top of page

मां गंगा की दिव्य कथा: जब प्रेम, तप और भक्ति से धरती पर उतरी जीवनदायिनी धारा, आज भी बह रहीं हैं मोक्ष का मार्ग बनकर

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 4 मई
  • 3 मिनट पठन
ree

बैसाख शुक्ल सप्तमी वह दिव्य तिथि है जब सृष्टि निर्माण के समय भगवान विष्णु के चरणों से गंगा का जन्म हुआ। यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था, मोक्ष और जीवन का प्रतीक है। आज भी, लाखों वर्षों के बाद, 2525 किलोमीटर लंबी मां गंगा हिमालय की गोद से निकलकर गंगासागर तक न केवल धरती को सींचती हैं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आत्मा को भी शुद्ध करती हैं।


गंगा का दिव्य जन्म: विष्णु चरणोदक से ब्रह्मलोक तक की यात्रा

पौराणिक आख्यानों के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में लीन थे, तब महालक्ष्मी ने उनके चरणों को धोया। यह पवित्र चरणोदक ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में संजो लिया और इस दिव्य जलधारा को ‘गंगा’ नाम दिया। यही चरणोदक कालांतर में ब्रह्मलोक से स्वर्गलोक तक सुगंधित प्रवाह के रूप में बहने लगी।


गंगा अवतरण: जब पृथ्वी पर आई मोक्षदायिनी

कालांतर में त्रेतायुग में, अयोध्या के राजा सगर के 60 हजार शापित पुत्रों की मुक्ति के लिए उनके वंशज राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर पृथ्वी पर उतारा। यही घटना आगे चलकर गंगा दशहरा के रूप में मनाई जाती है, जो आज से लगभग सवा महीने बाद आता है।


गंगा अवतरण के इस महान प्रयास में इक्ष्वाकु वंश की चार पीढ़ियों का योगदान रहा। अंततः भगीरथ की भक्ति से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं और सगर पुत्रों की राख को स्पर्श कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया।


गंगा के अनेक रूप और नाम

मां गंगा को उनके गुण, स्थान और घटनाओं के अनुसार कई नामों से पुकारा गया:


विष्णुपदी – क्योंकि वे विष्णु के चरणोदक से उत्पन्न हुईं


ब्रह्म कमंडली – ब्रह्मा के कमंडल से बहने के कारण


जान्ह्वी – ऋषि जन्हू द्वारा पी जाने और फिर जंघा से मुक्त किए जाने के कारण


कुशोत्री – ऋषि दत्तात्रेय की कुशाएं बहा देने के कारण


इन विविध रूपों में गंगा केवल जलधारा नहीं, बल्कि धार्मिक परंपरा की आधारशिला हैं।


गंगा जन्मोत्सव की आज धूमधाम

बैसाख शुक्ल सप्तमी के इस पावन दिन को गंगा जन्मोत्सव के रूप में पूरे गांगेय क्षेत्र — गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक — श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। हरिद्वार की हरकी पैड़ी, प्रयागराज, वाराणसी और काशी सहित गंगा के किनारे बसे तीर्थ स्थलों पर विशेष गंगापूजन, आरती, शोभायात्रा और भंडारे आयोजित किए जा रहे हैं।


ree

तीर्थ पुरोहित गंगा मां की महाआरती करते हैं और लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाकर अपने पितरों को तर्पण देते हैं।


गंगा का रहस्य: ब्रह्मलोक की महारास लीला से जलरूप में बहने का आख्यान

एक अन्य पौराणिक कथा में बताया गया है कि ब्रह्मलोक में जब अनादि राधा और कृष्ण महारास में एकाकार हुए, तो उनकी प्रेमलीनता जलरूप में परिवर्तित हो गई — यही प्रेमधारा गंगा के रूप में प्रवाहित हुई।


गंगा: केवल नदी नहीं, मोक्ष का माध्यम

मां गंगा का जन्म दिव्य है, उनका प्रवाह अनंत है, और उनका प्रभाव चिरकालिक। आज भी श्रद्धालु गंगा को केवल जल नहीं, जीवनदायिनी और पापनाशिनी मानते हैं। वे मानते हैं कि गंगा-स्नान, गंगा-पूजन और गंगा में अस्थि विसर्जन से आत्मा को मुक्ति मिलती है।


बैसाख शुक्ल सप्तमी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और सनातन परंपरा का वह पर्व है, जब हम उस मां का स्मरण करते हैं जो सृष्टि के आदि में उत्पन्न हुई और आज तक संसार के कष्ट हरती आ रही हैं। आज का दिन गंगा के प्रति कृतज्ञता, भक्ति और पर्यावरणीय जागरूकता का भी प्रतीक है।

bottom of page