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केदारनाथ में हेलीकॉप्टर सेवाओं को मिलेगा 'डिजिटल कवच', अब हर उड़ान पर रहेगी 'ISRO' की नजर

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 2 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 3 सित॰

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केदारनाथ की हेली सेवाओं को अब अत्याधुनिक तकनीक का ‘डिजिटल कवच’ मिलने जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से हेली सेवाओं को स्मार्ट, सुरक्षित और अधिक विश्वसनीय बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। लाइव लोकेशन ट्रैकिंग से लेकर मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों की वास्तविक समय (रियल-टाइम) जानकारी तक- अब हर उड़ान पर पायलट और कंट्रोल रूम की नजर बनी रहेगी।


नागरिक उड्डयन विभाग के सचिव सचिन कुर्वे के अनुसार, इसरो की विशेषज्ञ टीम इसी पखवाड़े उत्तराखंड का दौरा करेगी और केदारघाटी में अपनी हाई-टेक प्रणाली का परीक्षण करेगी। यह पहल खासतौर पर 15 जून 2025 को केदारनाथ में हुए हेली दुर्घटना के बाद तेज़ी से आगे बढ़ाई गई है, जब राज्य सरकार ने हेली सेवाओं को तकनीकी रूप से और अधिक मजबूत और सुरक्षित बनाने का निर्णय लिया।


क्या होगा इस नई तकनीक में खास?

इसरो द्वारा एक उन्नत डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) विकसित किया जा रहा है, जो जीपीएस प्रणाली से जुड़ा होगा। यह सिस्टम न केवल हेलीकॉप्टर की लाइव लोकेशन कंट्रोल रूम तक पहुंचाएगा, बल्कि पायलट को रियल टाइम में मौसम, ऊंचाई और आसपास के इलाके की जानकारी भी देगा। इस तकनीक के जरिए:


-कंट्रोल रूम को हर पल हेलीकॉप्टर की स्थिति की सटीक जानकारी मिलेगी।

-पायलट को उड़ान मार्ग के आसपास के टैरेन प्रोफाइल, मौसम और अचानक बदलती परिस्थितियों का अनुमान पहले से मिल सकेगा।

-आपातकालीन स्थितियों में तुरंत प्रतिक्रिया देना और भी आसान हो जाएगा।

-यात्रियों की सुरक्षा में बड़ी बढ़ोतरी होगी।


अगस्त में होना था परीक्षण, आपदाओं के चलते हुआ विलंब-

इसरो की टीम का परीक्षण दौरा अगस्त 2025 में ही प्रस्तावित था, लेकिन उत्तरकाशी के धराली क्षेत्र में आई आपदा और उसके बाद की परिस्थितियों के चलते यह टल गया। अब तय किया गया है कि इस पखवाड़े इसरो के विशेषज्ञ उत्तराखंड आएंगे और अपने तकनीकी उपकरणों की फील्ड टेस्टिंग करेंगे।


क्यों जरूरी है यह कदम?

केदारनाथ जैसे दुर्गम और मौसम की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं हर साल हजारों यात्रियों के लिए जीवनरेखा साबित होती हैं। लेकिन खराब मौसम, जटिल भू-भाग और सीमित दृश्यता के चलते दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। ऐसे में यह हाई-टेक समाधान न केवल पायलटों को सुरक्षित उड़ान भरने में मदद करेगा, बल्कि सरकार को भी रियल टाइम मॉनिटरिंग के जरिए सेवाओं की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर निगरानी रखने में सक्षम बनाएगा।

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