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दिवाली के बाद 1 दिन का विराम, 6 दिन तक चलेगा त्योहारों का सिलसिला: जानें तिथियों की पूरी जानकारी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 18 अक्टू॰
  • 3 मिनट पठन
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दीपावली के शुभ अवसर पर हर ओर उल्लास और उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है। बाजारों में रंग-बिरंगी रोशनियों की झिलमिलाहट, पटाखों की गड़गड़ाहट, मिठाइयों की खुशबू और सजावटी मूर्तियों की शोभा हर किसी का मन मोह रही है। हिंदू धर्म के अनुसार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो इस वर्ष 20 अक्टूबर को है। यह पर्व केवल एक दिन का उत्सव नहीं बल्कि पांच दिवसीय महापर्व है, जिसे पंच पर्व के नाम से जाना जाता है। धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक यह पर्व पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।


इस वर्ष दीपावली के समय पंचांग में कुछ भिन्नताएं देखने को मिलीं, जिसके कारण लोगों में थोड़ी भ्रम की स्थिति भी रही। हालांकि काशी के ज्योतिषाचार्यों ने स्पष्ट किया है कि दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए। इस पर भी लोगों में यह सवाल बना रहा कि धनतेरस, नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा, अन्नकूट और भाई दूज जैसे अन्य त्योहार कब और कैसे मनाए जाएं। इस संदर्भ में बीएचयू के ज्योतिषाचार्य प्रो. सुभाष पांडेय ने बताया कि दीपावली पांच दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसकी शुरुआत 18 अक्टूबर को धनतेरस से होगी और यह 23 अक्टूबर तक चलेगा।


धनतेरस का दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की जयंती भी मनाई जाती है, जिन्हें आयुर्वेद के जनक और विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। व्यापारी और व्यवसायी वर्ग इस दिन अपनी बही-खाता और अन्य जरूरी वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। शाम को लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा होती है और माना जाता है कि इस दिन किए गए कार्यों से स्थायी लाभ मिलता है। इस वर्ष धनतेरस 18 अक्टूबर को है, जिसमें विशेष मुहूर्तों में पूजा और खरीदारी का विशेष महत्व है।


धनतेरस के अगले दिन हनुमान जयंती और नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाएगा। नरक चतुर्दशी की शाम को यमदूत के लिए दीप जलाए जाते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। मुख्य दीपावली पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जब कार्तिक अमावस्या तिथि प्रदोषकाल में होगी। इसके बाद 22 अक्टूबर को अन्नकूट पर्व होगा, जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर में 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। अंतिम दिन, 23 अक्टूबर को भाई दूज मनाया जाएगा, जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु के लिए पूजा करती हैं और उन्हें तिलक लगाकर मिठाई खिलाती हैं।


दीपावली पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे कुमकुम, अक्षत, रोली, पूजा चौकी, लाल कपड़ा, चंदन, देवी लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां, पान के पत्ते, दूर्वा, कपूर, सुपारी, पंचामृत, हल्दी, गंगाजल, कमल के बीज, कपास की बातियां, कलाई रक्षा सूत्र, बताशे, फल, फूल, कलश, आम के पत्ते, अगरबत्ती और दीपक जुटा कर पूजा स्थल की अच्छी सफाई के साथ पूजा की जाती है। पूजा विधि में पूजा चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, फिर गंगाजल छिड़काव, मंत्रोच्चारण और पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के अंत में घर के हर कोने में दीपक जलाकर सुख-समृद्धि और शांति की कामना की जाती है।


दीपावली पर कुछ विशेष सावधानियां भी अपनानी चाहिए। जैसे झूठ बोलना, मांसाहार और शराब से परहेज करना, बुरे विचारों से दूर रहना, और अशुद्ध सामग्री का उपयोग न करना। साथ ही घर की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए और बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करना चाहिए। रामचरितमानस का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।


ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार धनतेरस से भाई दूज तक यमराज की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दौरान यमदीप जलाकर अकाल मृत्यु से रक्षा की जाती है। साथ ही राशि और जन्म तिथि के अनुसार शुभ सामग्री की खरीदारी करने से सौभाग्य बढ़ता है। मेष राशि वालों को पीतल और चांदी के गहने, वृष वालों को सोना, मिथुन को कांसा, कर्क को पीतल या मिट्टी की मूर्ति, सिंह को सोने के गहने, कन्या को कांसे के बर्तन, तुला को चांदी के आभूषण, वृश्चिक को झाड़ू और सजावट का सामान, धनु को स्टील के बर्तन, मकर को पीतल का बर्तन, कुंभ को चांदी और तांबे के बर्तन तथा मीन राशि वालों को सोने-चांदी के गहने खरीदने का सुझाव दिया गया है।


इस प्रकार, दीपावली का यह पावन पर्व न केवल रोशनी और उत्साह का प्रतीक है, बल्कि पारिवारिक एकता, सामाजिक सौहार्द और धार्मिक आस्था का भी अनमोल अवसर है, जिसे हर भारतीय हर्षोल्लास के साथ मनाता है।

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