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उत्तराखंड UCC में बदलाव: बल, धोखा या दबाव से लिव-इन में रहने पर सख्त सजा

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 20 अग॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 21 अग॰

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उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता उत्तराखंड संशोधन अधिनियम, 2025 (UCC Amendment Act 2025) को मंगलवार को राज्य विधानसभा में प्रस्तुत कर दिया है, जिसे बुधवार को पारित किए जाने की संभावना है। इस संशोधन का उद्देश्य मूल अधिनियम के प्रावधानों में व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करते हुए इसे और अधिक प्रभावी तथा नागरिकों के लिए सुविधाजनक बनाना है।


विवाह पंजीकरण के नियमों में संशोधन:

अब विवाह पंजीकरण की समय सीमा छह माह से बढ़ाकर एक वर्ष कर दी गई है।

यह नियम 26 मार्च 2020 से अधिनियम लागू होने की तिथि से पूर्व या पश्चात हुए विवाहों पर भी लागू होगा।

निर्धारित समय सीमा के बाद पंजीकरण न कराने पर दंडात्मक कार्रवाई और आर्थिक दंड (पेनल्टी) का प्रावधान किया गया है।

अपील की प्रक्रिया को भी सुव्यवस्थित करते हुए सब-रजिस्ट्रार के समक्ष अपील, शुल्क आदि का निर्धारण किया गया है।


दंड प्रक्रिया और कानूनी प्रावधानों में सुधार:

अधिनियम में पहले मौजूद लिपिकीय त्रुटियों को सुधारा गया है। जैसे कि:

"दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC)" की जगह अब "भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)" लिखा जाएगा।

जहां पहले “शुल्क” लिखा गया था, वहां उचित स्थानों पर अब “पेनल्टी (Penalty)” शब्द का प्रयोग होगा।


सहवास (लिव-इन) और विवाह संबंधी अपराधों पर कठोर दंड

धारा 387 में नया प्रावधान:

यदि कोई व्यक्ति बल, दबाव या धोखाधड़ी के माध्यम से किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त कर सहवास संबंध (लिव-इन रिलेशनशिप) बनाता है, तो उसे: अधिकतम सात साल का कारावास औरआर्थिक जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।


धारा 380(2) के तहत:

यदि पहले से विवाहित व्यक्ति, अपनी वैवाहिक स्थिति को छिपाकर लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करता है, तो उस पर भी: सात साल की सजा और जुर्माना लगाया जाएगा।


किन परिस्थितियों में यह दंड नहीं लगेगा:

यदि वह व्यक्ति लिव-इन संबंध समाप्त कर चुका हो।

यदि लिव-इन साथी का सात वर्षों से कोई पता नहीं है।


पूर्ववर्ती विवाह की समाप्ति के बिना लिव-इन में रहना अपराध:

यदि कोई व्यक्ति बिना पूर्व विवाह को कानूनी रूप से समाप्त किए लिव-इन रिलेशनशिप में रहता है, तो उसे:

भारतीय न्याय संहिता की धारा 82 के अंतर्गत सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना भुगतना होगा।


UCC में जोड़ी गईं दो नई धाराएं: 390-क ख

धारा 390-क:

विवाह, तलाक, लिव-इन रिलेशनशिप या उत्तराधिकार से संबंधित किसी भी पंजीकरण को रद्द (निरस्त) करने की शक्ति अब रजिस्ट्रार जनरल को होगी।

यह शक्ति उन्हें धारा 12 के अंतर्गत दी गई है।


धारा 390-ख:

पंजीकरण से जुड़े मामलों में लगाए गए जुर्माने की वसूली, अब भू-राजस्व बकाए की तरह की जाएगी।

इसके लिए RC (Recovery Certificate) काटी जाएगी।


उत्तराखंड की समान नागरिक संहिता में प्रस्तावित ये संशोधन राज्य में एकरूपता, पारदर्शिता और कानूनी स्पष्टता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप और पारिवारिक दायित्वों को लेकर कठोर दंड प्रावधान, नागरिकों को अधिक जिम्मेदार और सजग बनाएंगे। साथ ही, पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाना आम जनता के लिए राहत भरा कदम है।

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