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सावन सोमवार व्रत 2025: सरल पूजा विधि और व्रत की पूरी प्रक्रिया यहां जानें

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 14 जुल॰
  • 3 मिनट पठन
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सावन मास हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यंत पावन और दिव्य माना जाता है। यह मास विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। सावन के हर सोमवार को शिव भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव का पूजन कर उनकी कृपा पाने का प्रयास करते हैं।


विशेषकर अविवाहित कन्याएं योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु और विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं। पुरुष भी अपनी श्रद्धा और मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु इस व्रत को रख सकते हैं।


व्रत की तैयारी: एक दिन पहले से आरंभ-

रात को करें ये तैयारियाँ (रविवार रात)

जिस स्थान पर पूजा करनी है, उस जगह को अच्छे से स्वच्छ कर लें।


पूजा की सारी सामग्री पहले ही एकत्रित कर लें, जिससे सुबह हड़बड़ी न हो।


पूजा सामग्री में शामिल करें:


फूल (विशेषकर सफेद फूल),


बेलपत्र (तीन पत्तियों वाला),


दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत हेतु),


गंगाजल, फल, भस्म या चंदन,


अगरबत्ती, कपूर, दीपक,


भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग।


व्रत के दिन की शुभ शुरुआत-

ब्रह्म मुहूर्त में जागरण (प्रातः 4:00–6:00)


प्रातःकाल स्नान कर शरीर और मन को पवित्र करें।


साफ, हल्के रंग के वस्त्र पहनें। सफेद, पीला या हल्का नीला शुभ माना जाता है।


शांत और भक्तिभाव से भरकर पूजा स्थल पर बैठें।


संकल्प विधि-

पूजन आरंभ करने से पूर्व शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति के समक्ष बैठकर संकल्प लें:


"हे भोलेनाथ! मैं आज सावन सोमवार का व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से कर रहा/रही हूँ। मेरी प्रार्थनाएं स्वीकार करें और मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखें।"


संकल्प लेते समय मन में अपनी कामनाएं स्पष्ट और शुद्ध भावना से रखें।


पंचामृत अभिषेक विधि-


शिवलिंग को पहले गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।


फिर एक-एक करके पंचामृत की सामग्री चढ़ाएं:


दूध – शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक।


दही – मधुरता और संतुलन का प्रतीक।


घी – समृद्धि और तेज का प्रतीक।


शहद – प्रेम और एकता का प्रतीक।


शक्कर – मिठास और सौहार्द का प्रतीक।


अंत में फिर से गंगाजल से अभिषेक पूर्ण करें।


इस दौरान “ॐ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें।


मंत्र जाप से ऊर्जा जाग्रत होती है और मन एकाग्र रहता है।


भोग और पूजन सामग्री अर्पण-


बेलपत्र अर्पित करें (इस पर त्रिशूल जैसा चिन्ह बना होना शुभ माना जाता है)।


सफेद फूल, धतूरा, भांग (यदि उपलब्ध हो तो), चंदन का लेप चढ़ाएं।


दीपक और अगरबत्ती जलाएं।


कुछ क्षण मौन प्रार्थना में बिताएं।


व्रत कथा श्रवण-

सावन सोमवार की व्रत कथा अवश्य सुनें या पढ़ें।

इन कथाओं में भक्ति, विश्वास और भगवान शिव की कृपा से जीवन में आए चमत्कारी परिवर्तनों का वर्णन होता है।


इससे भक्ति भाव और विश्वास और अधिक प्रगाढ़ होता है।


अतिरिक्त पाठ:


-शिव चालीसा


-रुद्राष्टक


-लिंगाष्टक


व्रत के प्रकार – अपने अनुसार चुनें


आप अपनी स्वास्थ्य व क्षमता अनुसार इनमें से कोई भी विधि चुन सकते हैं:


निर्जला व्रत – पूरा दिन बिना अन्न और जल के (केवल अनुभवी और स्वस्थ व्यक्ति करें)।


फलाहार व्रत – फल, दूध, नारियल पानी या जूस आदि लें।


एक समय भोजन व्रत – शाम को केवल एक बार सात्विक भोजन करें (बिना लहसुन-प्याज और अनाज के)।


भगवान शिव नियम नहीं, भावना को अधिक महत्व देते हैं।


शाम की पूजा और व्रत समापन


सूर्यास्त के समय पुनः दीप जलाकर छोटा पूजन करें।


शिव आरती गाएं, जैसे “ॐ जय शिव ओंकारा।”


फिर शांत भाव से अपनी साधना का समापन करें।


यदि आपने फलाहार या एक समय भोजन का संकल्प लिया है, तो पूजा के बाद सात्विक भोजन कर सकते हैं।


सप्ताह भर व्रत रखने का संकल्प (वैकल्पिक)

यदि समय और श्रद्धा हो, तो पूरे सावन मास के सोमवारों को व्रत रखें।

इससे जीवन में अनुशासन, शांति और भक्ति की भावना दृढ़ होती है।


सावन सोमवार व्रत केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-संयम, आत्म-शुद्धि और ईश्वर से जुड़ने की एक सुंदर साधना है। यह दिन केवल भूखा रहने का नहीं, बल्कि अपने भीतर झांकने, विनम्र बनने और शिव के चरणों में पूर्ण समर्पण का है। भोलेनाथ सरल हृदय से की गई भक्ति को तुरंत स्वीकार करते हैं। जो भी उनके शरण में आता है, उसे वे कभी निराश नहीं करते।

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