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योगी-योगी के नारों से गूंज उठा सिनेमा हॉल, CM योगी की फिल्म देखने उमड़ी भीड़

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 11 अक्टू॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित फिल्म "अजय" की विशेष स्क्रीनिंग गुरुवार को ऋषिकेश के रामा पैलेस सिनेमा में आयोजित की गई, जिसने दर्शकों के दिलों को गहराई से छू लिया। दोपहर 2:30 बजे शुरू हुए इस खास शो में जैसे ही पर्दे पर वह दृश्य आया जिसमें संवाद था —

"आज से तुम मुक्त हो, अपने पिछले कर्म से, हर बंधन से, तुम ही शून्य हो, तुम ही दुःख, तुम ही अनंत, तुम ही मोक्ष, तुम ही जन्म, तुम ही मृत्यु। न मां, न बाप, न पुत्र, न पत्नी… आज तुम अजय आनंद नहीं, योगी आदित्यनाथ हो" —

सिनेमाघर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।


फिल्म की स्क्रीनिंग में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर स्वामी दयाराम दास, स्थानीय विधायक प्रेमचंद अग्रवाल, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, शिक्षक, परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमार और बड़ी संख्या में स्थानीय दर्शक मौजूद रहे।


फिल्म "अजय" एक साधक, संन्यासी और फिर जनसेवक बनने की प्रेरणादायक कथा है। इसमें योगी आदित्यनाथ के जीवन के विभिन्न पड़ावों, उनके संयम, साधना, राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव के साथ उत्तर प्रदेश को एक सशक्त राज्य बनाने के उनके संकल्प को फिल्माया गया है। यह केवल एक राजनीतिक बायोपिक नहीं, बल्कि एक दर्शन है — जीवन को उद्देश्यपूर्ण, अनुशासित और राष्ट्रहित में कैसे जिया जाए, इसका उदाहरण है।

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स्वामी चिदानंद सरस्वती ने फिल्म की भावनात्मक गहराई की सराहना करते हुए कहा, "यह सिर्फ फिल्म नहीं, एक मूल दर्शन है। यह हमें यह सोचने पर विवश करती है कि हम अपने जीवन को किस दिशा में ले जा रहे हैं। ‘अजय’ एक चेतना है, एक जीवन शैली है, जिसे अपनाकर हम समाज और देश दोनों में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।”


फिल्म के निर्देशक रवींद्र गौतम, लेखक प्रियंक दुबे, दिलीप झा, शांतनु और पूरी टीम को दर्शकों ने भरपूर सराहना दी। परमार्थ गुरुकुल के विद्यार्थियों ने भी फिल्म को देखकर योगी आदित्यनाथ के जीवन से प्रेरणा लेने और उनके जैसे संकल्प, त्याग और सेवाभाव को आत्मसात करने का संकल्प लिया।


फिल्म की शुरुआत से ही सिनेमा हॉल में उत्साह का माहौल था। बाहर ‘जय श्रीराम’ और ‘योगी-योगी’ के नारे गूंजते रहे। जैसे ही शो शुरू हुआ, दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी और हर प्रमुख संवाद पर तालियों और जयकारों की गूंज ने इस आयोजन को एक भावनात्मक अनुभव में बदल दिया।


"अजय" सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक आत्मचिंतन का माध्यम बनकर सामने आई — जो बताती है कि सच्चा नेतृत्व तपस्या, त्याग और लक्ष्य के प्रति दृढ़ निष्ठा से जन्म लेता है।

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