चीन सीमा के पास मिली बड़ी ग्लेशियर झील, टूटने पर भीषण तबाही का डर
- ANH News
- 9 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 10 सित॰

उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों के बढ़ते खतरे ने वैज्ञानिकों और प्रशासन दोनों की चिंता बढ़ा दी है। पिथौरागढ़ की दारमा घाटी में स्थित एक विशाल ग्लेशियर झील, जिसे अर्णव झील के नाम से जाना जा रहा है, का आकार पिछले समय में लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। यह झील लगभग 700 मीटर लंबी और 600 मीटर चौड़ी है, और यह क्षेत्र भारत-चीन सीमा के निकट दावे गांव से शुरू होता है। इस तेजी से बढ़ती झील के कारण इलाके में संभावित आपदा की आशंका जताई जा रही है।
गंगोत्री के केदारताल और चमोली की वसुधारा झीलों का भी लगातार फैलाव हो रहा है, जो उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है। 2014 से 2023 के बीच लिए गए उपग्रह चित्रों के अध्ययन में इन झीलों के आकार में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो हिमालयी क्षेत्र की जलवायु और भू-परिवर्तन की गंभीर चुनौतियों को दर्शाता है।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट ने इन झीलों का उपग्रह आंकड़ों के माध्यम से गहराई से अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि देशी-विदेशी उपग्रहों द्वारा प्राप्त सेटेलाइट चित्रों के विश्लेषण में स्पष्ट रूप से झीलों के आकार में बड़े बदलाव देखे गए हैं, जो इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिरता के लिए गंभीर संकेत हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ये तीनों झीलें हिमनदों के असंगठित मलबे यानी मोराइन डैम के कारण बनी हैं, जो प्राकृतिक बांध के रूप में कार्य करते हैं। इस तरह की झीलें यदि अचानक बर्फ पिघलने या अत्यधिक वर्षा के कारण अपने जल स्तर को नियंत्रित नहीं कर पाईं, तो इनके टूटने की आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में नीचे बसे इलाकों में विनाशकारी बाढ़ और तबाही आ सकती है, जैसा कि 2013 की केदारनाथ आपदा में देखा गया था।
डॉ. बिष्ट ने राज्य सरकार और वैज्ञानिक समुदाय को इस विषय में आगाह करते हुए कहा है कि समय रहते इन झीलों का नियमित आकलन और निगरानी आवश्यक है। साथ ही, सुरक्षा के उचित उपाय और आपदा प्रबंधन की रणनीतियां बनाना बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी बड़े प्रलय से बचा जा सके।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के इस अध्ययन के साथ ही वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की रिसर्च ने भी इस खतरे की पुष्टि की है। वाडिया संस्थान ने चमोली के वसुधारा झील और केदारताल का विस्तृत अध्ययन कर इन झीलों के तेजी से बढ़ते आकार को रेखांकित किया है। साथ ही, इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्रों में कुल 25 खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की है, जिनकी निरंतर निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है।
यह स्थिति साफ संकेत करती है कि हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों की सुरक्षा को लेकर सतर्कता और तत्परता न बढ़ाई गई तो यह क्षेत्र फिर से भयानक प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ सकता है। इसलिए वैज्ञानिकों, प्रशासन और स्थानीय समुदायों को मिलकर इन जोखिमों से निपटने की तैयारियां करनी होंगी ताकि भविष्य में मानव जीवन और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।





