प्रशासन ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों से रेस्क्यू कर 168 लोगों को होटलों में किया शिफ्ट
- ANH News
- 18 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 19 सित॰

आपदा की भीषण मार झेल रहे उत्तराखंड के प्रभावित क्षेत्रों से प्रशासन लगातार राहत और बचाव कार्यों को अंजाम दे रहा है। इस प्रयास के तहत अब तक 168 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर रेस्क्यू कर, उन्हें अस्थायी रूप से होटलों में शिफ्ट किया गया है, जहां उन्हें ठहरने, खाने और जरूरी राहत सामग्री की पूरी व्यवस्था मुहैया कराई गई है।
प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत मंगलवार को पांच होटलों का अधिग्रहण किया, जिनमें प्रभावित लोगों को अस्थायी रूप से शरण दी जा रही है। इन होटलों में प्रशासन की ओर से प्रत्येक होटल में दो-दो कर्मचारी तैनात किए गए हैं, जिनका काम है प्रभावितों की समस्याएं सुनना, ज़रूरतों को नोट करना और त्वरित समाधान सुनिश्चित करना।
इन होटलों में ठहराए गए लोगों को राशन, भोजन और स्वच्छता से जुड़ी सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके साथ ही प्रशासन ने सफाई कर्मचारियों को भी इन होटलों में तैनात किया है, ताकि रहन-सहन की स्थिति बेहतर बनी रहे और लोग मानसिक व शारीरिक रूप से सुरक्षित महसूस करें।
जिलाधिकारी सविन बंसल ने जानकारी दी कि आपदाग्रस्त मजाड़ और कालीगाड क्षेत्रों में सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन अभी भी जारी है। खतरनाक स्थानों से अब तक 70 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है, जबकि अन्य गांवों से भी लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर, कार्लीगाड गांव से 60 लोगों को रेस्क्यू कर हिमालयन व्यू होटल में शिफ्ट किया गया है, जो पहले नागल हटनाला के एक प्राइमरी स्कूल में ठहरे हुए थे। वहीं, सेरा गांव से 32 लोगों को ईरा रिजॉर्ट और कुल्हान गांव के 76 प्रभावितों को हिल व्यू होटल में ठहराया गया है।
प्रशासन ने जिला पर्यटन विकास अधिकारी को इन राहत केंद्रों का नोडल अधिकारी नियुक्त किया है, जबकि सहायक खंड विकास अधिकारी (रायपुर) को सहायक नोडल अधिकारी बनाया गया है। इनकी निगरानी में होटलों में प्रभावितों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सुचारु व्यवस्था चलाई जा रही है।
प्रशासन ने प्रभावित परिवारों से उनके नुकसान का भी विवरण एकत्र करना शुरू कर दिया है, ताकि भविष्य में उन्हें उचित मुआवजा और सहायता प्रदान की जा सके। यह पूरी व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि आपदा से बेघर हुए लोग कम से कम एक सुरक्षित और सम्मानजनक ठिकाना पा सकें, जब तक कि हालात सामान्य नहीं हो जाते।





