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18 करोड़ की धोखाधड़ी का मामला, Viral किया Video, SSP दून ने लिया संज्ञान

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 24 अग॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 25 अग॰

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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता तीरथ सिंह रावत के भांजे विक्रम सिंह राणा ने पुलिस की निष्क्रियता और पक्षपात का आरोप लगाते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है। इस वीडियो में विक्रम ने दावा किया है कि उसके साथ 18 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है, जिसकी शिकायत वह दिसंबर 2024 में देहरादून एसएसपी कार्यालय में दे चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।


शिकायत के बावजूद पुलिस की उदासीनता:

विक्रम राणा ने वीडियो में बताया कि उन्होंने 29 दिसंबर 2024 को देहरादून एसएसपी कार्यालय में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई थी, परंतु पुलिस ने इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई। आरोप है कि पुलिस ने आरोपियों को कार्यालय में बैठाकर चाय पिलाई, जबकि शिकायतकर्ता की सुनवाई तक नहीं हुई।


विक्रम ने अपनी इस पीड़ा को जताते हुए आत्महत्या की चेतावनी भी दी और कहा, "उत्तराखंड में मौत के बाद ही केस दर्ज होता है।"

यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिससे पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया।


पुलिस की प्रारंभिक प्रतिक्रिया और जांच के आदेश

देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने मामले पर प्रेस बयान जारी करते हुए बताया कि मामले की प्रारंभिक जांच पुलिस क्षेत्राधिकारी मसूरी को सौंपी गई थी। जांच में यह पाया गया कि मामला सिविल प्रकृति का है, इसलिए आवेदक को न्यायालय में वाद दायर करने की सलाह दी गई थी। एसएसपी के अनुसार यह जांच कुछ दिन पहले पूरी हुई थी।


हालांकि, वीडियो वायरल होने और शिकायतकर्ता की असंतोषजनक प्रतिक्रिया के बाद एसएसपी ने मामले की पुनः जांच का आदेश दिया है। अब जांच की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक नगर को सौंपी गई है, जो सभी पहलुओं की बारीकी से पड़ताल करेंगे। पुलिस ने साफ किया है कि सोशल मीडिया पर लगाए गए गंभीर आरोपों और आत्महत्या की धमकियों को गंभीरता से लिया जा रहा है और आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी।


कानून-व्यवस्था और आर्थिक विवादों पर चर्चा

इस मामले ने न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि कानून-व्यवस्था और निवेश/आर्थिक विवादों के निपटारे को लेकर भी बहस छेड़ दी है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े वित्तीय विवाद आमतौर पर सिविल अदालतों में सुलझाए जाते हैं, लेकिन यदि धोखाधड़ी, जालसाजी या आपराधिक षड्यंत्र के स्पष्ट सबूत मिलते हैं तो पुलिस की जांच और एफआईआर दर्ज करना आवश्यक होता है।


पुलिस की अपील और आगे की कार्रवाई

पुलिस ने जनता से अपील की है कि वे सोशल मीडिया पर तनाव फैलाने से बचें और उपलब्ध कानूनी मंचों का सहारा लें। अधिकारियों ने भरोसा दिया है कि पुनः जांच में यदि तथ्यात्मक साक्ष्य मिलते हैं तो आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

देहरादून पुलिस की कार्यप्रणाली पर लगे ये गंभीर आरोप राज्य के प्रशासनिक और पुलिस सिस्टम की छवि के लिए चिंता का विषय हैं। पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार से जुड़ा यह विवाद न केवल पुलिस की जवाबदेही की परीक्षा ले रहा है, बल्कि जनता के बीच कानून व्यवस्था पर भरोसे को भी चुनौती दे रहा है। अब यह देखना होगा कि पुनः जांच में क्या तथ्य सामने आते हैं और पुलिस प्रशासन इस विवाद से निपटने में कितनी पारदर्शिता और तत्परता दिखाता है।

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