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पतंजलि को राहत, हाईकोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ आपराधिक मामला किया रद्द

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 26 जून
  • 2 मिनट पठन

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और उसके संस्थापक बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने भ्रमित और भ्रामक विज्ञापनों के आरोप में दर्ज आपराधिक मामला रद्द कर दिया है। यह मामला वर्ष 2024 में उत्तराखंड के वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा ड्रग्स एंड मैजिकल रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल एडवर्टाइजमेंट) एक्ट, 1954 के तहत दर्ज किया गया था।


क्या था मामला?

शिकायत के अनुसार, पतंजलि की कुछ आयुर्वेदिक दवाओं — जैसे मधुग्रिट, मधुनाशिनी, दिव्य लिपिडोम टैबलेट, दिव्य लिवोग्रिट टैबलेट, दिव्य लिवामृत एडवांस टैबलेट, दिव्य मधुनाशिनी वटी और दिव्य मधुग्रिट टैबलेट — के विज्ञापन भ्रामक थे और उनमें चमत्कारिक इलाज का दावा किया गया था। आरोप था कि इन विज्ञापनों के माध्यम से जनता को गुमराह किया गया।


कोर्ट ने क्यों किया मामला खारिज?

हाईकोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के अंतर्गत हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) द्वारा पतंजलि, रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को जारी समन को रद्द करने का आदेश दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:


शिकायत में इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया गया कि विज्ञापन मिथ्या या भ्रामक थे।


यह स्पष्ट नहीं किया गया कि विज्ञापनों में क्या झूठा दावा किया गया था और वह कैसे भ्रामक थे।


शिकायत दायर करने से पूर्व याचिकाकर्ता फर्म को केवल एक पत्र भेजा गया, जिसमें विज्ञापन हटाने को कहा गया, लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि विज्ञापन में दावा गलत क्यों था।


आरोपों की पुष्टि के लिए कोई विशेषज्ञ राय या वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दिए गए।


कोर्ट ने यह भी माना कि शिकायत में उल्लिखित कई घटनाएं 2023 से पहले की हैं, जिससे वे समय-सीमा पार (टाइम-बार्ड) हो चुकी थीं और वैधानिक रूप से मुकदमा चलाने योग्य नहीं थीं।


सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद दर्ज हुआ था मामला

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। दरअसल, आयुष मंत्रालय द्वारा कई बार पत्र लिखे जाने के बावजूद पतंजलि और दिव्य फार्मेसी के कथित भ्रामक विज्ञापनों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के बाद राज्य सरकार के संबंधित विभाग ने 2024 में पतंजलि के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी।


हालांकि, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी या दबाव में शिकायत दर्ज करना, बिना पर्याप्त प्रमाणों के, आपराधिक कार्रवाई का आधार नहीं हो सकता।

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