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सीएम धामी ने बजाया सतर्कता का बिगुल, 13 लॉन्ग रेंज सायरनों का किया लोकार्पण

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 7 सित॰
  • 3 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 8 सित॰

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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में शनिवार को आपदा प्रबंधन की दिशा में एक नई पहल की गई, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 13 लॉन्ग रेंज अत्याधुनिक सायरनों का विधिवत लोकार्पण किया। थाना डालनवाला परिसर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम राज्य की आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली को अधिक सक्षम और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।


उत्तराखंड एक पहाड़ी और भौगोलिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य है, जहां भूस्खलन, बादल फटना, बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में समय रहते चेतावनी और सूचनाओं का प्रसारण जनजीवन की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आठ किलोमीटर और सोलह किलोमीटर की रेंज वाले इन लॉन्ग रेंज सायरनों को स्थापित किया गया है।


धामी ने कहा कि यह सायरन प्रणाली न केवल संभावित आपदाओं के समय चेतावनी देने का कार्य करेगी, बल्कि यह आम नागरिकों को सतर्क करने, जागरूकता फैलाने और समय पर जरूरी कदम उठाने में भी अहम भूमिका निभाएगी। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि इन सायरनों का समय-समय पर परीक्षण किया जाए और आम जनता को इसके बारे में जागरूक किया जाए ताकि आपातकालीन स्थिति में इनका पूरा लाभ उठाया जा सके।


कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री को सेवानिवृत्त पुलिसकर्मियों, उत्तराखंड पीसीएस एसोसिएशन और उत्तराखंड पुलिस के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में सहायता राशि के चेक भी सौंपे। इस मौके पर कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी, सुबोध उनियाल, विधायक खजान दास, जिलाधिकारी सविन बंसल समेत अनेक अधिकारी उपस्थित रहे।


सायरन की वास्तविकता: दावा कुछ, असर कुछ और


हालांकि उद्घाटन के दौरान दावा किया गया कि 40 सेकेंड तक पूरे शहर में सायरनों की गूंज सुनाई दी, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग रही। अमर उजाला की टीम ने शहर के विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों में जाकर यह जानने का प्रयास किया कि वास्तव में यह लॉन्ग रेंज सायरन कितनी दूर तक सुनाई दे रहा है।


शहर के भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों जैसे घंटाघर, धारा चौकी, सहारनपुर चौक, महाराणा प्रताप बस अड्डा, पटेलनगर, सर्वे चौक और नेहरू कॉलोनी आदि में सायरनों की आवाज या तो बहुत हल्की थी या पूरी तरह गायब रही।


धारा चौकी के पास, जहां सामान्यतः सायरन की स्पष्ट गूंज अपेक्षित थी, वहां लोगों को कुछ भी असामान्य सुनाई नहीं दिया। घंटाघर की ओर तो सायरन की आवाज ट्रैफिक और गाड़ियों के हॉर्न के शोर में पूरी तरह दब गई।


महाराणा प्रताप बस अड्डे पर, जो कि शहर का प्रमुख यातायात केंद्र है, वहां भी हजारों की भीड़ के बीच सायरन की कोई आवाज नहीं पहुंच सकी। लोग अपने रोज़मर्रा के कार्यों में व्यस्त रहे और किसी ने भी आपदा चेतावनी जैसी कोई अनुभूति नहीं की।


पटेलनगर थाने में सायरन तो बजा, लेकिन उसकी आवाज कुछ सौ मीटर बाद ही ट्रैफिक के शोर में गुम हो गई। न लालपुल क्षेत्र में और न देहराखास इलाके में इसकी कोई गूंज सुनाई दी।


सर्वे चौक पर तो सायरन की आवाज इतनी धीमी थी कि लोगों को उसका अस्तित्व ही पता नहीं चला। स्थानीय नागरिकों से जब पूछा गया कि क्या उन्हें सायरन की कोई आवाज सुनाई दी, तो जवाब में सिर्फ गाड़ियों के हॉर्न की चर्चा हुई।


हालांकि, नेहरू कॉलोनी थाने के पास कुछ बेहतर प्रतिक्रिया देखने को मिली। विष्णु विहार मार्ग पर सायरन बजने पर कुछ लोगों ने उसकी आवाज सुनी और बाहर आकर उत्सुकता से आसमान की ओर देखा। दुकानदार और आसपास के लोग चर्चा करने लगे कि यह आवाज कहां से आई और किसलिए बजाई गई। पास ही के मंदिर में कीर्तन कर रही महिलाओं ने भी सायरन की आवाज को लेकर जिज्ञासा जताई।


फिर भी, एक ऐसी व्यवस्था जो पूरे शहर को आपातकालीन सूचना देने के उद्देश्य से स्थापित की गई है, अगर वह अपने उद्देश्य में सफल न हो पाए तो इस पर सवाल उठना लाजमी है।


सरकार की यह पहल निश्चित रूप से सराहनीय है और तकनीकी सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम है, लेकिन इसकी जमीनी क्रियान्वयन में अभी कई खामियां सामने आई हैं। सायरनों की प्रभावशीलता तब ही साबित होगी जब वे शोरगुल वाले क्षेत्रों में भी स्पष्ट रूप से सुने जा सकें और समय रहते लोगों तक चेतावनी पहुंचा सकें।


मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए निर्देशों के आलोक में यह जरूरी हो जाता है कि इन सायरनों का नियमित परीक्षण हो, उनकी ध्वनि क्षमता का पुनर्मूल्यांकन किया जाए, और ऐसी तकनीकी खामियों को दूर किया जाए ताकि भविष्य में आपदाओं के समय यह प्रणाली वाकई में जीवनरक्षक सिद्ध हो सके।

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