगवान शिव संभालते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु को जगाया जाता है, इसलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पूजा करने से दुख, दरिद्रता और जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और व्यक्ति को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

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देवउठनी एकादशी के दिन भगवान का स्वागत बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ किया जाता है। सुबह स्नान के बाद ठाकुरजी की पूजा की जाती है और शंख फूंककर प्रार्थना की जाती है- “हे गोविन्द, उठिए। कमलाकान्त, निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल करें।” इसके बाद घर में गन्ना, सिंघाड़ा, फल, तिल, मूली, आलू आदि अर्पित किए जाते हैं। स्थान-स्थान पर गन्ने के मंडप सजाए जाते हैं, सुंदर रंगोली बनाई जाती है और घी के दीपक जलाकर भगवान का स्वागत किया जाता है।

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कई क्षेत्रों में इस अवसर पर पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें ग्रामीण जीवन और भक्ति का भाव झलकता है। गीतों में देवों को जगाने और उनका स्वागत करने की कथाओं का सुंदर चित्रण होता है, जैसे- “उठो देव, बैठो देव, पाटकली चटकाओ देव”, “आषाढ़ में सोए देव, कार्तिक में जागो देव” और “जागो इस दुनिया के देव, गन्ने का भोग लगाओ देव।”


कार्तिक मास के दौरान ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का जाप विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि पूरे मास में इसका जाप करना संभव न हो तो कम से कम देवउठनी एकादशी के दिन यह अवश्य किया जाना चाहिए। साथ ही, विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इस प्रकार, देवउठनी एकादशी न केवल भगवान विष्णु की जागृति का पर्व है, बल्कि यह जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक शांति का प्रतीक भी है।

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