डॉक्टरों ने किया असंभव को संभव, डेढ़ साल के बच्चे के दिमाग से निकाला गया 6 सेमी का ट्यूमर
- ANH News
- 21 सित॰
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अपडेट करने की तारीख: 22 सित॰

चिकित्सा विज्ञान की दुनिया में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं, जो न सिर्फ विज्ञान की सीमाएं लांघते हैं, बल्कि इंसानी जज़्बे, विशेषज्ञता और समर्पण का ऐसा उदाहरण पेश करते हैं, जिसे इतिहास लंबे समय तक याद रखता है। ऐसा ही एक चमत्कार हाल ही में हिमालयन हॉस्पिटल, देहरादून में घटित हुआ, जहां मात्र 18 महीने के एक मासूम बच्चे के मस्तिष्क से 6 सेंटीमीटर का एक विशाल ब्रेन ट्यूमर (क्रैनियोफेरिंजियोमा) सफलतापूर्वक हटाया गया।
यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं था, बल्कि एक जीवन-मृत्यु के संघर्ष में उम्मीद की जीत थी, एक असंभव को संभव कर दिखाने वाली मिसाल थी, और भारत के मेडिकल इतिहास में दर्ज होने वाला एक अभूतपूर्व अध्याय था।
जब मासूम की सांसें दांव पर थीं...
बच्चा बहुत ही कम उम्र का था- मात्र डेढ़ साल का। उस उम्र में जब जीवन सिर्फ खिलौनों, हंसी और मासूमियत से भरा होता है, तभी उस नन्हे से जीवन में एक ऐसी काली छाया ने दस्तक दी, जिसका नाम था- ब्रेन ट्यूमर। जैसे ही परिजनों को इस गंभीर स्थिति का पता चला, उनका संसार जैसे थम सा गया।
डॉक्टरों की माने तो यह ट्यूमर न केवल आकार में बड़ा था, बल्कि अत्यधिक संवेदनशील और खतरनाक स्थान पर मौजूद था। यह बच्चे के मस्तिष्क के ऐसे हिस्सों को दबा रहा था, जिनसे शरीर के अनेक जरूरी कार्य नियंत्रित होते हैं।

परिवार के लिए सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि क्या कोई ऐसा डॉक्टर या अस्पताल मिलेगा, जो इतने छोटे बच्चे की इस खतरनाक सर्जरी को अंजाम दे सके?
एक उम्मीद की किरण- हिमालयन हॉस्पिटल
परिवार की यह तलाश उन्हें हिमालयन हॉस्पिटल, जौलीग्रांट तक ले आई, जहां वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. बृजेश तिवारी और उनकी अनुभवी टीम ने इस चुनौती को स्वीकार किया। प्रारंभिक जांचों के बाद डॉक्टरों ने स्पष्ट कर दिया कि ट्यूमर की प्रकृति बेहद गंभीर है, और इसे हटाने के लिए एक अत्यंत जटिल और जोखिमभरी सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है।
सर्जरी आसान नहीं थी- न तकनीकी रूप से, न भावनात्मक रूप से। इतना छोटा मस्तिष्क, कोमल संरचनाएं, और जरा सी भी चूक जानलेवा साबित हो सकती थी। लेकिन डॉक्टर तिवारी और उनकी टीम ने न हार मानी, न डर दिखाया। उन्होंने विज्ञान, अनुभव और समर्पण की पूरी ताकत झोंक दी।
मेडिकल इतिहास में दर्ज हुई एक असंभव सी लगने वाली सर्जरी
इस ऑपरेशन का नेतृत्व डॉ. बृजेश तिवारी ने किया। उन्होंने बताया कि बच्चों का मस्तिष्क पूरी तरह विकसित नहीं होता, इसलिए किसी भी सर्जिकल हस्तक्षेप में अत्यधिक सूक्ष्मता, धैर्य और अनुभव की आवश्यकता होती है।
ट्यूमर का आकार इतना बड़ा था कि ऑपरेशन के दौरान हर एक मिलीमीटर मायने रखता था। एक भी नस, एक भी ब्रेन स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचा तो नतीजे विनाशकारी हो सकते थे। लेकिन डॉक्टरों ने अपनी टीम के साथ मिलकर ऐसा संतुलन और सटीकता बरती कि पूरा ट्यूमर सफलतापूर्वक निकाल लिया गया — बिना किसी न्यूरोलॉजिकल जटिलता के।
सर्जरी में डॉक्टर संजीव पांडे और अंकित भाटिया ने साथ निभाया, वहीं डॉ. वीना अस्थाना और डॉ. गुरजीत खुराना की एनेस्थीसिया टीम ने हर पल बच्चे की स्थिति पर बारीकी से नज़र रखी। ऑपरेशन के बाद डॉ. आशीष कुमार ने बच्चे की रिकवरी को संभाला और उसे धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौटाया।
चिकित्सकीय महारथ का एक और प्रमाण
डॉ. बृजेश तिवारी इससे पहले भी कई जटिल सर्जरी कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने एक 20 वर्षीय युवक के मस्तिष्क में मौजूद "सुप्रा-जायंट ब्रेन एन्यूरिज्म" की सफल क्लिपिंग भी की थी- जो अपने आप में भारत का अब तक का सबसे बड़ा और जोखिम भरा केस था। उस युवक ने ऑपरेशन के अगले ही दिन अपने पैरों पर चलना शुरू कर दिया था।
इन मामलों से यह साफ होता है कि डॉ. तिवारी और उनकी टीम ना सिर्फ तकनीकी रूप से कुशल हैं, बल्कि उनमें संकट की घड़ी में भी शांत रहने और सटीक निर्णय लेने की क्षमता है- जो हर अच्छे सर्जन की पहचान होती है।
जब सरकार की योजना बनी वरदान: आयुष्मान भारत
इस संपूर्ण उपचार का सबसे हर्षजनक पहलु यह है कि इस बच्चे का इलाज प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत योजना) के अंतर्गत पूरी तरह निःशुल्क किया गया।
परिवार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ा। एक तरफ जहाँ इतनी जटिल सर्जरी करोड़ों में आंकी जा सकती थी, वहीं इस योजना के चलते एक सामान्य परिवार को विश्वस्तरीय चिकित्सा मिल सकी- बिना किसी आर्थिक चिंता के।
यह साबित करता है कि जब चिकित्सा विज्ञान और जनसेवा हाथ में हाथ डालकर चलते हैं, तो चमत्कार संभव होते हैं।
एक नई सुबह, एक नई जिंदगी
आज वह मासूम बच्चा स्वस्थ है, हंसता-खेलता है और अपने जीवन की नई सुबह को देख रहा है। उसका परिवार आंसुओं के साथ धन्यवाद कहता है - डॉक्टरों को, हॉस्पिटल को और उस व्यवस्था को, जिसने उन्हें समय पर जीवन की सबसे अनमोल सौगात दी: एक और सांस।
यह सिर्फ एक सर्जरी की कहानी नहीं है- यह जज्बे, तकनीक, नीति और मानवता के मिलन से बनी आशा की कहानी है।





