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अब रुद्रप्रयाग को मिलेगी भूस्खलन से पहले चेतावनी, देश का चौथा जिला बना

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 23 सित॰
  • 2 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 24 सित॰

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उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला अब औपचारिक रूप से उन चुनिंदा जिलों की सूची में शामिल हो गया है, जहाँ भूस्खलन की पूर्व चेतावनी समय रहते दी जाएगी। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने भूस्खलन संभावित क्षेत्रों को लेकर जिले के लिए नियमित रूप से पूर्वानुमान बुलेटिन जारी करना शुरू कर दिया है। यह उपलब्धि न केवल राज्य के लिए, बल्कि उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के लिए भी एक बड़ी सफलता मानी जा रही है, क्योंकि रुद्रप्रयाग ऐसा करने वाला इस क्षेत्र का पहला और पूरे भारत का चौथा जिला बन गया है।


उत्तराखंड एक भूस्खलन-संवेदनशील राज्य है। जीएसआई द्वारा राज्य में अब तक 14,780 भूस्खलन-प्रवण ज़ोन चिह्नित किए जा चुके हैं, जिनमें रुद्रप्रयाग जिले में अकेले 1509 जोन शामिल हैं। लगातार हो रही प्राकृतिक आपदाओं और पर्वतीय भूगोल की जटिलता को देखते हुए, GSI पिछले तीन वर्षों से राज्य के चार जिलों- रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी में भूस्खलन की पूर्व चेतावनी प्रणाली को विकसित करने के लिए परीक्षण कर रहा था। इन प्रयासों का परिणाम अब रुद्रप्रयाग में दिखाई देने लगा है, जहां से विधिवत बुलेटिन जारी किया जाने लगा है।


कोलकाता स्थित जीएसआई मुख्यालय से इस महीने बुलेटिन जारी करने की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से स्वीकृति दी गई। GSI ने इस उपलब्धि को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा करते हुए बताया कि यह बुलेटिन अब सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है, जिससे आम नागरिक, प्रशासनिक इकाइयाँ और आपदा प्रबंधन एजेंसियाँ समय रहते सचेत हो सकें।


इससे पहले देश में केवल तीन जिले- पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कलिम्पोंग, तथा तमिलनाडु का नीलगिरी जिला- ऐसे थे, जहाँ भूस्खलन की पूर्व चेतावनी को लेकर बुलेटिन जारी किया जा रहा था। अब रुद्रप्रयाग चौथा जिला बन गया है, जिसे यह सुविधा मिली है।


इस कदम से न केवल जान-माल की रक्षा में मदद मिलेगी, बल्कि राज्य की आपदा प्रबंधन क्षमता को भी नई दिशा मिलेगी। पहाड़ी क्षेत्रों में अचानक होने वाले भूस्खलन से निपटने में यह बुलेटिन बेहद उपयोगी साबित होगा, क्योंकि यह सटीक स्थानों और संभावित समय को ध्यान में रखकर जारी किया जाता है।


यह पहल दर्शाती है कि कैसे वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी सहयोग के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को समय रहते कम किया जा सकता है। यदि यह मॉडल सफल रहता है, तो भविष्य में राज्य के अन्य संवेदनशील जिलों में भी ऐसी पूर्व चेतावनी प्रणाली को लागू किया जा सकता है, जिससे आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक नया मानक स्थापित हो सके।

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