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कर्म बड़ा या धर्म, आहार में मांस पाप नहीं? सेना के अधिकारी को प्रेमानंद महाराज ने दिया जवाब हो गए सब हैरान

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 18 मार्च
  • 3 मिनट पठन


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वृंदावन के परम पूज्य प्रेमानंद महाराज की सहज और धर्मसम्मत वाणी न केवल आम जनता, बल्कि खास लोगों के दिलों को भी छू जाती है। उनका शब्दों का चयन और धार्मिक दृष्टिकोण इतना प्रभावशाली होता है कि वह बिना किसी धार्मिक कट्टरता या रूढ़िवादिता के, सरल और व्यावहारिक जीवन में काम आने वाले कर्तव्यों की बात करते हैं। महाराज जी के आश्रम में हर स्तर के लोग आकर अपने सवालों का समाधान पाते हैं, और इनमें से एक सवाल ने हाल ही में सभी को चौंका दिया।


यह सवाल एक सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने किया था, जिन्होंने शाकाहारी होने के बावजूद यह पूछा कि जब उन्हें फौज के लिए मांसाहार की अनुमति देने के कागज पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं, तो वे इस पाप से कैसे बचें। प्रेमानंद महाराज जी का उत्तर इतना सटीक और अद्भुत था कि वह अधिकारी भी हैरान रह गए।


विधान का पालन करना आपका कर्तव्य

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प्रेमानंद महाराज जी ने बड़े ही सहज तरीके से समझाया कि आप सेना में कार्यरत हैं, और आपके पास व्यक्तिगत विचारों को प्राथमिकता देने का विकल्प नहीं है। सेना में आपका कर्तव्य राष्ट्र की सेवा है, न कि व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का पालन। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा, "मान लीजिए कोई आतंकवादी देश की सीमा में घुसने की कोशिश कर रहा है, तो क्या आप उसकी हत्या को पाप मानेंगे? नहीं, क्योंकि आपका कर्तव्य उसे निष्क्रिय करना है, ताकि राष्ट्र की सुरक्षा बनी रहे।" उनका तात्पर्य यह था कि जब आप किसी सरकारी विभाग का हिस्सा होते हैं, तो आपको उस विभाग के विधान का पालन करना ही पड़ता है, और इसमें पाप या पुण्य की कोई चर्चा नहीं होती।



आपका लक्ष्य राष्ट्र सेवा है, न कि आहार

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महाराज जी ने बताया कि सेना के अधिकारी का मुख्य उद्देश्य केवल राष्ट्र की रक्षा करना है, न कि यह देखना कि वह क्या खा रहे हैं। अगर युद्ध की स्थिति में प्राणों की रक्षा के लिए जो कुछ भी उपलब्ध है, उसे खाना पड़ता है, तो उसमें कोई विचार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, "आपका काम आहार नहीं, बल्कि राष्ट्र की रक्षा है। जो सरकार देती है, वही ग्रहण करें।" युद्ध की परिस्थितियों में भोजन केवल शारीरिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए होता है, न कि किसी धार्मिक विचारधारा के आधार पर।


आपको मांस परोसना भी पड़े तो करना होगा

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प्रेमानंद महाराज जी ने यह भी समझाया कि सेना एक विशेष और कठोर विभाग है, जिसका उद्देश्य राष्ट्र की रक्षा करना है। इसमें सैनिकों को शारीरिक रूप से सक्षम और मजबूत बनाना होता है, और इसके लिए कभी-कभी तामसिक आहार की आवश्यकता भी हो सकती है। उन्होंने कहा, "जो शाकाहारी हैं, वे अपने आहार में किसी तरह की समझौता नहीं करेंगे, लेकिन जो तामसिक या राजसिक प्रवृत्ति के लोग हैं, उनके लिए यह जरूरी हो सकता है। अगर यह सैनिकों की आवश्यकता है, तो आपको उसे पूरा करना होगा।


महाराज जी ने कहा, "आपको पाप का अहसास नहीं होगा, क्योंकि आप अपनी इच्छा से मांसाहार नहीं दे रहे हैं, बल्कि आप एक सरकारी कार्य कर रहे हैं।" उनका कहना था कि सेना में यह कार्य सरकारी धर्म के तहत आता है, और जब आप अधिकारी हैं, तो आपको उसकी जिम्मेदारी पूरी करनी होती है। यदि आपको मांस परोसना भी पड़े तो वह आपके व्यक्तिगत धर्म के खिलाफ नहीं माना जाएगा, क्योंकि आप अपनी व्यक्तिगत इच्छा से नहीं, बल्कि कर्तव्य और नियमों के तहत इसे कर रहे हैं।


इस प्रकार प्रेमानंद महाराज जी ने समझाया कि जहां कर्तव्य और धर्म का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण होता है, वहीं व्यक्तिगत विचारों को धर्म के कामकाज से अलग रखना चाहिए।

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