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मदरसों और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए एक समान कानून, राज्यपाल ने दी मंजूरी

  • लेखक की तस्वीर: ANH News
    ANH News
  • 8 अक्टू॰
  • 2 मिनट पठन
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उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को लेकर बड़ा बदलाव आया है। अब केवल मदरसों तक सीमित न रहकर, सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शिक्षण संस्थानों के लिए एक समान कानून लागू किया जाएगा। इसके लिए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने हाल ही में उत्तराखंड अल्पसंख्यक विधेयक 2025 को मंजूरी प्रदान की है। गजट नोटिफिकेशन जारी होते ही यह कानून पूरे प्रदेश में प्रभावी हो जाएगा।


इस नए कानून के लागू होने के बाद, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2016 तथा उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम 2019 को एक जुलाई 2026 से निरस्त कर दिया जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि अब सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को राज्य सरकार से विशेष प्राधिकरण द्वारा मान्यता प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इसके बिना उन्हें अल्पसंख्यक संस्थान होने का कोई विशेष लाभ नहीं मिलेगा। यह प्रावधान मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों के शैक्षिक संस्थानों पर लागू होगा।


नए विधेयक के अंतर्गत एक विशेष प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी, जिसका नाम उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण रखा गया है। यह प्राधिकरण अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को दर्जा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होगा। इस प्राधिकरण के माध्यम से ही किसी भी समुदाय द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को मान्यता मिल सकेगी। बिना इस मान्यता के कोई भी संस्थान अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकेगा।


यह महत्वपूर्ण पहल धामी सरकार की ओर से की गई है, जिसने अगस्त माह में इस विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी दिलाई थी। इसके बाद इसे भराड़ीसैंण विधानसभा के मानसून सत्र में पारित करके राजभवन भेजा गया। राजभवन ने सोमवार को विधेयक को अंतिम मंजूरी दे दी, और अब शासन स्तर से इसका गजट नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा, जिससे कानून प्रभावी होगा।


प्राधिकरण में कुल 11 सदस्य होंगे, जिनमें से अध्यक्ष को अल्पसंख्यक समुदाय का शिक्षाविद् होना अनिवार्य होगा। अध्यक्ष के पास कम से कम 15 वर्ष का शिक्षण अनुभव होना आवश्यक है, जिसमें न्यूनतम पाँच वर्ष उच्च शिक्षण संस्थान में काम करने का अनुभव शामिल है। 11 सदस्यों में से छह सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे, जिनमें मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदायों से एक-एक प्रतिनिधि शामिल होगा। ये सदस्य उस समुदाय से संबंधित या उसकी भाषा जानने वाले होंगे।


बाकी पांच सदस्य सरकार और शिक्षा क्षेत्र के अनुभवी व्यक्तियों से चुने जाएंगे। इनमें एक सदस्य राज्य सरकार का सेवानिवृत्त अधिकारी होगा, जो सचिव या समकक्ष पद पर रहा हो। दूसरा सदस्य विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में कम से कम दस वर्षों का अनुभव रखने वाला सामाजिक कार्यकर्ता होगा। इसके अलावा महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा, एससीईआरटी के निदेशक और निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण भी इस प्राधिकरण के सदस्य होंगे।


यह नया कानून उत्तराखंड में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता और मान्यता की प्रक्रिया को पारदर्शी तथा सशक्त बनाएगा। इससे न केवल शिक्षा की समुचित निगरानी संभव होगी, बल्कि विभिन्न समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को समान अवसर और अधिकार भी मिलेंगे। राज्य सरकार की इस पहल से अल्पसंख्यक समुदायों के शिक्षा क्षेत्र में और मजबूती आएगी तथा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।

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