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बेटियां भी होंगी पिता की संपत्ति की साझेदार, जानिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उनके अधिकार

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 18 मार्च
  • 3 मिनट पठन


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जब घर में बेटी का जन्म होता है, तो अक्सर कहा जाता है कि घर में लक्ष्मी आई है, लेकिन जब बात उस लक्ष्मी को उसके अधिकार देने की होती है, तो कई बार लोग पीछे हटने लगते हैं। विशेष रूप से संपत्ति के अधिकारों की बात की जाए तो समाज में बेटियों को उनके हक से वंचित किया जाता है। संपत्ति में बेटियों के अधिकारों को लेकर अक्सर कई गलतफहमियां पाई जाती हैं। आज हम आपको बताएंगे कि कानून के अनुसार बेटियों को संपत्ति में कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं और किन परिस्थितियों में उन्हें अपने पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता।



पिता की संपत्ति पर बेटियों का अधिकार

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भारत में शुरू से ही बेटियों को संपत्ति में उनका हिस्सा देने में हिचकिचाहट रही है, जिसका एक प्रमुख कारण यह था कि पहले इस मामले पर कोई स्पष्ट कानून नहीं था। हालांकि, अब बेटियों को संपत्ति में उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए गए हैं। 1956 में लागू किया गया हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में 2005 में संशोधन करके बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार दिए गए हैं।


यह अधिनियम 1956 में विशेष रूप से संपत्ति पर दावा और अधिकारों के लिए बनाया गया था। इसके तहत, अब बेटी को अपने पिता की संपत्ति पर वही अधिकार प्राप्त हैं जो एक बेटे को होते हैं। 2005 में भारतीय संसद ने इस अधिनियम में संशोधन करके बेटी के अधिकारों को और भी पुख्ता कर दिया, जिससे पिता की संपत्ति पर उनके अधिकार को लेकर किसी प्रकार का संदेह नहीं रह गया।



पिता की संपत्ति पर बेटियों को कब नहीं मिलता है अधिकार?

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कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं, जब बेटियों को संपत्ति में अपना दावा करने का अधिकार नहीं मिल पाता। इसका मुख्य कारण यह होता है कि पिता अपनी मृत्यु से पहले अपनी पूरी संपत्ति अपने बेटे के नाम कर देते हैं। ऐसी स्थिति में बेटी को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलता।


हालांकि, यह सिर्फ पिता की स्व-अर्जित संपत्ति (self-acquired property) पर लागू होता है। अगर संपत्ति पिता को उनके पूर्वजों से प्राप्त हुई है, यानी वह पैतृक संपत्ति है, तो पिता उसे अपनी मर्जी से किसी एक को नहीं दे सकते। इस स्थिति में बेटी और बेटे दोनों का समान अधिकार होता है।


भारतीय कानून में क्या है प्रावधान?

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पैतृक संपत्ति में महिलाओं का अधिकार (women's rights in ancestral property) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) के तहत, बेटी को भी पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किया गया है। इसके साथ ही, मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) में भी बेटियों और अन्य परिवार की महिलाओं को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने का प्रावधान है।


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में पहले महिलाओं को केवल उनके पति की संपत्ति पर अधिकार था, लेकिन अब 2005 के संशोधन के बाद यह अधिकार पिता की संपत्ति पर भी सुनिश्चित कर दिया गया है।


2005 का संशोधन और इसका प्रभाव

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9 सितंबर 2005 को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 में संशोधन किया गया, जिसके तहत बेटियों को भी पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है। इस संशोधन के अनुसार, यदि 9 सितंबर 2005 तक पिता जीवित थे, तो ही बेटियां संपत्ति में हकदार होंगी।


2020 का ऐतिहासिक फैसला

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हाल ही में, 11 अगस्त 2020 को विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा केस में माननीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस फैसले में कहा गया कि बेटी जन्म से ही पैतृक संपत्ति में हकदार होती है, और इसके लिए यह जरूरी नहीं कि पिता जीवित हों या न हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को उनकी पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलता है, और इस अधिकार का दावा 2005 में संशोधन की तिथि से ही किया जा सकता है।


यह निर्णय एक प्रगतिशील कदम था, जो बेटियों के अधिकारों को और भी मजबूत करता है। इसके तहत, अब बेटियां बिना किसी भेदभाव के पैतृक संपत्ति में अपना हक मांग सकती हैं।


इस फैसले ने यह साबित किया कि बेटियों को उनकी पैतृक संपत्ति में अधिकार प्राप्त है, और इसके लिए पिता का जीवित होना जरूरी नहीं है।


बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार देने के लिए कानून में कई बदलाव किए गए हैं, जिनसे उन्हें उनके अधिकार मिल रहे हैं। हालांकि, कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जब संपत्ति का दावा नहीं किया जा सकता। फिर भी, आज बेटियों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने का हक है, और यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी बेटी अपने पिता की संपत्ति से वंचित न रहे।

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