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Diwali 2025: 20 या 21 अक्टूबर? जानें लक्ष्मी पूजन की जरूरी बातें

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 20 अक्टू॰
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 21 अक्टू॰

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दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व न केवल रोशनी और उल्लास का प्रतीक है, बल्कि मां लक्ष्मी की आराधना का भी विशेष अवसर होता है। इस बार पंचांग में एक विशेष स्थिति बन रही है, जिसने आमजन के बीच दिवाली की सही तिथि को लेकर भ्रम पैदा कर दिया है। दरअसल, इस वर्ष अमावस्या तिथि दो दिन — 20 और 21 अक्टूबर — पर पड़ रही है, जिससे लोग यह तय नहीं कर पा रहे कि लक्ष्मी पूजन किस दिन करना उचित रहेगा।


ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, दिवाली केवल अमावस्या तिथि पर ही नहीं, बल्कि विशेष मुहूर्तों के संयोग में मनाई जाती है। प्रमुख ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, जब अमावस्या दो दिन हो, तो दिवाली उस दिन मनाई जाती है जिस दिन अमावस्या तिथि प्रदोष काल में विद्यमान होती है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद का वह समय होता है, जो लगभग दो घंटे 24 मिनट तक चलता है। इसी समय मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।


पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को दोपहर 3:44 बजे शुरू होकर 21 अक्टूबर को शाम 5:50 बजे समाप्त होगी। इस स्थिति में 20 अक्टूबर को जब सूर्यास्त होगा और प्रदोष काल आरंभ होगा, उस समय अमावस्या तिथि विद्यमान रहेगी। जबकि 21 अक्टूबर को प्रदोष काल शुरू होने तक अमावस्या तिथि समाप्त हो चुकी होगी। ऐसे में 21 अक्टूबर को लक्ष्मी पूजन करना शास्त्रसम्मत नहीं माना जाएगा, क्योंकि उस समय वह ज्योतिषीय संयोग मौजूद नहीं होगा जो दिवाली पूजन के लिए आवश्यक है।


इसके विपरीत, 20 अक्टूबर को न केवल प्रदोष काल में अमावस्या रहेगी, बल्कि महानिशा काल और वृषभ लग्न, जो लक्ष्मी पूजन के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं, उसी दिन उपलब्ध रहेंगे। निशीथ व्यापिनी अमावस्या — यानी रात में अमावस्या तिथि का होना — 20 अक्टूबर को ही पड़ रही है। यही कारण है कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से लक्ष्मी पूजन, दीपदान और महालक्ष्मी वंदना के लिए यही दिन सर्वश्रेष्ठ है।


20 अक्टूबर को प्रदोष काल शाम 5:46 बजे से रात 8:18 बजे तक रहेगा, जबकि वृषभ काल शाम 7:08 बजे से रात 9:03 बजे तक रहेगा। ये दोनों ही मुहूर्त मां लक्ष्मी के पूजन के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। वृषभ लग्न को स्थिर लग्न कहा जाता है, जिसमें किया गया पूजन स्थायी सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है।


हालांकि 21 अक्टूबर को भी अमावस्या तिथि का आंशिक भाग विद्यमान रहेगा, लेकिन वह केवल दान-पुण्य और शनि पूजन के लिए उपयोगी होगा। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, तिल और वस्त्रों का दान तथा शनि देव की पूजा करना विशेष फलदायी माना गया है। मान्यता है कि अमावस्या पर स्नान और दान करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और शनि के दोष शांत होते हैं।


इस प्रकार, ज्योतिषीय गणनाओं और धार्मिक परंपराओं के अनुसार, इस वर्ष दिवाली 20 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को ही मनाई जाएगी। इसी दिन लक्ष्मी पूजन, दीपदान और रात्रिकालीन धार्मिक अनुष्ठान करना उचित रहेगा। 21 अक्टूबर को अमावस्या तिथि का शेष भाग सामाजिक और धार्मिक कार्यों के लिए उपयोगी रहेगा, लेकिन दिवाली पूजन के लिए उपयुक्त नहीं माना जाएगा।


इस जानकारी के साथ, अब श्रद्धालुजन सही समय पर अपने दीपों की रौशनी और श्रद्धा के साथ मां लक्ष्मी का पूजन कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना कर सकते हैं।

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