ग्रहण काल में गूंजे मंत्र, जैसे ही खत्म हुआ सूतक, मंदिर और गंगा घाटों पर दिखा श्रद्धा का महासंगम
- ANH News
- 8 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 9 सित॰

सितंबर की रात आकाशीय घटना के रूप में देशभर में चंद्र ग्रहण का दृश्य देखा गया। यह खगोलीय घटना न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही, बल्कि इसकी धार्मिक और आध्यात्मिक छाया भी पूरे देश पर स्पष्ट रूप से दिखाई दी। ग्रहण लगने से ठीक 9 घंटे पूर्व ही पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल आरंभ हो गया था। इसी कारण देशभर के प्रमुख मंदिरों में पूजा-अर्चना स्थगित कर दी गई और श्रद्धालुओं की उपस्थिति को रोकते हुए मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए।
सूतक काल में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवता विश्राम करते हैं, अतः इस अवधि में मंदिरों के द्वार बंद करना आवश्यक माना जाता है। यह परंपरा शास्त्रों में वर्णित नियमों पर आधारित है, जिसके अनुसार ग्रहण काल में मंदिरों में किसी भी प्रकार की पूजा या धार्मिक अनुष्ठान वर्जित होते हैं। मंदिरों के कपाट ग्रहण की समाप्ति के पश्चात ही पुनः खोले जाते हैं, और उसके बाद विधिवत शुद्धिकरण के साथ पूजन आरंभ होता है।
इस दौरान देशभर में आस्था का एक विशेष रूप देखने को मिला। भले ही मंदिरों के द्वार बंद रहे, लेकिन भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई। अनेक श्रद्धालुओं ने अपने घरों में ही जप, तप, ध्यान और दान-पुण्य के माध्यम से इस विशेष काल को साधना और आत्मचिंतन में बिताया। कुछ श्रद्धालु तो गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों के तटों पर पहुंचे, जहां उन्होंने ग्रहण काल के दौरान मौन साधना, ध्यान और मंत्रों का जाप करते हुए समय व्यतीत किया।
ग्रहण के दौरान वातावरण में एक विशेष प्रकार की निस्तब्धता और गंभीरता देखी गई। धार्मिक टीवी चैनलों और ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिए लोगों ने ग्रहण की लाइव स्थिति देखी और शास्त्रीय दृष्टिकोण से इसकी व्याख्या को समझा। पंडितों और धर्मगुरुओं द्वारा ग्रहण से जुड़ी मान्यताओं, सावधानियों और आचरण की जानकारी दी गई, जिससे आम लोग भी इस खगोलीय घटना को केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अनुभव कर सकें।
ग्रहण समाप्ति के साथ ही मंदिरों के कपाट पुनः खोले गए और शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद भगवान की विधिपूर्वक आरती और अभिषेक किया गया। भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया और पुनः सामान्य पूजा-पाठ आरंभ हुआ।





