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हेल्थ सिस्टम को लापरवाह डॉक्टरों के भरोसे नहीं छोड़ सकते: डॉ. धन सिंह रावत

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 8 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 9 सित॰

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उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने जानकारी दी है कि राज्य में चिकित्सकों के 300 रिक्त पदों को जल्द भरा जाएगा। इस प्रक्रिया को गति देने के लिए विभागीय अधिकारियों को उत्तराखंड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड को अधियाचन भेजने और भर्ती प्रक्रिया के लिए रोस्टर तैयार करने के निर्देश दे दिए गए हैं।


मंत्री डॉ. रावत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता राज्य के सुदूरवर्ती, पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों तक सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाना है। हाल ही में 220 नए चिकित्सकों की नियुक्ति कर उन्हें प्रदेश के दूरस्थ स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात किया गया है। अब अतिरिक्त 300 चिकित्सकों की भर्ती से इन इलाकों की स्वास्थ्य व्यवस्था को और अधिक मज़बूती मिलने की उम्मीद है।


सरकार जहाँ एक ओर स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और सुदृढ़ीकरण के लिए कदम उठा रही है, वहीं लापरवाह और गैर-जिम्मेदार चिकित्सकों के प्रति सख्त रुख भी अपना रही है। डॉ. रावत ने बताया कि विभाग ने लंबे समय से अनुपस्थित चल रहे 56 बांडधारी चिकित्सकों की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। ये वे डॉक्टर हैं जिन्होंने राज्य सरकार द्वारा दी गई शैक्षिक सहायता और नाममात्र शुल्क पर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी अनुबंध की शर्तों के अनुसार सरकारी सेवा नहीं दी।


इन चिकित्सकों से अब अनुबंध के तहत निर्धारित बांड राशि वसूलने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। मंत्री ने बताया कि इससे पूर्व 234 बांडधारी चिकित्सकों को अंतिम चेतावनी नोटिस भेजा गया था। इनमें से 178 चिकित्सकों ने समय रहते विभाग में पुनः योगदान कर लिया, लेकिन 56 डॉक्टरों ने नियमों की अवहेलना जारी रखी, जिसके चलते उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।


डॉ. रावत ने दो टूक कहा कि प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को अत्यंत कम शुल्क पर एमबीबीएस की पढ़ाई करवाने के पीछे सरकार का मुख्य उद्देश्य यही होता है कि वे पढ़ाई के बाद राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में सेवा दें। अनुबंध की शर्तों के अनुसार, इन चिकित्सकों को कम से कम पाँच वर्ष तक पर्वतीय जिलों में काम करना अनिवार्य होता है। यदि वे इस सेवा से इंकार करते हैं तो उन्हें बांड में तय राशि का भुगतान करना पड़ता है।


स्वास्थ्य मंत्री ने यह भी जोड़ा कि राज्य सरकार नागरिकों को नज़दीकी अस्पतालों में बेहतर और समुचित इलाज उपलब्ध कराने के लिए संकल्पबद्ध है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में जो भी व्यक्ति या अधिकारी बाधा बनेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। डॉ. रावत ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि अब स्वास्थ्य सेवाओं को गैर-जिम्मेदार लोगों के भरोसे नहीं छोड़ा जाएगा, और पारदर्शी व्यवस्था के तहत योग्य चिकित्सकों की नियुक्ति एवं अनुशासनहीनता पर कठोर नियंत्रण ही सरकार की प्राथमिकता होगी।

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