top of page

क्या था वो तरीका जिससे राजा-रानियों के कपड़े धोए जाने के बाद खूब चमकते थे, साबुन का 150 साल पुराना इतिहास...

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 17 मार्च
  • 3 मिनट पठन


ree

भारत में सर्फ और साबुन का इतिहास महज 150 साल पुराना है, लेकिन इससे पहले भी हमारे देश में कपड़े धोने और उन्हें चमकाने के कुछ बेहद प्रभावी तरीके थे। खासकर, जब बात राजमहलों और शाही परिवारों की होती थी, उनके कपड़े इतनी सफाई से धोए जाते थे कि उनका रंग और चमक देखने लायक होती थी। सवाल ये है कि जब साबुन और सर्फ जैसी आधुनिक चीजें उपलब्ध नहीं थीं, तो राजा-रानियों के महंगे कपड़े कैसे साफ होते थे और चमकते रहते थे?


प्राचीन भारत में स्वच्छता और कपड़े धोने की पारंपरिक विधियां

भारत में साबुन और सर्फ का उत्पादन औपनिवेशिक काल में हुआ, लेकिन इससे पहले कपड़े धोने के लिए प्राकृतिक उत्पादों और परंपरागत तरीकों का उपयोग किया जाता था। यह सिर्फ कपड़ों की सफाई तक सीमित नहीं था, बल्कि शरीर और स्वास्थ्य की देखभाल के लिए भी इनका इस्तेमाल किया जाता था।


1. रीठा - प्राचीन काल का प्राकृतिक साबुन

भारत में रीठा (सोप बेरी) का उपयोग सदियों से कपड़े धोने के लिए किया जाता रहा है। यह एक प्राकृतिक ऑर्गेनिक उत्पाद है, जिसे कीटाणुनाशक और सफाई के लिए आदर्श माना जाता था। रीठा के छिलकों से झाग उत्पन्न होता था, जो कपड़ों को साफ करने में मदद करता था और उनके ऊपर चमक भी लाता था। राजघरानों के महलों में रीठा के पेड़ लगाए जाते थे, ताकि महंगे रेशमी कपड़े भी इस प्राकृतिक उत्पाद से धोकर साफ किए जा सकें।


ree

यह सिर्फ कपड़े धोने के लिए ही नहीं, बल्कि बालों को धोने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। प्राचीन रानियां अपने बालों को भी रीठा से धोती थीं, जिससे बालों में न केवल स्वच्छता बनी रहती थी, बल्कि उनकी चमक भी बरकरार रहती थी।


2. गर्म पानी में उबालकर धोना


ree

कपड़े धोने की एक और पारंपरिक विधि थी जिसमें कपड़ों को गर्म पानी में डालकर उबालते थे। इसके बाद कपड़े को निकालकर ठंडा किया जाता था और फिर पत्थरों पर पीटकर उसका मैल निकाला जाता था। यह तरीका आज भी भारतीय धोबी घाटों पर प्रचलित है, जहां बिना साबुन के इस विधि से कपड़े धोए जाते हैं। यह तरीका खासकर ग्रामीण इलाकों में बहुत आम था।


3. 'रेह' - सफाई का प्राकृतिक खनिज

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सफाई के लिए 'रेह' नामक सफेद पाउडर का उपयोग किया जाता था। यह पाउडर खेतों, नदियों और तालाबों के किनारे पाया जाता था। इसे पानी में मिलाकर कपड़े धोने का काम किया जाता था। 'रेह' में सोडियम सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, और सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे तत्व पाए जाते थे, जो कपड़ों को कीटाणु मुक्त करने में मदद करते थे।


4. नदियों और समुद्र का पानी

प्राचीन भारत में नदियों और समुद्र के पानी में सोडे का इस्तेमाल भी कपड़े धोने में किया जाता था। यह पानी कपड़ों को साफ करने के लिए प्राकृतिक डिटर्जेंट का काम करता था और कपड़ों को चमकदार बनाता था।


5. मिट्टी और राख का उपयोग

कुछ समय पहले तक भारतीय लोग न केवल कपड़े धोने के लिए, बल्कि अपने शरीर और बर्तनों की सफाई के लिए भी मिट्टी और राख का इस्तेमाल करते थे। यह तरीका खासकर ग्रामीण इलाकों में बहुत आम था और यह एक प्राकृतिक सफाई का तरीका था, जिससे शरीर और बर्तन दोनों स्वच्छ रहते थे।


साबुन और सर्फ का भारत में आगमन

भारत में साबुन का मशीनी उत्पादन 1888 में हुआ, जब लीवर ब्रदर्स (अब यूनिलीवर) ने भारत में पहली बार साबुन की फैक्ट्री स्थापित की। पहले साबुन आयात किए जाते थे, लेकिन फिर भारत में इसका उत्पादन शुरू हुआ। मेरठ में 1897 में 'नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी' ने देश का पहला साबुन कारखाना स्थापित किया। इसके बाद, भारतीय कंपनियां जैसे गोदरेज और टाटा ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा और साबुन उद्योग में अपनी पहचान बनाई।


साबुन के उत्पादन से पहले, लोग प्राकृतिक उत्पादों जैसे रीठा, शिकाकाई, और नीम का इस्तेमाल करते थे, जो न केवल कपड़ों की सफाई करते थे, बल्कि उनकी मुलायमियत और चमक भी बनाए रखते थे। ये उत्पाद आज भी घरेलू और आयुर्वेदिक उपायों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।


सर्फ का भारत में इतिहास

सर्फ का इतिहास साबुन की तुलना में नया है। डिटर्जेंट का भारत में आगमन 1950 के दशक में हुआ, जब हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) ने 1960 के दशक में "सर्फ" डिटर्जेंट को भारतीय बाजार में पेश किया। यह डिटर्जेंट साबुन से सस्ता और अधिक प्रभावी विकल्प साबित हुआ, और बहुत जल्द यह भारत के सबसे लोकप्रिय डिटर्जेंट ब्रांडों में से एक बन गया।



यह स्पष्ट है कि जब साबुन और सर्फ जैसी आधुनिक सामग्री नहीं थीं, तब भी भारत में कपड़े धोने और स्वच्छता बनाए रखने के लिए बहुत प्रभावी पारंपरिक तरीके थे। प्राकृतिक उत्पादों जैसे रीठा, 'रेह', और नदियों के पानी का उपयोग कपड़े धोने के लिए किया जाता था, और ये सभी तरीके न केवल कपड़ों को साफ करते थे बल्कि उनकी चमक और मुलायमियत भी बनाए रखते थे। आज भी ये पारंपरिक विधियां हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं, जो स्वच्छता और प्राकृतिक जीवनशैली की ओर मार्गदर्शन करती हैं।

bottom of page